देवेंद्र कुमार सक्सेना समाज सेवी तबला वादक, प्रेरणा दायक विचारों के लेखक हैं जिनके समय समय पर अनेकों लेख संस्मरण समाचार प्रकाशित प्रसारित होतें है

इन दिनों युवा प्रतियोगिता परीक्षा एवं वार्षिक परीक्षाओं की तैयारी में व्यस्त हैं शीघ्र ही परीक्षाएं शुरू भी होने जा रही है।

परीक्षा के दौरान सकारात्मक नकारात्मक मानसिक तनाव बढना स्वाभाविक है…. प्रश्न उज्जवल भविष्य एवं नैतिक प्रतिष्ठा का है।

आजकल विद्यार्थी की पढ़ाई रोजगार और खासतौर पर सरकारी नौकरी पर एकाग्र है। बढ़ती जनसंख्या के कारण सरकारी नौकरी आसान नहीं है।

नौजवानों उठो वक्त यह कह रहा ।
खुद को बदलो जमाना बदल जायेगा ।।
भारत की विश्व विभूति
स्वामी विवेकानंद हमें हमारी भारतीय सांस्कृतिक परम्पराओं के साथ जगाना और जोड़ना चाहते हैं।

योग्यतम ही जीवन संग्राम में जीवित बचता है। अयोग्यता मृत्यु के समान है।. युवा स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस और मां शारदा मणि का सानिध्य उनके गुरू कुल में प्राप्त किया।कायस्थ कुल में जन्में नरेंद्र ने अपना लक्ष्य नौकरी शादी संतान उदर पूर्ति तक सीमित नहीं रखा बल्कि समूचे राष्ट्र और विश्व मानवता
की सेवा में लगा दिया… तब वे भारतीय संस्कृति के प्रकाश स्तम्भ स्वामी विवेकानंद बन गए..

भारत की संस्कार व्यवस्था ने ऐसे अनगिनत रत्न दिए जिन्होंने भारत की सांस्कृतिक सामाजिक शैक्षणिक परम्पराओं को गौरवान्वित किया…

जब विदेशों में शिक्षा का कोई ठोस आधार नहीं था…. उस समय हमारे देश में शिक्षा का व्यापक विस्तृत स्वरूप था हमारे यहाँ पहले से ही गुरूकुल संचालित थे जहाँ सुयोग्य और संस्कारित आचार्य अपने आचरण से समाजोपयोग शिक्षा एवं विद्या का सहजता से प्रशिक्षण शिष्यों को देते थे वे आचार्य बहुत से विषयों के विषेशज्ञ होते थे और उनके शिष्य भी उतने ही सुयोग्य होते थे वे शिष्य ही अन्य शिष्य शिष्याओं को शिक्षा देते थे।
आश्रम में वशिष्ठ अरून्धती की तरह
गुरु माता सभी को ममत्व देतीं थीं। आचार्य और विद्यार्थियों को श्रमदान के साथ साथ समाज से संसाधन जुटाने के लिए समाज में जाना पड़ता था।
जहां वे जनता के दुख दर्द को नजदीक से महसूस कर लेते थे।
श्री राम, भरत, लक्ष्मण शत्रुध्न,श्री कृष्ण, बलराम,पांचों पांडव, महाराणा प्रताप, संस्कृत, योग, अध्यात्म, गुरुओं के आश्रम में रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे।

वर्तमान समय में मुझे भी लगभग 5 वर्ष गायत्री तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार के पवित्र प्रांगण में पूज्य गुरुदेव स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आचार्य श्रीराम शर्मा जी वन्दनीया माता भगवती देवी श्रध्देय डॉ 0 प्रणव पण्डया जी एवं श्रद्धेय शैल बाला जी के संरक्षण में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। जहाँ संगीत, लेखन, सम्पादन, जन सम्पर्क, स्वालम्बन, यज्ञ, संस्कार शिक्षा, योग, सम्भाषण सेवा, व्यवस्था आदि सीखने समझने का अवसर प्राप्त हुआ। जहाँ हम जैसे लाखों लोग वर्ष भर आतें शिविरों में रहते हैं और
सादा जीवन उच्च विचार।
संयम बरतें रहे उदार।।
मानव मात्र एक समान परम पिता की सब संतान
का मूल मंत्र सीखकर जातें हैं ।

.ऋषियों के तप त्याग तेज गुण मानव धर्म महान की ।
भूली हुई कहानी फिर से याद करो बलिदान की।।

तक्षशिला नालंदा विश्वविद्यालय में गेट पर सुरक्षा प्रहरी स्वागत प्रभारी विद्यार्थियों का साक्षात्कार लेकर मेरिट तैयार कर लिया करते थे वहां की शिक्षा और त्याग बलिदान का इतिहास बहुत पुराना है… जहाँ अनमोल पुस्तकों का विशाल पुस्तकालय था… जिन्हें नष्ट करने के लिए विदेशी आक्रांताओ ने सेना सहित आक्रमण किया।
तब वहां के राष्ट्र भक्त और वीर आचार्यों और विद्यार्थियों ने अपने अनमोल संस्कृति साहित्य को बचाने के समुद्री मार्ग का प्रयोग किया… पुस्तकों के अधिक वजन से नाव न डूबे इसलिए समुद्र में स्वयं कूदकर प्राण गवां दिये..
उन वीर सपूतों को शत शत नमन वंदन.. देश विदेश में फैले हम सवा सौ करोड़ से अधिक भारतीय को अपनी संस्कृति और राष्ट्रीय मूल्यों की रक्षा के लिए जाति धर्म सम्प्रदायों से ऊपर उठकर आज एकजूट होना चाहिए।
विदेशी शत्रुओं से आत्म रक्षा और राष्ट्र की सुरक्षा के लिए हमें सैनिक प्रशिक्षण भी लेना चाहिए।
स्वस्थ शरीर स्वच्छ मन अपना सभ्य समाज बनायेंगे
नया सवेरा नया उजाला इस धरती पर लायेंगे।।

जैसे हम स्थूल शरीर के लिए भोजन में पोष्टिकता का ध्यान रखते हैं वैसे ही सूक्ष्म शरीर के लिए शिक्षा के साथ सु साहित्य का विद्या अर्जन भी अनिवार्य है।
हमारा तीसरा शरीर कारण शरीर है इसके लिए निःस्वार्थ सहयोग सेवा अनिवार्य है। यह आत्मा का भोजन है।

श्री राम भक्ति ऐसी श्रध्दा उभारती है।
निश्काम भाव शबरी ऋषि पथ बुहारती है ।।

हमें शिक्षा के साथ विद्या सेवा और परोपकार को अपनाना होगा। तभी हम अपने जीवन का लक्ष्य आत्म दर्शन और प्रभु दर्शन मिल सकेगा।