- राष्ट्र प्रथम,नि:स्वार्थ सेवा, आत्मनिर्भर भारत और विकसित भारत @2047 का प्रण लेने का किया आह्वान
- गुरु के समग्र जीवन पर आधारित- सीसु दिआ परु सिररु न दिआ-धर्म रक्षक गुरु तेग बहादुर’ पुस्तक का किया गया विमोचन
हरिद्वार, 24-11-25: हिंद की चादर- गुरु तेग बहादुर जी की 350 वीं शहादत स्मृति दिवस के अवसर पर महामहिम राज्यपाल ले. जनरल गुरमीत सिंह द्वारा उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रतिभाग किया गया।
गुरु तेग बहादुर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए तथा गुरु परंपरा को नमन करते हुए राज्यपाल ने कहा कि गुरु तेगबहादुर की शहादत हमें यह संदेश देती है कि भारत माता की रक्षा के लिए हंसते-हंसते सब कुछ अर्पित कर देना ही सच्चा धर्म, सच्चा कर्म और सच्चा राष्ट्र धर्म है।
उन्होंने कहा कि सिख गुरु परंपरा ने धर्म, समाज और राष्ट्रवाद की परंपरा को ऊंचा किया। मनुष्य की सर्वोच्च पहचान उसका मानव धर्म बताया। गुरु की शहादत ने हमें सिखलाया कि जब सामने घोर संकट खड़ा हो,जीवन -मरण का प्रश्न हो फिर भी हमें अपने राष्ट्र धर्म और समाज के कर्तव्य को विस्मृत नहीं करना चाहिए। कहा कि बलिदान केवल धर्म की रक्षा नहीं था इसमें स्वतंत्रता,मानव अधिकार, गरिमा और राष्ट्र की आत्मा की रक्षा करना भी था। महामहिम ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत सरकार ने गुरु परंपरा और गुरुओं की शहादत को स्मरण किया,उनका सम्मान किया। प्रधानमंत्री द्वारा 26 दिसंबर को *वीर बाल दिवस* घोषित किया जाना इसी परंपरा का सम्मान है। इस निर्णय ने गुरु गोविंद सिंह जी के चारों साहिबजादों के अद्भुत बलिदान को राष्ट्रीय चेतना में अमर कर दिया।
उन्होंने कहा कि आज जब दुनिया में वैचारिक संघर्ष बढ़ रहे हैं, समाज में विभाजन उत्पन्न करने वाली शक्तियां सक्रिय हैं और कई बार राष्ट्र की एकता और अखंडता को चुनौती देने के प्रयास होते हैं, ऐसे समय में गुरु तेग बहादुर जी की शिक्षा हमें प्रेरणा देती है कि राष्ट्र सर्वोपरि है।उनके जीवन का सार यही है कि व्यक्ति से ऊपर परिवार, परिवार से ऊपर समाज और समाज से ऊपर राष्ट्र होता है।जब तक हम इस क्रम को आत्मसात नहीं करेंगे विकसित भारत का सपना हमसे उतना ही दूर रहेगा।
महामहिम ने गुरु हरगोबिंद साहिब का मिरी-पिरी का सिद्धांत राष्ट्रवाद की आधारशिला बताया। उन्होंने विश्व को एक अनूठा मार्ग दिया जहां मनुष्य भीतर से संत हो और बाहर से साहसी हो।
उन्होंने कहा कि गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा का निर्माण करके वीरता को अध्यात्म से और राष्ट्र धर्म को मानवता की सेवा से जोड़ा।
इस दौरान गुरु के समग्र जीवन पर आधारित- सीसु दिआ परु सिररु न दिआ-धर्म रक्षक गुरु तेग बहादुर’ पुस्तक का विमोचन भी किया गया।
महामहिम ने संकल्प दिलाया कि भारत की आत्मा, सत्य, सेवा, समता और राष्ट्र धर्म को कभी कमजोर नहीं होने देंगे। हम ऐसा भारत बनाएंगे जो शक्तिशाली भी हो,संवेदनशील भी हो, आधुनिक भी हो और आध्यात्मिक भी।
कार्यक्रम में परमार्थ निकेतन के प्रमुख चिदानंद महाराज, अध्यक्ष गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब समिति नरेंद्र जीत सिंह बिंद्रा, सचिव संस्कृत शिक्षा उत्तराखंड शासन दीपक कुमार गैरोला, राज्य मंत्री श्यामवीर सैनी, कुलपति संस्कृत विश्वविद्यालय प्रो.दिनेश चंद्र शास्त्री,प्राचार्य राजकीय महाविद्यालय सतपुली प्रो.संजय कुमार, प्रो. दलजीत सिंह,डॉ.सर्वेश ओझा,डॉ. प्रकाश चंद्र, जिलाधिकारी मयूर दीक्षित,वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रमेंद्र सिंह डोभाल,अपर जिलाधिकारी पी आर चौहान,उप जिलाधिकारी जितेंद्र कुमार सहित संबंधित संस्कृत विवि के छात्र छात्राएं आदि मौजूद।


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