धनौरी पी.जी. कॉलेज : आज के तेजी से बदलते तकनीकी परिदृश्य में, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) हमारे जीवन के लगभग हर पहलू में प्रवेश कर चुका है। जहां एआई ने कई क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की है, वहीं इसने मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी कुछ नई चुनौतियां भी खड़ी की हैं।
इस संदर्भ में, धनौरी पी.जी. कॉलेज, धनौरी, हरिद्वार, में आयोजित ऑनलाइन व्याख्यान कार्यक्रम में, केंद्रीय विश्वविद्यालय, हरियाणा के शिक्षक शिक्षा विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रमोद कुमार गुप्ता ने एआई युग में मानसिक थकान और मानसिक स्वच्छता के महत्व पर अपने विचार व्यक्त किए ।
इस महत्वपूर्ण विषय पर अपने विचार साझा करते हुए, धनौरी पी.जी. कॉलेज के प्राचार्य प्रोफेसर (डाॅ.)विजय कुमार जी ने कहा कि छात्रों को तकनीकी प्रगति के साथ-साथ अपने मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने संतुलित जीवनशैली और स्वस्थ आदतों को अपनाने पर जोर दिया। शिक्षाशास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. अलका सैनी ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में एआई के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए, शिक्षकों और छात्रों दोनों के लिए मानसिक रूप से स्वस्थ रहना आवश्यक है। उन्होंने छात्रों को तनाव प्रबंधन तकनीकों को सीखने और लागू करने के लिए प्रोत्साहित किया। भौतिकी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. सुशील कुमार ने तकनीकी उपकरणों के अत्यधिक उपयोग से होने वाली संभावित मानसिक थकान पर प्रकाश डाला। उन्होंने छात्रों को सलाह दी कि वे नियमित रूप से डिजिटल डिटॉक्स करें और प्रकृति के साथ समय बिताएं।
डॉ. गुप्ता ने कहा कि एआई-संचालित उपकरणों और प्रणालियों पर बढ़ती निर्भरता के कारण हमारी पीढ़ियों में मानसिक थकान बढ़ सकती है। लगातार सूचनाओं का प्रवाह, हर काम के लिए एआई पर निर्भर रहने की आदत और मानवीय संपर्क में कमी मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि हम अपनी पीढ़ियों को केवल एआई पर ही निर्भर न रहने दें, बल्कि उन्हें एक संतुलित और सर्वांगीण विकास की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें।
मानसिक स्वच्छता बनाए रखने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव देते हुए डॉ. गुप्ता ने कहा कि एआई-संचालित उपकरणों के उपयोग को सीमित करना और वास्तविक दुनिया के अनुभवों पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है।
परिवार, दोस्तों और समुदाय के साथ सार्थक संबंध बनाए रखना मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। नियमित व्यायाम मानसिक तनाव को कम करने और समग्र कल्याण को बढ़ावा देने में मदद करता है। ध्यान और माइंडफुलनेस का अभ्यास वर्तमान क्षण में रहने और चिंता को कम करने में सहायक हो सकता है। रचनात्मक गतिविधियों में शामिल होना और नई चीजें सीखना मानसिक उत्तेजना प्रदान करता है। समय-समय पर तकनीक से दूर रहना और प्रकृति के साथ जुड़ना मानसिक शांति प्रदान कर सकता है।
डॉ. गुप्ता ने कहा कि शिक्षा प्रणाली को भी इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि पाठ्यक्रम में ऐसी गतिविधियों और शिक्षा को शामिल किया जाना चाहिए जो छात्रों को आलोचनात्मक सोच, समस्या-समाधान, रचनात्मकता और भावनात्मक बुद्धिमत्ता जैसे आवश्यक मानवीय कौशल विकसित करने में मदद करें।
उन्होंने आगे कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी युवा पीढ़ी तकनीक का उपयोग केवल एक उपकरण के रूप में करे, न कि उस पर पूरी तरह से निर्भर हो जाए। एक संतुलित जीवनशैली, जिसमें प्रौद्योगिकी का विवेकपूर्ण उपयोग और मानवीय संबंधों, शारीरिक गतिविधि और रचनात्मकता पर ध्यान केंद्रित किया जाए, ही मानसिक थकान को कम करने और मानसिक स्वच्छता को बढ़ावा देने का सही तरीका है।
इस अवसर पर महाविद्यालय के सभी सहायक आचार्यगण और अधिक संख्या मे छात्र/छात्राएं उपस्थित रहे।