October 18, 2025

Naval Times News

निष्पक्ष कलम की निष्पक्ष आवाज

कोटा: उपनयन संस्कार का आठ दिवसीय समारोह सम्पन्न

Img 20240708 Wa0022
  • यज्ञोपवित परमं पवित्रं प्रजापतेयर्त्सहजम पुरस्तात्…… 
  •  16 संस्कारों की श्रृंखला में उपनयन अत्यन्त महत्वपूर्ण संस्कार है…… 

देवेन्द्र सक्सेना ,कोटा 8 जुलाई 2024 : बिहार मिथिला से आये आचार्य शम्भु नाथ वत्स ने प्राचीन परंपरा के अनुसार वेंदात कुमार झा पुत्र ओम प्रकाश तुलसी झा तथा हृदय कुमार झा पुत्र हरिओम नूतन झा का उपनयन संस्कार प्राचीन सनातन वैदिक परम्परा के अनुसार सम्पन्न कराया

यह संस्कार 1 जुलाई से आरंभ होकर आज 8 जुलाई को सम्पन्न हुआ। भारतीय प्राचीन सनातन परम्परा में 16 संस्कार अत्यन्त महत्वपूर्ण है जिसमें उपनयन अर्थात यज्ञोपवित संस्कार परम पवित्र माना जाता है विद्यार्थियों को यह संस्कार बल बुद्धि आयु तेज आदि प्रदान करता है।

गुरु नानक हाऊसिंग सोसायटी माला रोड कोटा पार्क में 1 जुलाई को सुंदर कुटिया का निर्माण किया गया 2 जुलाई को मइट मंगल, 7 जुलाई को कुमरम, 8 जुलाई को उपनयन संस्कार तथा सायं प्रीतिभोज के साथ यह प्रेरणादायक संस्कार कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

Img 20240708 194933

इन आठ दिनों में यज्ञोपवित धारण करने वाले बच्चों और उनके परिवार जनों ने कठिन साधना के क्रम में नमक आदि त्याग किया, भीषण गर्मी उमस और वर्षा के बीच कुटिया में पूजा, विश्राम, उपासना पारम्परिक भजन संकीर्तन किये

दिल्ली से आये आचार्य पंडित शम्भु नाथ झा, शीलानाथ झा व रूकमणि देवी के संरक्षण में कई महत्वपूर्ण पारम्परिक कार्यक्रम सम्पन्न हुए।

इस अवसर पर श्याम किशोर झा, बबली देवी, अवध किशोर,सीमा देवी, अजय किशोर, मुन्नी देवी, विनोद मिश्रा कुमदीन देवी, ऊमा, खुशी, भावना, मेघा, गणपत, उमंग मेवान, हर्षित, दीनानाथ वार्ष्णेय, कला संस्कृति सेवी देवेंद्र सक्सेना व संगीता सक्सेना,ऊषा बीर सिंह

प्रदीप सिंह ,डॉ 0 नेहा प्रधान, शैलेंद्र उमा सहित बड़ी संख्या में मल्टी वासी तथा उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, दिल्ली, राजस्थान आदि से आए लोग उपस्थित थे। उपनयन संस्कार अर्थात यज्ञोपवित जनेऊ संस्कार

यह संस्कार सृष्टि के आरम्भ से है स्वयं ब्रम्हा जी यजोपवित धारण करते हैं। उप याने पास नयन अर्थात ले जाना गुरु के पास ले जाना कम से कम आठ , ग्यारह, 12 व अधिक तम 24 की आयु आदि के लिए अनिवार्य उपयोगी संस्कार है। विद्यार्थी के लिये तीन धागे और गृहस्थ छः धागों का यज्ञोपवित पहनते हैं।

यज्ञोपवित के तीन धागे देव ऋण, पितृ ऋण, ऋषि ऋण के प्रतीक हैं।

यह संस्कार अंतरराष्ट्रीय गायत्री परिवार द्वारा बहुत लोकप्रिय हुआ ।

About The Author