गर्भपात के मामले के मामले पर सुप्रीम कोर्ट(suprim court) ने महिलाओं के हक में आज एक बड़ा फैसला दिया। गर्भपात (abortion) के मामले में विवाहित और अविवाहित का भेद मिटाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि भारत सभी महिलाएं, चाहे विवाहित हों या अविवाहित, सुरक्षित और कानूनी गर्भपात (safe and leagal abortion) की हकदार हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में संशोधन करते हुए कहा कि विवाहित महिला की तरह अविवाहित को भी गर्भपात कराने का अधिकार है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने एमटीपी कानून और इससे संबंधित नियमों के बदलाव को लेकर यह फैसला सुनाया है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि एक अविवाहित महिला को अनचाहे गर्भ का शिकार होने देना मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम के उद्देश्य और भावना के विपरीत होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कहा कि 2021 के संशोधन के बाद मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट की धारा-3 में पति के बजाय पार्टनर शब्द का उपयोग किया गया है। यह अधिनियम में अविवाहित महिलाओं को कवर करने के लिए विधायी मंशा को दर्शाता है।
साथ ही कोर्ट ने एम्स निदेशक को एक मेडिकल बोर्ड का गठन करने के लिए कहा जो यह देखेगा कि गर्भपात से महिला के जीवन को कोई खतरा तो नहीं होगा।
दरअसल, एक महिला ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 2003 के नियम-3 बी को चुनौती दी थी, जो कि केवल कुछ श्रेणियों की महिलाओं को 20 से 24 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देता है।
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को केवल इस आधार पर लाभ से वंचित नहीं किया जाना चाहिए कि वह अविवाहित महिला है. कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया लगता है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने अनुचित प्रतिबंधात्मक दृष्टिकोण अपनाया है।