राजकीय महाविद्यालय बलुवाकोट में हरेला पर्व के अवसर पर हुआ आनलाइन राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

संस्था – राजकीय महाविद्यालय बलुवाकोट पिथौरागढ़ उत्तराखंड के हिंदी विभाग द्वारा “प्रकृति, संस्कृति और संरक्षण की परंपरा” विषय पर उत्तराखंड की सांस्कृतिक परंपरा हरेला पर्व पर आनलाइन राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

राष्ट्रीय संगोष्ठी में भारत के सभी प्रांतों के बौद्धिक एवं जनसरोकारों से जुड़े हुए अध्येताओं एवं शिक्षाविदों द्वारा प्रतिभाग किया गया।

राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्देश्य लोक पर्व हरेला को जनसरोकारों से जोड़ना सार्थक सिद्ध हुआ

इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य अतिथि , मा. प्रोफेसर सतपाल सिंह बिष्ट – कुलपति – सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय – अल्मोड़ा उत्तराखंड तथा विशिष्ट अतिथि 1- प्रोफेसर जगत सिंह बिष्ट – मा. पूर्व कुलपति एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा 2- प्रोफेसर एम एम सेमवाल राजनीति विभाग केंद्रीय विश्वविद्यालय गढ़वाल 3- प्रोफेसर गुड्डी बिष्ट पंवार – हिंदी विभाग – केंद्रीय विश्वविद्यालय गढ़वाल 4- प्रोफेसर एच. एस. पुरोहित – डीन -दून विश्वविद्यालय देहरादून तथा संरक्षक – प्रोफेसर सुभाष चंद वर्मा – प्राचार्य – राजकीय महाविद्यालय बलुवाकोट – धारचूला रोड़ – पिथौरागढ़ रहे।

संगोष्ठी संयोजक -डॉ. चंद्रकांत तिवारी हिंदी विभाग राजकीय महाविद्यालय बलुवाकोट  धारचूला रोड़ पिथौरागढ़।

प्रोफेसर जगत सिंह बिष्ट, मा. पूर्व कुलपति एवं अध्यक्ष – हिंदी विभाग सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय ने कहा “लोक पर्व हरेला उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत और पर्वतीय अंचल की जनभावनाओं का प्रतीक पर्व है।”

प्रोफेसर एम एम सेमवाल- राजनीति विभाग – केंद्रीय विश्वविद्यालय गढ़वाल ने कहा “लोक पर्व हरेला का वैज्ञानिक दृष्टि से अध्ययन और अध्यापन एवं शोध आज समय की मांग है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी लोक पर्वों के संरक्षण की मांग करती है।”

प्रोफेसर गुड्डी बिष्ट पंवार- हिंदी विभाग – केंद्रीय विश्वविद्यालय गढ़वाल ने कहा “पीपल, बरगद और रूद्राक्ष के वृक्षों से भविष्य की पीढ़ी को जोड़ना होगा । पंय्या वृक्ष अर्थात देव वृक्ष का संरक्षण आवश्यक है। हरेला पर्व प्रकृति का पर्व है।”

प्रोफेसर एच. एस. पुरोहित – डीन -दून विश्वविद्यालय देहरादून ने कहा “सांस्कृतिक पर्वों को वैश्विक स्तर तक लेकर चलना होगा। लोक पर्व हरेला राष्ट्रीय आय का स्रोत बनें। GDP के लिए शुभ संकेत बनें। हमें लोक पर्वों को अर्थव्यवस्था से जोड़ना होगा।”

प्रोफेसर सुभाष चंद वर्मा, प्राचार्य ने कहा- “लोक पर्व हरेला एवं अन्य राज्यों के लोक पर्वों द्वारा आपसी संबंधों को सौहार्दपूर्ण वातावरण देकर मनाना ही सांस्कृतिक मेल-मिलाप है।”

डॉ. संदीप कुमार ने कहा – “हरेला पर्व संस्कृति से आत्मिक रूप से जुड़ा हुआ है।”

राष्ट्रीय संगोष्ठी संयोजक – डॉ. चंद्रकांत तिवारी- “प्रकृति और संस्कृति मानवीय संवेदना का रूप है। हमें प्रकृति से तादात्म्य स्थापित करते हुए जीवन यापन करना होगा।

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