एकलव्य विश्वविद्यालय की कुलाधिपति डॉ . सुधा मलैया के संरक्षण तथा कुलपति माननीय प्रो . पवन कुमार जैन के मार्गदर्शन मेंं एकलव्य विश्वविद्यालय में ‘भारतीय बहुभाषीय उत्सव’मनाया गया।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग , नई दिल्ली के निर्देशन में भारतीय भाषाओं के अभिवर्द्धन , संरक्षण तथा पुनरुत्थान हेतु भारत के सम्पूर्ण विश्वविद्यालयों में आयोज्यमान कार्यक्रम के अन्तर्गत एकलव्य विश्वविद्यालय में भारत की विभिन्न भाषाओं पर भाषण , वाद – विवाद , लोकगीत , लोकनृत्य आदि कार्यक्रम आयोजित किए गए ।
सरस्वती को पुष्पहार अर्पण व दीप प्रज्वलन के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया तथा माननीय कुलपति प्रो . पवन कुमार जैन ने उद्घाटन भाषण में राष्ट्रहित में भारतीय भाषाओं की प्रासांगिकता पर बल दिया ।
उन्होंने कहा कि वैश्विक सम्पर्क के लिए जिस प्रकार विदेशी भाषाओं के द्वारा सम्पर्क और व्यापार सम्भव है वैसे ही स्वयं की विरासत संरक्षण में के लिए अपनी मातृभाषा के प्रति प्रेम व गर्व होना चाहिए । कुलसचिव प्रो . प्रफुल्ल शर्मा ने कहा- भाषा अनेक एवं भाव एक की भावना ही हमारे भारत की पहचान है और यही भावना हमें विश्वगुरु बनने में कारगार करेगी ।
प्रो . आर . सी . जैन अधिष्ठाता कला एवं मानविकी संकाय ने मान्य अतिथियों का मधुर वचनों तथा भाषाओं के महत्व पर प्रकाश डालकर स्वागत किया । डॉ . आशीष कुमार जैन विभागाध्यक्ष संस्कृत ने आधुनिक भारत के परिप्रेक्ष्य में संस्कृत भाषा के महत्व पर सार्थक प्रकाश डालते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा की प्रत्येक कड़ी संस्कृत – प्राकृत भाषा से जुड़ी हुई है । ज्ञान से विज्ञान तक की यात्रा भारतीय भाषाओं के अध्ययन के बिना पूर्ण नहीं हो सकती ।
कु . सुनीता प्रजापति ने बुन्देली गीत- कर दो मुकदमा जारी , अदालत न जैहों बिहारी गाकर सभा का मन्त्रमुग्ध कर दिया । डॉ . स्वदेशी बाला ने प्राकृत भाषा में पंचगुरु भक्ति गीत गाया । प्रो . उषा खण्डेलवाल ने भारतीय भाषाओं की एकात्मता को संस्कृत भाषा में अन्तर्निहित बताया ।
डॉ . सुधीरकुमार गौतम ने भारत के विकास में हिन्दी भाषा के योगदान विषयक चर्चा की । डा . विजय कुमार साहू ने स्वरचित बुन्देली गीत ” काट – काट चारे को पूरा, बनवा लओ सोने को चूरा ” गाकर सभा में भाषाई वातावरण निर्मित कर दिया । डॉ. उषा खण्डेलवाल डीन ( प्राकृतिक चिकित्सा संकाय) ने भी एक बुंदेली गीत ” जान लै डारी जा बैरन चाय ने, चाय बिना रहो जाय ना ” गीत गाया।
डॉ . आशीष जैन ( प्राकृत विभाग ने भारतीय भाषाओं के विकास में प्राकृत भाषा के महत्व को प्रतिपादित करते हुए मंच का संचालन भी किया । कार्यक्रम के संयोजक प्रो . सूर्यनारायण गौतम ने उपस्थित अतिथियों / विद्वानों का तथा सहकर्मी साथियों का स्वागत एवं आभार ज्ञापन किया ।
कार्यक्रम में मुख्यरूप से प्रो . रजीत सिंह , डा . सरिता जैन दोशी , डा . सिराज खान , डा . राहुल वर्मा , डा . प्रमिला कुशवाहा , डा . मनीषा दीक्षित , डा . श्याम सुन्दर पटेरिया , डाॅ. अभय कुमार डा. दीपक रजक , डा . वैभव कैथवास , सुश्री अंजली नेमा , गोविन्द विश्वकर्मा , आकाश सिंह ठाकुर , संयम जैन तथा अनेक संकाय के विद्यार्थियों की उपस्थिति रही ।