• अधिकारों का वह हकदार कर्तव्यों से जिनको प्यार….
  •  व्यक्तित्व परिष्कार शिविरों का आयोजन शुरू हो...

देवेंद्र कुमार सक्सेना, आप राजकीय कला कन्या महाविद्यालय कोटा, राजस्थान में संगीत विभाग में तबला वादक के पद पर हैं का श्रम दिवस पर प्रेरणादाई लेख……

श्रम दिवस की शुरुआत अमेरिका में हुई जहाँ एक दिन में 15 घंटे तक मजदूरों से काम लिया जाता था एक मई 1886 को इस शोषण के खिलाफ मजदूर बड़ी संख्या में सड़कों पर प्रदर्शन करने के लिए एकत्रित हो गये..शोषण कर्ताओं ने प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलियां चलाई इस बर्बरता के कारण लगभग सौ श्रमिक घायल हो गए और कई मारे गए…

बाद में 1 मई 1889 द्वितीय अधिवेशन में श्रमिकों मजदूरों के हित में आठ घंटे कार्य करने का नियम सर्व सम्मति से लागू कराने की योजना बनी …

भारत में इसकी शुरूआत 1 मई 1923 को लेबर किसान पार्टी आॅफ हिंदुस्तान की अध्यक्षता में हुई।

अधिकारों के वे हकदार कर्तव्यों से जिनको प्यार…. 

1मई 1886-89 से ही मई दिवस मनाने की परंपरा पूरे विश्व में शुरू हो गई मजदूर हित में इसके सुखद परिणाम प्राप्त भी हो रहे हैं…. किन्तु कहीं कहीं अत्याधिक आंदोलन घरना प्रदर्शन गुटबाजी के कारण इसके नकारात्मक प्रभाव भी दिखाई पड़ते हैं..

कारण जो भी  इसके समाधान राष्ट्रीय हित में खोजने होंगे ताकि श्रमिकों के साथ साथ राष्ट्र का अहित न हो…

राष्ट्र सुरक्षित तो नागरिक सुरक्षित होगा….. 

धर्म तंत्र और राज तंत्र दो प्रभाव शाली तंत्र हैं इन दोनों के समन्वित प्रयासों से धरती पर स्वर्ग का वातावरण बनाया जा सकता है।

1941 से विचार क्रांति अभियान युग निर्माण योजना के संस्थापक वेदमूर्ति तपोनिष्ठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आचार्य श्रीराम शर्मा (शांतिकुंज हरिद्वार) ने श्रम दान महादान का सूत्र प्रत्येक मनुष्य चाहे वह अधिकारी हो या कर्मचारी के लिए देकर कहा कि – देश और दुनिया में विकास के लिए अधिकारों की बात हो रही है अच्छी बात है किंतु अपने कर्तव्यों से भी प्यार होना चाहिए… उन्होंने हजारों पुस्तकें लिखी-” जिनमें एक पुस्तक – ” दो घिनौने कामचोर एवं मुफ़्त खोर ”बहुत लोकप्रिय हुई आचार्य जी ने कहा कि भारत और भारतीय देव संस्कृति के पास तमाम समस्याओं के निराकरण के ठोस सूत्र हैं। जो व्यक्तित्व परिष्कार शिविरों में गायत्री तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार में सिखाये जातें है।,,

मैं और मेरे पिताजी स्वर्गीय श्री हरिनारायण जी कुछ वर्ष शांतिकुंज हरिद्वार समय दान एवं श्रमदान हेतु रहें हैं….. उन दिनों भारत सरकार और राज्य सरकारों के अधिकारियों और कर्मचारियों के लिये विशेष शिविर के आयोजन शांतिकुंज हरिद्वार में हुए जिनमें मैंने संगीत विभाग शांतिकुंज की प्रेरक गीत संगीत प्रस्तुतियों में तबला वादन सहगायन किया है। शिविरों हजारों की संख्या में सरकारी अधिकारी कर्मचारी शांतिकुंज हरिद्वार के पवित्र प्रांगण में आचार्य श्रीराम शर्मा जी वंदनीया माता भगवती देवी जी डॉ 0 प्रणव पण्डया जी एवं श्रद्धेय शैल बाला जी के संरक्षण में आये…

मैं भारत सरकार राज्य सरकार, डॉ 0 चिन्मय पण्डया प्रति कुलपति देव संस्कृति विश्व विद्यालय एवं शांतिकुंज हरिद्वार से अपील करता हूँ कि राष्ट्रीय हित में इस तरह के पांच दिवसीय तीन दिवसीय नैतिक शिक्षा श्रम स्वावलंबन प्रशिक्षण पुनः गुलाबी सर्दियों में होना चाहिए

हिमालय की छाया और गंगा की गोद में बैठकर श्रम की महत्ता, राष्ट्रीय एकता- अखंडता, धर्म का सहीं मर्म और कर्तव्य परायणता प्रायोगिक तौर पर सीखी और समझी जा सके।

 

शोषक शोषित हो न जहाँ पर सबकी सम्पति एक।

हो तन मन में सुमन एकसा जिसमें प्रेम विवेक।

हो सबमें सहयोग परस्पर एक बनें घर द्वार।।

जाति पांति के बंधन टूटे – राष्ट्र राष्ट्र सब एक। 

धर्मों में हो सत्य समन्वय- रहे न झूठी टेक। 

मिटे अविश्वास जगत के- हो विज्ञान विचार।। 

मानव की मानव भाषा हो – सबकी एक समान। 

मिले हृदय से हृदय परस्पर – हो सच्ची पहचान। 

करें वचन से तन, मन, धन से – सब सबका उपकार।। 

जैसे सैकड़ों प्रेरणा गीतों का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया जा सके।