देवेंद्र कुमार सक्सेना आप एक समाज सेवी हैं तथा तबला वादक राजकीय कला कन्या महाविद्यालय कोटा राजस्थान में तबला वादक हैं परिवार दिवस पर अंतराष्ट्रीय परिवार दिवस पर देवेंद्र कुमार सक्सेना का प्रेरणादायी लेख….
इतने रत्न दिए हैं कैसे जिससे देश महान है ।
भारत की परिवार व्यवस्था ही रत्नों की खान है।।
भारत में सयुंक्त परिवार एवं अध्यात्म संगीत घराने गुरु शिष्य परम्परा वर्षों से चली आ रही है। जो बहुत सफल रही है। विभिन्न क्षेत्रों में देव भूमि भारत में कई रत्नों ने जन्म लिया है जो 100 %अपने परिवार समाज ही नहीं पूरे राष्ट्र के सुख दुख में कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहते थे।
श्री राम,भरत, लक्षमण शत्रुध्न, कृष्ण बलराम, गुरु नानक गुरु गोविंद सिंह (सिक्ख धर्म के समस्त गुरु) स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानन्द, छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप, शहीद अशफ़ाक उल्लाह, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, शहीद भगत सिंह, चन्द्र शेखर आजाद, महात्मा गांधी, आचार्य श्रीराम शर्मा जी, डॉ 0 राजेन्द्र प्रसाद, श्री लाल बहादुर शास्त्री लोह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ 0 एपीजे अब्दुल कलाम, केप्टन हमीद, पंडित रविशंकर उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, पंडित भीमसेन जोशी, मृदंग महर्षि डॉ 0 स्वामी राम शंकर स्वामी पागलदास अयोध्या, पंडित कुमार गंधर्व, पंडित किशन महाराज पंडित सामता प्रसाद गुदई महाराज, उस्ताद अल्लाउद्दीन खान उस्ताद अल्ला रख्खा, पंडित विश्व मोहन भट्ट, डागर बंधु, पंडित लक्षमण भट्ट, गंधर्व महाविद्यालय परिवार के पद्मश्री पंडित मधुप मुद्गल, स्पिक मैके परिवार के पद्मश्री डॉ 0 किरण सेठ, ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह, उस्ताद अहमद हुसैन उस्ताद मोहम्मद हुसैन, पद्मश्री उस्ताद मोइनुद्दीन खान, पद्मश्री गुंदेचा बन्धु, कला समीक्षक पंडित विजय शंकर मिश्र जी, पंडित नंदन मेहता, पंडित बालकृष्ण महंत संगीत संकल्प के परिवार के डा 0 मुकेश गर्ग, संगीत कार्यालय परिवार अध्यात्म और संगीत के तमाम गुरु घराने परिवार व्यवस्था से जुड़े हुए हैं ।
नारी शक्तियों में सीता, सावित्री, अन्नपूर्णा, अनुसुइया, पार्वती, मीरा बाई, रानी पद्मिनी, झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई, अहिल्याबाई, भारत रत्न लता मंगेशकर माता पन्नाधाय पद्मविभूषण से सम्मानित किशोरी अमोणकर, विदुषी मंजू नदंन मेहता, ध्रुपद गायिका डॉ 0 मधु भट्ट तैलंग जैसी हजारों माता बहिनें ने भारतीय परिवार में जन्म लिया। इस वजह से देश और देश की कला, संस्कृति, धर्म अध्यात्म लोकप्रिय एवं अमर है।
इल्म – ओ – अदब के सारे खजाने गुजर गये
क्या खूब थे वो लोग पुराने गुजर गए
बाकी है… जमीन पे फकत आदमी की भीड़
” इंसान ” मरे हुए….. तो ज़माने गुज़र गए….!!!
किसी ने सच ही कहा है
आजकल साधन सम्पन्न बनने की होड़ व दिखावे की दौड़ में इंसान और इंसानियत जमाने से गुजर चुकी है।
आजकल के परिवारों में विघटन अलगाव बढऩे लगे हैं। पति – पत्नी, ‘माता – पिता भाई – भाई, भाई – बहन एवं संतानों में असंतोष इतना बड़ा कि कोर्ट कचहरी तक पहुंच गया है , आपसी विश्वास, मान सम्मान समाप्त होने लगा है। कई परिवारों में विवाह के बाद गृह क्लेश बंटवारा आम बात है। बंटवारे के बाद अलग रह रहे पति-पत्नी में भी तनाव बढ रहे हैं। शंका, ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार, लोभ, हठधर्मिता के कारण हुई तू तू मै मैं अचानक शारीरिक और मानसिक हिंसा में परिवर्तित हो जाती है। दोनों में एक भी पक्ष धैर्यवान हो तो परिवार संस्था चलने लगती है।
परिवार में पुरूष और महिला दोनों मानसिक और शारीरिक हिंसा के शिकार बनते हैं। पिछले दिनों मई माह में राजस्थान पत्रिका में एक समाचार प्रकाशित हुआ नेशनल हेल्थ सर्वे – 5 के आकड़े के अनुसार देश में हर दसवां पुरूष पत्नि से पिट रहा है।
यह आकड़े 2015 – 16 में बहुत ज्यादा बढ़ गये हैं। फिर भी भारत की परिवार व्यवस्था और संस्कारों के कारण शर्म संकोच व पारिवारिक जीवन में विघटन के कारण कई पुरूष व स्त्री अपनी व्यथा समाज और कानून के सामने व्यक्त नहीं करते हैं । अपनी परिवार संस्था को बचाते हैं।
पूज्य गुरुदेव स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वेदमूर्ति तपोनिष्ठ आचार्य श्रीराम शर्मा जी एवं वंदनीया माता भगवती देवी जी ने अन्तरराष्ट्रीय गायत्री परिवार बनाया उन्होंने – ” गृहस्थ एक तपोवन है जिसमें संयम सेवा और सहिष्णुता की साधना करने के लिए जन जन को प्रेरित किया।
परिवार की पहचान पति-पत्नी, माता पिता, चाचा चाची, भाई बहन, भाई भाभी जैसे रिश्तों से होती है किन्तु आजकल गांव शहर में छोटा परिवार पति-पत्नी और बच्चे ही परिवार की श्रेणी में आने लगे हैं।जनसंख्या विस्फोट तेजी से होने के कारण रोजगार खत्म होने लगे हैं।
सरकारों ने भी परिवार नियंत्रण के लिए कई योजनाएं चलाई है ”।
प्रजजन रोकें वृक्ष उगायें।
शिक्षा और सहकार बढायें ।।
अंतरराष्ट्रीय गायत्री परिवार शांतिकुंज हरिद्वार का यह नारा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय हित में बहुत मूल्यवान है।
भारत में संयुक्त परिवार व्यवस्था सद्गुणों संस्कारों की पाठशाला है जहाँ बच्चों में शिष्टाचार सदाचार और संस्कारों का बीजारोपण सहजता से होता है।
सयुंक्त परिवार के लोग तनाव ग्रस्त कम होते हैं।
व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज और समाज से राष्ट्र का निर्माण होता है।
विश्व समुदाय से अपील है कि विश्व परिवार को बचाने के लिए भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों को आत्मसात करना होगा। यहां की सयुंक्त परिवार व्यवस्था को वहाँ भी स्थापित करना होगा।