देहरादून: वरिष्ठ साहित्यकार पदमश्री लीलाधर जगूड़ी ने कहा कि साहित्य ने कभी बंटवारा नहीं किया है।दुनिया भर के साहित्य एवं कृतियों का स्वर एक जैसा है।यह बात और है कि भाषाओं की कुछ सीमाएं और दोष हर जगह मौजूद हैं।
पदमश्री लीलाधर जगूड़ी सुभाष रोड स्थित होटल में हिंदी भाषा एवं साहित्य सम्मेलन समिति उत्तराखंड की ओर से आयोजित एवं उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान की ओर से संपोषित दो दिवसीय अंतररष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे।
भारतीय साहित्य में राष्ट्रीय चेतना विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि बोलते हुए उन्होंने कहा कि भारत में डिक्शनरी का अभाव है।अंग्रेजी की डिक्शनरी में हर साल 50 नए पेज जुड़ जाते हैं।लेकिन भारतीय भाषाओं में इस तरह का काम नहीं होता है। उन्होंने कहा कि डॉ. लोहिया ने सबसे पहले भाषण में घेराव शब्द का इस्तेमाल किया गया था।यह शब्द अखबारों में खूब छपता है लेकिन अभी तक डिक्शनरी का हिस्सा नहीं बन पाया है।
उन्होंने विश्वविद्यालयों की ओर से कराए जा रहे शोध की दुर्दशा पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह शोध नहीं प्रतिशोध है। कई शोध में पहले लिखी गई थीसिस की नकल होती है। अनेक शोध स्तरीय नहीं होते हैं। उन्होंने कहा कि इस दिशा में सभी को सोचना चाहिए।
उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ राजनारायण शुक्ल ने कहा कि उनका संस्थान 22 भारतीय भाषाओं के उत्थान के लिए काम कर रहा है।उन्होंने कहा कि हिंदी में तकनीकी शब्दावली का युग शुरू हो चुका है।उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान ने मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्र-छात्राओं के लिए शल्य चिकित्सा और रोग निदान विज्ञान की पाठ्य सामग्री हिंदी भाषा में उपलब्ध कराई है।उन्होंने कहा कि हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय चिंतन की भावना जगह जगह दिखाई देती है।
वर्चुअल माध्यम से मास्को से जुड़े वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. इंद्रजीत सिंह ने कहा कि हिंदी सिनेमा के माध्यम से भी साहित्य में राष्ट्रीय चेतना का संचार हुआ है।हिंदी फिल्मों के गीतों के माध्यम से लोगों के मन में देशभक्ति की भावना जागृत की गई है।मेरा जूता है जापानी….सर पर लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी..गीत का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि गीतकार शैलेंद्र ने ऐसे कई गीतों के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने का काम किया है।
विश्व हिंदी मंच के अध्यक्ष डॉ प्रणव शास्त्री ने कहा कि हिंदी साहित्य में भारतीय मूल्य विद्यमान हैं।भारतीय मूल्यों में ही वह शक्ति है कि रावण भी राम का रूप धारण करता है तो पराई स्त्री की ओर आंख उठाकर नहीं देख पाता है।
कार्यक्रम का संचालन भाषा विज्ञानी डॉ. सुशील उपाध्याय ने किया।
इससे पूर्व हिंदी भाषा एवं साहित्य सम्मेलन समिति की अध्यक्ष डॉ राखी उपाध्याय ने अतिथियों का स्वागत किया। संगोष्ठी में कई राज्यों से आए 100 से अधिक प्राध्यापकों और शोध छात्रों ने प्रतिभाग किया।
इस अवसर पर डॉ. निशा वालिया, डॉ.सुप्रिया रतूड़ी, डॉ. नीरजा चौधरी, डॉ. रामभरोसे, डॉ. नरेंद्र प्रताप सिंह, डॉ. योगेश योगी,डॉ. सरिता मलिक, प्रो. प्रभात द्विवेदी, डॉ. पुष्पा खंडूरी, डॉ. सुमंगल सिंह, डॉ. वीरेंद्र बरत्वाल, योशिता पांडेय, डॉ. रेणु शुक्ला, डॉ. प्रेरणा पांडेय, डॉ. सविता भट्, डॉ निधि, नैना श्रीवास्तव, वर्षा,विकास,गीता, मोहित,सीमा,अभिषेक,अफरोजा,असलम, सविता राजपूत, वाणीकांत पंकज,विवेक त्यागी, पुष्पेंद्र शर्माआदि उपस्थित थे।
-कार्यक्रम में डीएवी पीजी कॉलेज देहरादून की छात्राओं की ओर से संगीत की प्रस्तुति दी गई।डॉ!अनुपमा सक्सेना और डॉ सुमन त्रिपाठी के निर्देशन में भैरवी और खुशी ने अपनी संगीतमय प्रस्तुति से सबका मन मोह लिया।छात्राओं की प्रस्तुति पर पूरा सभागार तालियों से गूंज उठा।