प्रोफेसर उषा खंडेलवाल, आप विभागाध्यक्ष दर्शनशास्त्र, डीन – योग विज्ञान एवं प्राकृतिक चिकित्सा विभाग, एकलव्य विश्व विद्यालय, दमोह, म. प्र. में कार्यरत हैं।
सागर विश्वविद्यालय की पंच दिवसीय कार्यशाला एवं राष्ट्रीय संगोष्ठी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के परिपेक्ष में प्रोफेसर डॉक्टर खंडेलवाल ने चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास विषय पर विशेष व्याख्यान दिया।
अपने व्याख्यान में उन्होंने कहा, हमारे देश की संस्कृति एवं सभ्यता प्राचीन काल से ही वंदनीय रही है | इसके परिप्रेक्ष्य में यदि हम दृष्टिपात करते हैं ,तो देखते हैं कि ,हमारे देश की सभ्यता एवं संस्कृति का गौरव बढ़ाने में उन नर रत्नों का प्रमुख योगदान है, जिनका जीवन समाज एवं राष्ट्र के लिए समर्पित रहा | सर्वप्रथम हम चरित्र निर्माण का अर्थ समझेंगे
चरित्र अर्थात हमारे आचरण का निर्माण
आचरण के अन्तर्गत व्यक्ति के गुण,कर्म एवं स्वभाव का उच्च स्तरीय निर्माण | जब व्यक्ति की आदतों में परिवर्तन होने लगता है तब वह चरित्र निर्माण की दिशा में आगे बढ़ना प्रारंभ कर देता है |
ऐसे ही सच्चरित्र व्यक्तियों के व्यक्तित्व भारतीय इतिहास में उल्लेखनीय है | ऐसे महामानवों में अगणित संत- महात्मा , महापुरुष, वीर पुरुष एवं अनेक महान विभूतियों का नाम आता है, जिसमें देवियों के नाम भी सम्मिलित हैं | जिन्होंने राजनैतिक बागडोर संभालते हुए भी अपनी बुद्धिमानी रण कौशल एवं साहस का परिचय दिया ऐसे व्यक्तित्व प्रधान व्यक्तियों का जब हम साहित्य के क्षेत्र में अध्ययन करते हैं, तब हमें ज्ञात होता है कि इन सब में एक अद्भुत शक्ति का समावेश है , जो सभी में विद्यमान हैं और वह है परिष्कृत व्यक्तित्व | परिष्कृत व्यक्तित्व एवं आत्म परिष्कार दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं |
जब आत्म परिष्कार हो जाता है तो आत्म परिष्कार होने के पश्चात व्यक्ति के अंदर आत्मवत् सर्वभूतेषु की भावना जागृत होने लगती है अर्थात अपने और पराए का भेद मिट जाता है और वसुधैव कुटुंबकम की भावना जागृत होने लगती है | फलस्वरूप समस्त विश्व हमारा परिवार है यह ज्ञान होने लगता है |