उच्च शिक्षा विभाग, उत्तराखंड के अंतर्गत विभिन्न राजकीय महाविद्यालयों में लंबे समय से अपनी सेवाएं देने वाले संविदा /अस्थाई प्राध्यापक सेवा से बाहर कर दिए गए।
विदित हो कि लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित नियमित सहायक प्राध्यापकों के महाविद्यालय में पदस्थापन के पश्चात विभिन्न विषयों के अस्थाई/संविदा प्राध्यापक सेवा से बाहर हो गए। ऐसे में 9-10 वर्षों की लंबी सेवा देने के बाद भी अस्थाई प्राध्यापक अपने भविष्य को लेकर निराश है।
विभिन्न विषयों के लगभग 150 प्राध्यापक सेवा से बाहर कर दिए गए। यद्यपि सभी संविदा/अस्थाई प्राध्यापक यू.जी.सी. के नियमानुसार नेट/सेट/जे.आर.एफ/पी.एच.डी की निर्धारित योग्यता आधारित करते हैं।
वांछित योग्यता धारित करने के बाद भी इन अस्थाई/संविदा प्राध्यापकों के प्रति उच्च शिक्षा विभाग उदासीन है।
प्रदेश के महाविद्यालयों में कार्यरत अस्थायी, संविदा प्राध्यापकों ने उनके चार सूत्री मांगों के निराकरण की मांग की है। उन्होंने इस संबंध में उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत को ज्ञापन भेजा है।
महाविद्यालयों में कार्यरत अस्थायी, संविदा प्राध्यापकों ने ज्ञापन में कहा कि उच्च शिक्षा विभाग उत्तराखंड के अंतर्गत विभिन्न राजकीय महाविद्यालयों में गत दस वर्षों से लगातार वह सेवाएं दे रहे थे। लोक सेवा आयोग की ओर नियमित सहायक प्राध्यापकों के महाविद्यालय में पदस्थापन एवं चयन के बाद उच्च शिक्षा विभाग की ओर से विभिन्न विषयों के 150 अस्थायी, संविदा प्राध्यापकों को सेवा से बाहर कर दिया गया है।
जिससे अस्थाई प्राध्यापकों का भविष्य अधर में लटक गया है और वह विभाग के निर्णय से काफी निराश हैं। कहा कि सभी संविदा, अस्थायी प्राध्यापक यूजीसी के मानकों के अनुरूप नेट, जेआरएफ, पीएचडी की निर्धारित योग्यताधारी हैं।