एक बाल मनोविज्ञान से जुड़ी प्रेरक कविता ”बचपन” अवनी सक्सेना नरसिंहगढ़ मध्य प्रदेश ने भेजी है का क्रांतिकारियों की पुस्तकें पढ़ने ,बाक्सिंग और मधुर संगीत में रूचि रखने वाली अवनी सक्सेना शासकीय माॅडल हायर सेकंडरी स्कूल नरसिंहगढ़ में वाणिज्य विषय की कक्षा 11 की छात्रा हैं।

        बचपन

जीवन का वो हिस्सा, जिसमें न कोई दुखः न तकलीफ थी।                         बस मौज – मस्ती करने की वो उम्र थी

बस उस वक्त हमारे चेहरे पर सिर्फ हंसी होती थी…                                  और अगर रो दे तो मनाने के लिये सब की गोदी होती थी।

उस वक्त सोचते थे कि हम बड़े कब होंगे….                                          पर अब लगता है क्यों हमने बचपन के वो दिन खोये होंगें

अब शायद किसी को फर्क ना पढता हो हमारे रोने या हंसने से….              अब शायद किसी को न-हो फिक्र हमारी जितनी पहले थी

न जाने कहाँ एक गुम हो गए वो पल…..                                              जिसमें जिंदगी सबसे हसींन थी….

बड़े होने के बाद अपने आसूं अब हम छुपा लेते हैं …                                  न जाने कितनी बातें हम माँ-पापा को नहीं बताते हैं ।

काश ! इस सफर के वो लम्हे हमे वापस मिल जाए…                       इस सफर के हम पहले जैसे हंसते-खेलते मुसाफिर बन जाये….

रचयिता: अवनी सक्सेना