विश्व पर्यावरण दिवस पर पंडित ललित मोहन शर्मा परिसर,श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय, ऋषिकेश की प्रो. (डॉ.) अनीता तोमर का लेख प्लास्टिक प्रदूषण का अंत – एक वैश्विक पुकार

हर वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1972 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित स्टॉकहोम सम्मेलन के दौरान की गई थी, जिसमें पर्यावरण से जुड़े वैश्विक मुद्दों पर पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गंभीर चर्चा हुई थी। वर्ष 1973 में इसे पहली बार “केवल एक पृथ्वी” थीम के अंतर्गत मनाया गया। तब से यह दिवस हर वर्ष एक नई थीम और एक नए मेज़बान देश के साथ मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य लोगों को पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति जागरूक करना और ठोस कदम उठाने के लिए प्रेरित करना होता है। आज यह 150 से अधिक देशों में मनाया जाता है और यह पर्यावरण संरक्षण हेतु सबसे व्यापक वैश्विक मंच बन चुका है।

वर्ष 2025 का विश्व पर्यावरण दिवस एक अत्यंत महत्वपूर्ण और समयानुकूल विषय पर केंद्रित है—“प्लास्टिक प्रदूषण का अंत” (Putting an End to Plastic Pollution)। यह थीम हमें याद दिलाती है कि प्लास्टिक का अत्यधिक और अनियंत्रित उपयोग अब केवल एक सुविधा नहीं, बल्कि पर्यावरण और मानव जीवन के लिए गंभीर संकट बन चुका है। नदियों, समुद्रों, वनों, पर्वतीय क्षेत्रों और यहाँ तक कि जीव-जंतुओं और मानव स्वास्थ्य पर इसका गहरा और घातक प्रभाव देखा जा रहा है।

इस वर्ष दक्षिण कोरिया का जेजू प्रांत इस दिवस की वैश्विक मेज़बानी कर रहा है। जेजू अपने पर्यावरणीय प्रयासों और सतत विकास नीतियों के लिए जाना जाता है। वहाँ दुनियाभर के नीति निर्माता, वैज्ञानिक, पर्यावरणविद् और आम नागरिक एकत्र हो रहे हैं ताकि इस समस्या पर गंभीर विचार-विमर्श हो और व्यावहारिक समाधान सामने आएँ।

प्लास्टिक की उपयोगिता से कोई इनकार नहीं कर सकता। इसकी सुलभता, हल्कापन और विविधता ने इसे हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रवेश दिलाया है—खाद्य पैकेजिंग से लेकर चिकित्सा उपकरणों तक, खिलौनों से लेकर ऑटोमोबाइल्स के पुर्ज़ों तक। लेकिन यही प्लास्टिक जब अनुपयोगी होकर कचरे में तब्दील होता है और पर्यावरण में फैलता है, तो यह एक विनाशकारी रूप ले लेता है। अनुमान है कि हर वर्ष लगभग 30 करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है, जिसमें से एक बहुत बड़ा हिस्सा समुद्रों और नदियों में बहा दिया जाता है। यह प्लास्टिक सैकड़ों वर्षों तक नष्ट नहीं होता और पर्यावरण में बना रहता है।

इस प्लास्टिक से सबसे अधिक खतरा समुद्री जीवों को होता है। मछलियाँ, कछुए, समुद्री पक्षी और अन्य जलजीव अक्सर इसे भोजन समझकर निगल लेते हैं जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है। यही नहीं, प्लास्टिक का सूक्ष्म रूप—जिसे माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है—अब हमारी हवा, पानी और भोजन तक में मिल चुका है। शोध बताते हैं कि एक औसत व्यक्ति हर सप्ताह एक क्रेडिट कार्ड के बराबर प्लास्टिक निगल रहा है। ये प्लास्टिक कण हमारे शरीर के आंतरिक अंगों, हार्मोन, तंत्रिका तंत्र और यहाँ तक कि मस्तिष्क पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। इसका संबंध कैंसर, हृदय रोग और प्रजनन समस्याओं से जोड़ा जा रहा है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अंतर्गत विभिन्न देशों, सरकारों, उद्योगों और आम नागरिकों को प्लास्टिक अपशिष्ट को कम करने और पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। दक्षिण कोरिया के जेजू प्रांत ने 2040 तक प्लास्टिक मुक्त क्षेत्र बनने की दिशा में अनेक कदम उठाए हैं, जैसे स्रोत पर ही कचरे को अलग करना, पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना और इको-पर्यटन को प्रोत्साहित करना। भारत में भी कई राज्यों ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया है और स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत प्लास्टिक कचरा प्रबंधन को एक प्रमुख प्राथमिकता बनाया गया है।

प्लास्टिक प्रदूषण के समाधान के लिए सबसे महत्वपूर्ण है—व्यक्तिगत और सामूहिक प्रयास। हमें अपने दैनिक जीवन में छोटे-छोटे बदलाव लाने होंगे। सिंगल यूज़ प्लास्टिक जैसे प्लास्टिक बैग, बोतलें, स्ट्रॉ और कटलरी का बहिष्कार करना होगा। इनकी जगह कपड़े के थैले, स्टील की बोतलें, बांस के ब्रश और बायोडीग्रेडेबल उत्पादों को अपनाना होगा। प्लास्टिक कचरे को अन्य कचरे से अलग करके सही तरीके से निपटाना और रीसायकल की प्रक्रिया को अपनाना अत्यंत आवश्यक है। पार्कों, समुद्र तटों, नदियों और सार्वजनिक स्थलों की सफाई में भागीदारी से भी हम इस प्रयास को मजबूती दे सकते हैं।

हमें अपने परिवार, दोस्तों और समाज को प्लास्टिक प्रदूषण के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक करना चाहिए। प्रत्येक वर्ष कम से कम एक पौधा लगाना और जल, बिजली जैसी प्राकृतिक संपदाओं का संरक्षण करना, इस दिशा में हमारी एक सकारात्मक पहल हो सकती है। सरकारों और उद्योगों को चाहिए कि वे टिकाऊ पैकेजिंग, बायोडीग्रेडेबल विकल्पों और ‘सर्कुलर इकोनॉमी’ को बढ़ावा दें, जिससे पर्यावरणीय दबाव को कम किया जा सके।

विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में प्लास्टिक प्रदूषण पर विशेष शिक्षा दी जानी चाहिए, जिससे भावी पीढ़ी इस गंभीर समस्या के प्रति सजग हो और सक्रिय योगदान दे। इस दिशा में संगोष्ठियों, पोस्टर प्रदर्शनी, निबंध प्रतियोगिता तथा शोध गतिविधियाँ प्रेरणादायी हो सकती हैं।

अंततः, विश्व पर्यावरण दिवस 2025 की थीम “प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करना” हमें चेतावनी नहीं, बल्कि एक संकल्प प्रदान करती है। यह हमें बताती है कि अब और देर नहीं करनी है। यह केवल सरकारों या बड़े उद्योगपतियों की जिम्मेदारी नहीं है—यह हम सभी का कर्तव्य है कि हम पर्यावरण का सम्मान करें और प्लास्टिक का उपयोग कम से कम करें।

आइए, इस वर्ष हम संकल्प लें कि हम प्लास्टिक का प्रयोग घटाएँगे, पर्यावरण-अनुकूल विकल्प अपनाएँगे और धरती माँ को प्रदूषण से मुक्त करने की दिशा में सक्रिय भागीदारी निभाएँगे। यही हमारे भविष्य की गारंटी है—एक स्वच्छ, सुंदर और टिकाऊ पृथ्वी।

“प्लास्टिक का अंत ही, प्रकृति की नई शुरुआत है।”

प्रो. (डॉ.) अनीता तोमर

गणित विभाग

पंडित ललित मोहन शर्मा परिसर

श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय, ऋषिकेश

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