डॉ० विकास शुक्ला का लेख,”G-20 की अध्यक्षता: समावेशी विश्व को गढ़ने में हिंदुस्तान की भूमिका”
इतिहास हमें बताता है कि दुनिया में बहु-पक्षवाद वैश्विक स्थिरता और आर्थिक विकास का मुख्य मार्गदर्शक है| अगर संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की पहल विश्व के दर्जनों राष्ट्रों ने नहीं की होती या फिर ये कहें कि दर्जनों राष्ट्रों की इसमें हिस्सेदारी नहीं होती तो द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात दुनिया में शांति की स्थापाना इतनी आसानी से संभव नहीं होती|
परंतु मौजूदा दौर में कुछ ऐसे अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठन हैं जो बहु-पक्षवाद से कोसों दूर हैं| इन संगठनों के बड़े खिलाड़ी नही चाहते कि दुनिया के पिछड़े राष्ट्र इसका हिस्सा बने| इसका परिणाम ये हुआ है कि ये पिछड़े राष्ट्र पिछड़े ही रह गए हैं ।
मै जिन संगठनों की यहाँ चर्चा कर रहा हूँ उनमे G-20 और G-7 समूह हैं| जो राष्ट्र इसमें शामिल होने से महरूम रह गए हैं उनमें अफ्रीकी राष्ट्र हैं।
अगर हम इन दोनों समूहों का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि इनमें पश्चिमी राष्ट्रों का दबदबा और वर्चश्व अधिक है| G-7 के सभी 7 देश G-20 में भी शामिल हैं, यहाँ तक कि यूरोपियन यूनियन जैसा वैश्विक मंच भी G-20 में अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुका है| परंतु यूरोपीय संघ से भी एक बड़ा संघ है जो इन बड़े आर्थिक स्तंभो में शामिल होने से वंचित रहा है। मै यहाँ बात कर रहा हूँ अफ्रीकी संघ की जो अभी तक बड़े आर्थिक मंचों में हिस्सेदारी हासिल नहीं कर सका है| एक तरह से यह पश्चिमी देशों का तृतीय देशों के प्रति दुराभाव और उनके प्रति हीनता की मानसिकता को प्रदर्शित करता है। हालांकि G-20 में अफ्रीकी देश दक्षिण अफ्रीका सदस्यता हांसिल कर चुका है परंतु आकार को मद्देनजर रखते हुए अफ्रीका महाद्वीप के लिए यह प्रतिनिधित्व नाकाफी है।
यहाँ आपके जहन में ये प्रश्न उभर सकता है कि मैं आखिर आज इसकी चर्चा क्यों कर रहा हूँ? तो इसकी चर्चा मैं आपसे यहाँ इसलिए कर रहा हूँ कि 2023 में G-20 कि अध्यक्षता हिंदुस्तान कर रहा है। और स्वाभाविक है कि वसुधैव कुटुंबकम को मानने वाले इस राष्ट्र से वैश्विक समावेशन की उम्मीदें तुलनात्मक रूप से अन्य देशों से काफी अधिक हैं। वसुधैव कुटुंबकम की भारतवर्ष की संस्कृति जहां एक और पूरी वसुधा यानी हमारी पृथ्वी को एक परिवार के रूप में बांध देती है, वहीं दूसरी ओर यह भावनात्मक रूप से मनुष्य को अपने विचारों और कार्यों के प्रभाव को विस्तृत करने की बात कहता है।
ऐसे में चर्चा यह चल पड़ी है कि हिंदुस्तान G-20 का अध्यक्ष रहते हुए क्या अफ्रीकी संघ को G-20 में उचित प्रतिनिधित्व दिलाने में सफल हो पाएगा? अब एक सवाल ये भी है कि हिंदुस्तान से ये उम्मीद आखिर क्यों की जा रही है? कि वह G-20 में अफ्रीका के लिए स्थान बनाये| मैने इस लेख में इसी सवाल की तह तक जाकर विश्लेषण प्रस्तुत करने की कोशिश की है।
साथ ही इस बाबत भी नजर डालने की कोशिश की है कि G-20 अफ्रीका की जरूरत आखिर क्यों है? और G-20 को अफ्रीका की जरूरत क्यों है? सबसे पहले यहाँ G-20 समूह को समझ लेते हैं|
G-20 समूह की स्थापना सितंबर 1999 हुई थी| इस समूह में 19 राष्ट्रों और यूरोपीय संघ को मिलाकर कुल 20 देश हैं| इस समूह को विश्व के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 80%, वैश्विक व्यापार का लगभग 75% और दुनिया की लगभग 60% आबादी की अगुवाई करता है| यूरूपीय संघ के सदस्य होने के कारण अगर देखा जाए तो G-20 समूह 43 राष्ट्रों का या ये कहें कि संयुक्त राष्ट्र संघ के ¼ भाग का प्रतिनिधित्व करता है| इन देशों में केवल दक्षिण अफ्रीका ही अफ्रीकी राष्ट्र है।
वहीं अफ्रीकी संघ कभी-कभी G-20 सम्मेलनों में अतिथि के तौर पर आमंत्रित होता रहा है| दक्षिण अफ्रीका के एक सदस्य के रूप में इसमें शामिल होने से अफ्रीका की एक मौजूदगी दिखती है परंतु इतने बड़े राष्ट्र के लिए ये मौजूदगी न केवल नाकाफी बल्कि आभासी है। अगर अफ्रीका को छोड़ दें तो अफ्रीका की 96% आबादी और GDP का लगभग 85% इस अहम वैश्विक मंच से दूर है। आंकड़ों के अनुसार अफ्रीकी महद्वीप लगभग 1 अरब 4 करोड़ लोगों का घर है और यह आबादी चीन और भारत के लगभग बराबर है।
अर्थव्यवस्था के चश्में से देखें तो अफ्रीकी देश विश्व की 8वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में जगह बनाते हैं| ऐसे में महसूस यह होता है कि G-20 मानवता और अर्थव्यवस्था के इतने विशाल हिस्से को छोड़कर अपनी प्रभाशीलता से क्यों समझौता कर रहा है। G-20 अगर अफ्रीकी देशों को शामिल कर लेता है तो इतने से ही यह समूह 55 अतिरिक्त सदस्यों और दुनिया की लगभग 80% आबादी के विचारों का प्रतिनिधित्व करेगा।
अगर हम देखें तो अफ्रीका तुलनात्मक दृष्टि से एक गरीब राष्ट्र है| इस महाद्वीप की एक बड़ी आबादी पिछड़ी हुई है। यह विश्व का एक संवेदनशील देश है जिसे विश्व के सहयोग की जरूरत है। G-20 जैसे आर्थिक समूह में केवल दक्षिण अफ्रीका के होने से अफ्रीका के अधिकांश देश लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। अगर अफ्रीकी संघ इसका सदस्य बन जाता है तो इस बात की संभावना अधिक है कि अफ्रीकी देशों का एक बड़ा हिस्सा आर्थिक रूप से सशक्त होगा| ये बात G-20 के अन्य राष्ट्रों पर भी लागू होती है। अफ्रीकी संघ के शामिल होने से अन्य देश अफ्रीका से लाभ उठा सकेंगे। क्योंकि अफ्रीकी महाद्वीप प्राकृतिक संसाधनों और ऊर्जा का खजाना है और दुनिया के देशों को इसकी महती जरूरत है।
मगर यक्ष प्रश्न वही कि-
• आखिर हिंदुस्तान इसकी पहल क्यों करे?
• इसमें हिंदुस्तान का क्या लाभ है?
दरअसल हिंदुस्तान के लिए अफ्रीका का विकास उसकी विदेश नीति के लक्ष्यों के लिए बुनियादी जरूरत है| हिंदुस्तान सदैव बहुपक्षीय संगठनों में अफ्रीका को शामिल करने का मुखर समर्थक रहा है| हाल ही में विदेश मंत्री डॉ० एस० जयशंकर साहब ने हिंदुस्तान कि स्थिति पर ज़ोर देते हुए कहा कि हिंदुस्तान के लिए अफ्रीका की प्रगति वैश्विक पुनरसंतुलन के लिए आवश्यक है| हिंदुस्तान की यह भावना ऐसे समय में और भी महत्वपूर्ण है जब दुनिया अमेरिका के नेतृत्व वाले लोकतान्त्रिक देशों और चीन के इर्द-गिर्द सत्तावादी शासन के मध्य तीव्र ध्रुवीकरण देख रही है।
दूसरी ओर रूस-यूक्रेन युद्ध के दुष्परिणाम से बढ़ती ईधन और खाद्य कीमतों, वित्तीय अस्थिरता और ऊर्जा संकट की चुनौतियों का सामना दुनिया कर रही है।
जहां तक हिंदुस्तान और अफ्रीका के सम्बन्धों की बात है तो दोनों के संबंध निरंतर और बेहतर रहें हैं| भारतीय विदेश नीति और आर्थिक नीति में अफ्रीका की बढ़ती भूमिका हिंदुस्तान के बढ़ते राजनयिक प्रयासों में स्पष्ट झलकते हैं।
जो मौजूदा दौर में 43 अफ्रीकी राष्ट्रों को कवर करता है| अफ्रीका में हिंदुस्तान के प्रयासों को समझने के लिए इन आंकड़ों पर गौर कीजिये-
• अफ्रीकी देशों को हिंदुस्तान को करीब 12.37 बिलियन डालर का Line of Credit दिया हुआ है|
• अफ्रीकी देशों के साथ हिंदुस्तान लगभग 90 बिलियन डालर का व्यापार कर रहा है।
• अफ्रीका में हिंदुस्तान का Cumulative निवेश लगभग 74 बिलियन डालर का है, जिससे अफ्रीका में हिंदुस्तान 5वां सबसे बड़ा निवेशक बन गया है।
• हिंदुस्तान अपने कच्चे तेल का लगभग 18% अफ्रीकी देशों से आयात करता है|
• अफ्रीकी महाद्वीप हिंदुस्तान के 20% कोयले का भी स्रोत है|
• काजू का लगभग 90% और इनता ही फास्फेट हिंदुस्तान अफ्रीका से आयात करता है|
• हिंदुस्तान का सम्पूर्ण उर्वरक उद्योग इस बात पर आधारित है कि वह मोरक्को, ट्यूनीशिया और सेनेगल जैसे देशों से क्या खरीदता है।
• इसके अलावा कौशल विकास और क्षमता निर्माण के क्षेत्र में हिंदुस्तान-अफ्रीका के रिश्ते बेहद मजबूत हैं।
• 2015 में प्रस्तावित 50 हजार छात्रवृत्तियों में 32 हजार से अधिक अफ्रीकी नागरिकों ने हांसिल की| इसके तहत उन्होने हिंदुस्तान के संस्थानों मे प्रवेश लिया।
इससे यह परिलक्षित हो रहा है कि अफ्रीका कई मायनों में हिंदुस्तान का साथी है| हिंदुस्तान कि कोशिश अफ्रीका के साथ मिलकर उसके विकास में सहयोगी बनने की है| दुनिया का यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से भी हिंदुस्तान से जुड़ा रहा है।
अगर हिंदुस्तान अफ्रीका को G-20 समूह में जगह दिलवाने में सफल रहता है तो हिंदुस्तान के नजरिए से निवेश का एक बड़ा बाज़ार तैयार होगा। तब हिंदुस्तान अफ्रीका में चीन की चुनौतियों और वर्चश्व का मुहतोड़ जवाब दे सकेगा| हालांकि हिंदुस्तान के पास G-20 समूह की अध्यक्षता एक मुश्किल समय में आई है जैसे- रूस-यूक्रेन युद्ध, ताइवान मुद्दे को लेकर अमेरिका-चीन के मध्य तनाव| इन सब चुनौतियों के मध्य हिंदुस्तान के लिए यह जिम्मेदारी आसान नहीं रहने वाली।
G-20 कि अध्यक्षता करते हुए हिंदुस्तान वैश्विक समावेशन और वसुधैव कुटुंबकम की अपनी समृद्ध संस्कृति से अफ्रीकी संघ को शामिल करे और इस अफ्रीकी अवसर को अपने राष्ट्रीय हितों के लिए भुनाने की पुरजोर कोशिश करे।
लेखक: डॉ० विकास शुक्ला, असिस्टेंट प्रोफेसर & विभागाध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग, राजकीय महाविद्यालय जखोली (रुद्रप्रयाग) उत्तराखण्ड