• भारत को समृद्ध, शक्तिशाली राष्ट्र का लक्ष्य प्राप्त कराने की दिशा में आगे बढ़ाना ही हमारी नियति है, जिसे पुरुषार्थ से प्राप्त करना है – अजय कुमार 

हरिद्वार (29 मई 2024) – विश्व हिन्दू परिषद, उत्तराखण्ड की युवा शाखा बजरंग दल का शौर्य प्रशिक्षण वर्ग गुरुकुल महाविद्यालय हरिद्वार में आयोजित किया जा रहा हैं।

बजरंग दल के शौर्य प्रशिक्षण वर्ग में उपस्थित शिक्षार्थियों को “भारत अखंड” विषय पर संबोधित करते हुए विश्व हिन्दू परिषद के प्रांत संगठन मंत्री अजय कुमार ने कहा कि पृथ्वी का जब जल और थल इन दो तत्वों में वर्गीकरण करते हैं, तब सात द्वीप एवं सात महासमुद्र माने जाते हैं।

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हम इसमें से प्राचीन जम्बूद्वीप जिसे आज एशिया द्वीप कहते हैं तथा इन्दू सरोवरम जिसे आज हिन्द महासागर कहते हैं, के निवासी हैं। भारत की सीमाओं का उत्तर में हिमालय व दक्षिण में हिंद महासागर का वर्णन है, परंतु पूर्व व पश्चिम का वर्णन नहीं है। गहराई से अध्ययन करने पर शास्त्रों में पूर्व व पश्चिम दिशा का वर्णन है।

कैलाश मानसरोवर से पूर्व की ओर जाएं तो वर्तमान का इंडोनेशिया और पश्चिम की ओर जाएं तो वर्तमान में ईरान देश या आर्यान प्रदेश हिमालय के अंतिम छोर पर हैं। एटलस के अनुसार जब हम श्रीलंका या कन्याकुमारी से पूर्व व पश्चिम की ओर देखेंगे तो हिंद महासागर इंडोनेशिया व ईरान तक ही है।

इन मिलन बिंदुओं के बाद ही दोनों ओर महासागर का नाम बदलता है, इस प्रकार से हिमालय, हिंद महासागर, आर्यान, ईरान व इंडोनेशिया के बीच का पूरे भू भाग को आर्यावर्त अथवा भारतवर्ष या हिंदुस्तान कहा जाता है। विश्व के देशों की सूची में वर्तमान भारत के चारों और जो देश माने जाते हैं उस समय ये देश थे ही नहीं, यहां भारतीय राजाओं का शासन था। इन सभी राज्यों की भाषा में अधिकांश शब्द संस्कृत के ही हैं, मान्यताएं व परंपराएं सब भारत जैसी ही हैं।

खान-पान, भाषा-बोली, वेशभूषा, संगीत-नृत्य, पूजापाठ, के तरीके सब एक से थे। जैसे-जैसे इनमें से कुछ राज्यों में भारत के इतर यानि विदेशी मजहब आए तब यहां की संस्कृति बदलने लगी।

इतिहास की पुस्तकों में पिछले 2500 वर्ष में जो भी आक्रमण हुए यूनानी, यवन, हूण, शक, कुषाण, सिरयन, पुर्तगाली, फ्रेंच, डच, अरब, तुर्क, तातार, मुगल व अंग्रेज इन सभी ने हिंदुस्तान पर आक्रमण किया, ऐसा इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में कहा है। किसी ने भी अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या बांग्लादेश पर आक्रमण का उल्लेख नहीं किया है।

अजय कुमार ने कहा कि भारतवर्ष का पिछले दो हजार पांच सौ सालों में 24 बार विभाजन हुआ है। मुगलों के पश्चात अंग्रेजो का ईस्ट इण्डिया कम्पनी के रूप में व्यापारी बनकर भारत आना, फिर धीरे धीरे शासक बनना और उसके बाद सन 1857 से सन 1947 तक उन्होंने भारत का 7 बार विभाजन किया था। स्मरण रहे भारत को रचा है प्रकृति ने, उसके भूगोल ने, उसके पर्वतों ने और उसके समुद्रों ने।

अत: कोई भी मानवीय अभिकरण न तो उस रूप को बदल सकता है और न ही उसके अंतिम लक्ष्य के मार्ग में रोड़े अटका सकता है। हजारों वर्षों के बाद यदि यहूदियों को अपनी मातृभूमि ‘इजराइल’ के रूप में मिल सकती है, सदियों से पुराने दुश्मन रहे देशों के साथ यदि आज यूरोप एक हो रहा है, तो हमारा खंडित भारत भी ‘अखंड भारत’ के रूप में निश्चित ही खड़ा होगा।

प्रांत संगठन मंत्री ने कहा कि देश फिर से एक करने के लिये जिन कारणों से मनों में दरार पैदा होती है, उन सभी कारणों को दूर करना आवश्यक है। यह आसान काम नहीं है, धार्मिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय शक्तियां सभी बाधाओं के रूप में खड़ी हैं। सैन्य सामर्थ्य भारत के पास है, लेकिन क्या पाकिस्तान पर जीत से अखंड भारत बन सकता है? जब लोगों में मनोमिलन होता है, तभी राष्ट्र बनता है। अखंडता का मार्ग सांस्कृतिक है, न की सैन्य कार्रवाई या आक्रमण। भारत की अखंडता का आधार भूगोल से ज्यादा संस्कृति और इतिहास में है, खंडित भारत में एक सशक्त, एक्यबद्ध, तेजोमयी राष्ट्रजीवन खड़ा करके ही अखंड भारत के लक्ष्य की ओर बढ़ना संभव होगा। धारा 370 के हटने से भी धरती के स्वर्ग जम्मू कश्मीर में भी अब अखण्ड भारत की नयी आशाओं का सृजन हुआ है, पाकिस्तान द्वारा कब्जाया कश्मीर भी भारत का अंग होगा। बलुचिस्तान के लोग अपने ही देश पाकिस्तान की उपेक्षा से आहत हैं, वहाँ के आम नागरिक को भारत पर भरोसा है, और बलूचिस्तान आजाद होने की प्रतिक्षा कर रहा है।

प्रांत संगठन मंत्री अजय कुमार ने कहा कि अखंड भारत का संकल्प एक विचार नहीं वरन अडिग संकल्प हैं, सदा प्रेरणा देने वाला स्वपन हैं। महर्षि अरविन्द ने कहा था – “नियति ने भारत को एक राष्ट्र के रूप में बनाया है, ये विभाजन अस्थायी है. देश के नागरिकों को संकल्प लेना चाहिए की चाहे जैसे भी हो और कोई भी रास्ता क्यों न अपनाना पड़े, अब विभाजन को समाप्त कर पुनः अखंड भारत का निर्माण होना ही चाहिए।

” विनायक दामोदर ‘वीर’ सावरकर ने कहा था कि “मुझे स्वराज्य प्राप्ति की खुशी है, परंतु इसका दुख है कि वह खंण्डित है। देश की सीमाये नदी पहाडो या संधि-पत्रो से निर्धारित नहीं होती, वे देश के नवयुवको के शोर्य, धैर्य, त्याग एवं पराक्रम से निर्धारित होती हैं।” आज माँ भारती अपने वीर पुत्रों को पुकार रही हैं, हमें भारत की अखण्डता के संकल्प को पूर्ण करना हैं।

हम सब मिलकर संकल्पबद्व हो, भारत माता को पुन: अखंड करने में तथा भारत माँ को पुन: अखंडता के शिखर पर विराजमान करे। इस बात का संकल्प लेना होगा की इस प्राचीन राष्ट्र को पुनः अपना खोया हुआ गौरव प्राप्त कराने और एक संगठित, समृद्ध, शक्तिशाली, सामर्थ्यवान राष्ट्र का लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ाना ही हमारी नियति है, जिसे अपने पुरुषार्थ से हमें प्राप्त करना है।