सितम्बर माह में सम्पूर्ण विश्व में हिंदी प्रेमी भारतेंदु हरिश्चन्द्र जयंती महोत्सव मनाते हैं। कोटा में श्री भारतेंदु समिति कोरोना काल को छोड़कर प्रति वर्ष भारतेंदु हरिश्चन्द्र जयंती महोत्सव के अवसर पर आचार्य हनुमान प्रसाद सक्सेना (संस्थापक श्री भारतेंदु समिति कोटा) स्मृति पुरस्कार, साहित्य- श्री, एवं संगीत के लिये ” स्वर सुधा श्री ” पुरस्कार प्रदान करती है। भारतेंदु हरिश्चन्द्र जयंती पर देवेंद्र कुमार सक्सेना का लेख ।

भारतेंदु हरिश्चन्द्र का योगदान

जैसा कि सर्व विदित 9 सितम्बर 1850 को भारतेंदु हरिश्चन्द्र का जन्म काशी के सम्पन्न वैश्य समाज में हुआ मात्र 11 वर्ष की आयु में उन्होंने लेखन आरंभ कर दिया था…….
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1857 की क्रांति के बाद से ही हिंदी साहित्य के आधुनिक युग का शुभारंभ हो गया था।स्वामी दयानंद, राम कृष्ण परमहंस, राजा राम मोहन राय, केशव चन्द्र सेन सामाजिक क्षेत्र में सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, दादा भाई नौरोजी भारतीय राजनीति में प्रेरणास्रोत बने ईश्वर विद्या सागर ने अंग्रेज़ी शिक्षा एवं वंकिम चंद्र चटर्जी के वंदेमातरम का प्रभाव भारतीय जनमानस पर पड़ रहा था…. ऐसे समय में भारतेंदु हरिश्चन्द्र का आगमन हिंदी साहित्य में हुआ और 1889 तक उनके युग का प्रभाव साहित्य जगत में रहा।

भारतेंदु के उदय के साथ ही हिंदी द्रुत गति से प्रचलित होने लगी। गद्य और पद्य दोनों पक्षों का प्रयोग होने लगा ब्रज और अवधी को छोड़कर कर खड़ी बोली का विकास आंरभ हुआ साथ-साथ साहित्य उत्थान के लिए प्रयास होने लगे। गद्य प्रधान काल में कविता का महत्व भी बढ़ा।

राष्ट्र भक्ति और राष्ट्रीय चेतना

भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने राष्ट्रीय भक्ति और राष्ट्रीय चेतना का बिगुल बजाते हुए जन जन को बताया कि
ब्रिटिश राज सुख साज सबै अतिभारी।
पै धनं विदेश चलि जात यहै अतिख्वारीं।।
राष्ट्रीय पीड़ा को भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने एक निर्भीक राष्ट्र भक्त कवि के रूप में उन भारतीयों की निंदा की जो नवीन मारकीन और मलमल के गुलाम थे।
भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने नव जागरण से सम्बन्धित अनेक कार्य किये वे पहले ऐसे साहित्यकार थे जिन्होंने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाने के लिए जन जन को प्रेरित किया।

उन्होंने भारतीय समाज के डगमगाते कदमों को सम्हाला। नारी जागरण के क्रम में स्त्रियों की शिक्षा विधवाओं के विवाह का उन्होंने भरपूर समर्थन किया।उन्होंने अँग्रेजी शिक्षा एवं विलायत यात्रा को ज्ञानार्जन के लिए आवश्यक बताया।
भारत के सांस्कृतिक गौरव ऊंचा उठाने के लिए वे कहते थे कि चाहे यूरोप हो या अमेरिका सांस्कृतिक विरासत वैभव में भारत के समान कोई नहीं है।
भारतेंदु ने हिन्दी गद्य के विकास के लिए कवि वचन सुधा, हरिश्चंद्र सुधा, हरिश्चंद्र चंद्रिका एवं हरिश्चंद्र मैग्जीन आदि पत्रिकाओं का प्रकाशन किया। उन्होंने निबंध लेखन परम्परा को जन उपयोगी और लोकप्रिय बनाया।

भारतेंदु हरिश्चंद्र का रंग मंच के उन्नयन में भी योगदान दिया उन्होंने रंगमंच के लिए अनेक नाटक लिखे उनका मंचन किया, भारतेंदु का ‘सत्य हरिश्चंद्र’ ‘नाटक का हजारों बार सफल मंचन किया गया। उन्होंने बंगला उपन्यासों का हिन्दी अनुवाद करवाया। परिणामस्वरूप हिंदी में भी उपन्यास सृजन में साहित्यकारों में रूचि बढ़ी। उन्होंने साहित्य गोष्ठियों के अनेक आयोजन किए।

साहित्यिक गोष्ठियों के अलावा उन्होंने बृजभाषा के लिए भी समर्पित भाव से कार्य किया।
उल्लेखनीय है कि वे लोक साहित्य भी संरक्षक थे संगीत और नृत्य के माध्यम से जन जन प्रचलित होने वाली काव्य उप शास्त्रीय लोक गायन शैली जैसे चैती, कजरी, होली,ठुमरी, बारहमासा, लावणी, विरहा, दादरा अध्दा खेमटा आदि भिन्न-भिन्न छंद शैलियों की रचना की।
इस प्रकार उन्होंने भारतीय सांस्कृतिक सामाजिक साहित्यिक के नवजागरण में अमूल्य योगदान दिय

 

देवेंद्र कुमार सक्सेना, आप संगीत विभाग, राजकीय कला कन्या महाविद्यालय, कोटा में तबला वादक हैं । आप ने अमेरिका ,कनाडा, इंग्लैंड, नेपाल आदि राष्ट्रीय में लगभग 100 एवं भारत में 15 सौ से अधिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भागीदारी की। आप ने समय-समय पर विभिन्न आपदाओं जैसे बाढ़, तूफान, भूकंप आदि  में भी सहयोग कर अपना योगदान देते रहे हैं और राष्ट्रीय भक्ति का परिचय देते रहे हैं । आप समय-समय पर रक्तदान, वस्त्र दान, शिक्षा आदि कार्यों में संलग्न रहते हैं और अनेक विद्यार्थियों को निस्वार्थ एवं निशुल्क प्रशिक्षण प्रदान करते रहे हैं।