विश्व पिता दिवस पर समाज सेवी तबला वादक देवेंद्र कुमार सक्सेना जो कि राजकीय कला कन्या महाविद्यालय कोटा राजस्थान में तबला वादक के पद पर कार्यरत हैं, का प्रेरक लघु लेख…
” आओ पिता के चरणों में बैठें, पी चरणामृत धार।
सब अज्ञात तिमिर मिट जाये, हो जीवन उजियार।।,,
आज विश्व पिता दिवस है परिवार समाज एवं राष्ट्र निर्माण में पिता की अहम भूमिका होती है। पिता जीवन का आधार स्तंभ है परिवार का प्रकाश स्तम्भ है वह विशाल वट-वृक्ष है जिसकी छाया में पूरा परिवार महफूज़ रहता है। वह किसान की तरह है जैसे किसान कठोर परिश्रम कर खेत जोतता है चाहे मानसून प्रकृति उसका साथ दे या न दे।
हम मां का जितना सम्मान करते हैं उतना ही पिता का सम्मान करना चाहिए क्योंकि मां धैर्यवान धरती है तो पिता उर्जावान आसमान है। यदि आसमान से वर्षा न हो तो धरती बंजर हो जाती है। फिर धरती पर प्राण प्रकृति पर्यावरण संरक्षण सम्भव नहीं है।
कई बच्चे अपने पिता का अपमान और उपेक्षा करते हैं और उनकी माता उसका विरोध नहीं करती हैं वृध्दावस्था में उन्हें घर छोड़ने को मजबूर कर देते हैं जो भारत संस्कृति के अनुसार सही नहीं है।भारतीय संस्कृति में माता पिता को भगवान का दर्जा दिया गया है।
क्रिया की प्रतिक्रिया होती है जब हम पिता बनते हैं तो हमारे साथ वही घटना घटित होती है जो हमने अपने पिता के साथ की थी.
भारतीय सनातन संस्कृति माता पिता के सम्मान से भरी हुई है श्रवण कुमार ने अपने दिव्यांग माता पिता की बहुत सेवा की, भगवान राम ने अपने पिताजी की आज्ञा का पालन कर चौदह वर्ष वनवास काटा परशुराम जी ने अपने पिता के अपमान के लिए कठोर संघर्ष किया। ऐसे हजारों उदाहरण हैं जो पिताजी के सम्मान पर एकाग्र हैं। किसी ने सच कहा है –
माँ बाप के साथ आपका सुलूक,
वो निबंध है
जिसे आप लिखते हैं
और आपकी संतान आपको,
पढ़कर सुनाती है.’
- पित्र कृपा का अमृत पीकर हम धन्य हो जाते हैं।
जिसे मिली पतवार मात- पिता की,
भव सागर तर जाते हैं।