- लिली चौक स्थित श्रीदुर्गा मंदिर (मढ़ी) में मनाई गई आदिशंकराचार्य जयंति
रायपुर: स्थानीय पुरानी बस्ती लिली चौक स्थित श्रीसत्गुरु जीवतपुरी गोस्वामी श्रीदुर्गा मंदिर (मढ़ी) में प्रति माह के अंतिम मंगलवार को आयोजित होने वाले रात्रिकालीन भजन कीर्तन के “साओ मंगल” कार्यक्रम के अवसर पर गत् दिवस २५ अप्रैल को भगवत्पाद आदिशंकराचार्य महाराज की २५३०वीं जयंति मनाई गई।
कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीदुर्गा मंदिर (मढ़ी) के महंत, अखिल भारतीय सिन्धी संत समाज के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्रीसत्गुरु अनन्तपुरी गोस्वामी ने की। कार्यक्रम में भगवत्पाद आदिशंकराचार्य महाराज जी की जीवनी व कार्यों पर प्रकाश डालने हेतु सिन्धी समुदाय के विख्यात देशभक्त सन्त, मसन्द सेवाश्रम रायपुर के पीठाधीश साईं जलकुमार मसन्द साहिब विशेष आमंत्रित रहे।
उल्लेखनीय है कि वे ११ वर्षों से देश के वर्तमान शंकराचार्यों एवं अन्य महान सन्तों के सहयोग से प्रजातांत्रिक प्रणाली के अन्तर्गत ही देश में पुन: सनातन वैदिक सिद्धान्तों पर आधारित शासन की स्थापना के माध्यम से भारत को पुन: विश्वगुरु बनाने का अभियान चला रहे हैं।
साईं मसन्द साहिब ने बताया कि आदिशंकराचार्य महाराज का जन्म २५३० वर्ष पूर्व वैशाख शुक्ल पक्ष की पंचम तिथि पर दक्षिण भारत के केरल राज्य के कालड़ी नामक ग्राम में पूर्णा नदी के तट पर पिता शिवगुरु व माता आर्यम्बा के नम्बूदरी ब्राह्मण वंश में हुआ था। वे भगवान शंकर कें अवतार माने जाते हैं।
उन्होंने मात्र ८ वर्ष की आयु में समस्त वैदिक शास्त्रों का ज्ञान अर्जित कर लिया था और ९ वर्ष की अल्पायु में ही सन्यास धारण किया था। उनकी आयु मात्र ३२ वर्ष रही। बताया जाता है कि उनके समय भारत के लोग बौद्ध, जैन आदि करीब ७० मतों में बंटे हुए थे। उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण कर शास्त्रार्थ के द्वारा सबको सनातन वैदिक धर्म से सहमत कराने में सफलता प्राप्त की।
इससे तत्कालीन सभी राजाओं व प्रजा ने सनातन धर्म स्वीकार कर लिया। उन्होंने वैदिक धर्म की सुचारु व्यवस्था हेतु क्रमश: उत्तर में श्रीज्योतिर्मठ, पश्चिम में श्रीद्वारका शारदा मठ, दक्षिण में श्रंगेरीमठ और पूरब में श्रीगोवर्धनमठ कुल ४ मठ स्थापित किए।
उन्होंने कहा कि सनातन वैदिक ज्ञान जहां एक ओर हमारी समस्त लौकिक आवश्यकओं की पूर्ति का दार्शनिक, वैज्ञानिक एवं व्यवहारिक ज्ञान प्रदान करते हैं, वहीं दूसरी ओर वे मानव जीवन के मूल उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करने का आध्यात्मिक मार्ग भी प्रशस्त करते हैं।
भारत में सतयुग, त्रेता, द्वापर व कलयुग, हर युग में सनातन वैदिक सिद्धान्तों पर आधारित शासन की परिपाटी रही। इसके अंतर्गत अतीत में प्रत्येक राजा के लिए सनातन वैदिक ज्ञान का महाज्ञानी एक राजगुरु का होना अनिवार्य रहता था। वैदिक ज्ञान के कारण ही भारत एक ओर जहां धनधान्य से भरपूर सोने की चिड़िया कहलाता था, वहीं दूसरी ओर वह समूचे विश्व के लिए विश्वगुरु भी रहा।
उन्होंने कहा कि वर्तमान प्रजातांत्रिक प्रणाली के अंतर्गत भी वैदिक सिद्धान्तों के आधार पर भारत को पुन: सोने की चिड़िया व विश्वगुरु बनाना संभव है। अत: वे करीब ११ वर्षों से इस दिशा में योजनाबद्ध अभियान चला रहे हैं। करीब दो साल से देश में इसके आसार अब स्पष्टत: दिखने भी लगे हैं।