भरत गिरी गोसाई, सहायक प्राध्यापक-वनस्पति विज्ञान (उच्च शिक्षा उत्तराखंड) द्वारा धराली त्रासदी पर लिखी दिल को छू लेने वाली कविता, “ये रात, वो रात नहीं है जो रोज़ आती है”
“ये रात, वो रात नहीं है जो रोज़ आती है”
कोई भूख से तड़प रहा होगा,
कोई सूखी रोटी को तरस रहा होगा।
किसी माँ का आँचल भीग रहा होगा,
अपने लापता लाल को ढूंद रहा होगा।
कोई बुजुर्ग काँपती आवाज़ में किसी आते जाते से,
मदद माँग रहा होगा,
भीगे बिस्तर, टूटी छतों के नीचे वो अपने बीते कल को,
देख रहा होगा.
कोई बच्चा माँ की गोद को तरस रहा होगा,
हर परछाई में उसे पहचान रहा होगा,
वो मासूम सवाल आँखों में लिए बस,
एक गर्म हाथ को तलाश रहा होगा.
कोई आदमी खुद भी टूटा हुआ फिर भी,
पूरे परिवार को संभाल रहा होगा।
ये रात, वो रात नहीं है जो रोज़ आती है,
ये रात वो रात नहीं जो रोज आती है.
ये रात, वो रात नहीं है जो रोज़ आती है…