क्वालिटी इंस्टीट्यूट्स कहां हैं ?, एनआईआरएफ-2023 के टाॅप 100 में उत्तराखंड के महज चार संस्थान
आम धारणा यह है कि शिक्षा के मामले में उत्तराखंड बेहद जागरूक राज्य है और इसका मुकाबला दक्षिण के राज्यों के साथ होता है। यह धारणा शिक्षा के फैलाव और कुल शैक्षिक संस्थानों की दृष्टि से तो सही है, लेकिन जहां तक गुणवत्ता का सवाल है, उसके निर्धारण के लिए एनआईआरएफ (नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क) की वर्ष 2023 की रिपोर्ट देख सकते हैं।
यह रिपोर्ट बताती है कि उत्तराखंड में उच्च शिक्षा के क्वालिटी इंस्टीट्यूट्स की संख्या नाममात्र की है। एनआईआरएफ की ताजा रिपोर्ट में टाॅप 100 में आईआईटी रुड़की को 8वां, पेट्रोलियम यूनिवर्सिटी देहरादून को 79वां (यूपीईएस), एम्स ऋषिकेश को 86वां और ग्राफिक ऐरा डीम्ड यूनिवर्सिटी को 89वां स्थान मिला है। इन चारों में से कोई भी राज्य सरकार का संस्थान या विश्वविद्यालय नहीं है।
उत्तराखंड में आईआईटी रुड़की अकेला ऐसे संस्थान है जो वर्ष 2016 में एनआईआरएफ की रैंकिंग शुरू होने के बाद से अब तक निरंतर टाॅप 100 में बना हुआ है। इन वर्षों में इसका स्थान टॉप 6 से टाॅप 8 के बीच ही बना रहा। जबकि, अन्य संस्थानों के मामले में ऐसा नहीं है।
वर्ष 2018 और 2019 में जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी यूनिवर्सिटी देश के टाॅप 100 संस्थानों में शामिल थी, लेकिन अब मुख्य सूची से बाहर हो गई है। हालांकि, एग्रीकल्चर स्ट्रीम में इसका नाम बना हुआ है। इसी तरह 2017 में आईआईएम काशीपुर भी टाॅप 100 में शामिल था, लेकिन अब वह भी मुख्य सूची से बाहर होकर केवल मैनेजमेंट स्ट्रीम तक सिमट गया है।
गौरतलब है कि ओवर ऑल टॉप 100 रैंकिंग के अलावा 12 अन्य श्रेणियों/स्ट्रीम में भी देश की टाॅप यूनिवर्सिटियों और संस्थानों की रैंकिंग की गई है। इनके अंतर्गत यूनिवर्सिटी श्रेणी में ग्राफिक ऐरा डीम्ड यूनिवर्सिटी को 55वां, यूपीईएस 52वां, और जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय को 79वां रैंक मिला है।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि जिन संस्थाओं मुख्य सूची में रैंक हासिल किया है, उनका मूल्यांकन अन्य स्ट्रीम अथवा श्रेणी में भी किया गया है। जैसे आईआईटी रुड़की मेन रैंकिंग के साथ-साथ इंजीनियरिंग श्रेणी में भी मौजूद है।
काॅलेज श्रेणी में उत्तराखंड का एक भी काॅलेज स्थान नहीं पा सका है। इस रैंकिंग में प्राइवेट, सरकारी, एडेड, ऑटोनोमस आदि सभी श्रेणी के कॉलेज सम्मिलित किए जाते हैं। जबकि, उत्तराखंड में कई प्राइवेट कॉलेजों ने नैक से ए प्लस ग्रेड हासिल किया है। नैक से ए प्लस ग्रेड हासिल करने वाले काॅलेज या संस्थान एनआईआरएफ की मेन रैंकिंग और स्ट्रीम रैंकिंग, दोनों में स्थान नहीं पा सके, इसी स्थिति के चलते कई बार नैक की ग्रेडिंग पर सवाल खड़े होते हैं।
रिसर्च इंस्टीट्यूट श्रेणी में उत्तराखंड से केवल आईआईटी रुड़की का ही नाम शामिल है, जिसे देश भर में 7वां स्थान मिला है। मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट श्रेणी में आईआईटी रुड़की को 18वां, आईआईएम काशीपुर को 19वां, यूपीईएस को 39वां और ग्राफिक ऐरा डीम्ड वि.वि. को 65वां स्थान मिला है। फार्मेसी श्रेणी में आश्चर्यजनक रूप से कुमाऊं विवि, नैनीताल को 64वां स्थान मिला है।
आश्चर्यजनक इसलिए कि कुमाऊं वि.वि. के फार्मेसी संस्थान की चर्चा उत्तराखंड में भी यदा-कदा ही होती है। जबकि, यह संस्थान विगत चार वर्ष फार्मेसी स्ट्रीम में रैंक होल्डर है। मेडिकल श्रेणी में एम्स, ऋषिकेश ही स्थान बना सका है, जिसे देश भर में 22वां स्थान मिला है। एम्स भी विगत तीन साल से एनआईआरएफ रैंकिंग में बना हुआ है। उत्तराखंड का अन्य कोई सरकारी या प्राइवेट मेडिकल काॅलेज इस श्रेणी में रैंक हासिल नहीं कर पाया है, जबकि उत्तराखंड के कई मेडिकल संस्थान देश का नामी संस्थान होने का दावा करते रहते हैं।
डेंटल और लाॅ स्ट्रीम में उत्तराखंड के संस्थानों की उपस्थिति शून्य है। आर्किटैक्चर में पुनः आईआईटी रुड़की का नाम दर्ज है। आईआईटी रुड़की के स्कूल ऑफ आर्किटैक्चर को देशभर में पहला स्थान मिला है। एग्रीकल्चर श्रेणी में जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी यूनिवर्सिटी ने राष्ट्रीय स्तर पर आठवां स्थान पाया है। (इंजीनियरिंग स्ट्रीम में इसका स्थान 79वां है, जिसका ऊपर उल्लेख किया गया है।)
इनोवेशन श्रेणी में भी आईआईटी रुड़की ने ही प्रतिष्ठा बचाई है। इसे राष्ट्रीय स्तर पर पांचवां रैंक मिला है। अब इन सभी श्रेणियों में शामिल उत्तराखंड स्थित विश्वविद्यालयों और संस्थानों को जोड़ लीजिए तो ये कुल सात संस्थाएं।
इन सात संस्थाओं में आईआईटी रूड़की, एम्स ऋषिकेश, आईआईएम काशीपुर केंद्र सरकार के संस्थान हैं, इनमें राष्ट्रीय स्तर पर ही प्रवेश होता है। न इनमें उत्तराखंड का कोई कोटा है, न ही आरक्षण के स्थानीय मानक लागू होते और न उत्तराखंड के युवाओं को फीस आदि में किसी प्रकार की छूट मिलती है, उत्तराखंड केवल इस रूप में अपना मान सकता है कि ये प्रदेश में स्थित हैं।
ग्राफिक ऐरा डीम्ड यूनिवर्सिटी और यूपीईएस, ये दोनों प्राइवेट विश्वविद्यालय हैं। इनकी गुणवत्ता का श्रेय इन्हें संचालित करने वाले लोगों को जाता है, न कि प्रदेश सरकार को। प्रदेश के केवल दो सरकारी विश्वविद्यालयों ने क्रमश फार्मेसी और कृषि/इंजीनियरिंग की श्रेणी में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। मुख्य श्रेणी में प्रदेश का कोई सरकारी विश्वविद्यालय, संस्थान और कॉलेज शामिल नहीं हैं।
इस बार की रैंकिंग में देश भर से सभी श्रेणियों में 8686 विश्वविद्यालयों/संस्थानों ने भाग लिया। चिंता की बात यह है कि इनमें उत्तराखंड के केवल 40 संस्थाओं ने ही आवेदन किया। देशभर में प्रतिभाग करने वाले काॅलेजों का आंकड़ा 2746 था, जबकि उत्तराखंड से सरकारी, एडेड, प्राइवेट सभी मिलाकर बमुश्किल 25 काॅलेजों और संस्थानों ने एनआईआरएफ रैंकिंग में शामिल होने की जहमत उठाई।
जबकि, एआईएसएचई की वर्ष 2020-21 की रिपोर्ट बताती है कि उत्तराखंड में सभी श्रेणियों (केंद्रीय वि.वि., केंद्रीय डीम्ड वि.वि., प्राइवेट डीम्ड वि.वि., सरकारी वि.वि. और प्राइवेट वि.वि.) के तीन दर्जन विश्वविद्यालय और सभी प्रकार (राजकीय कॉलेज, प्राइवेट कॉलेज, एडेड कॉलेज, स्वायत्त कॉलेज और केंद्रीय सहायता प्राप्त कॉलेज) के 600 से अधिक कॉलेज और संस्थान संचालित हैं। इनमें से दस प्रतिशत ने भी खुद को एनआईआरएफ के मुकाबले में शामिल होने के लायक नहीं समझा।
उत्तराखंड केवल इस बात पर खुश हो सकता है कि वर्ष 2022 की रैंकिंग में मेन लिस्ट में उत्तराखंड की केवल दो संस्थाएं आईआईटी रुड़की और यूपीईएस, देहरादून शामिल थी, इस बार इसमें एम्स, ऋषिकेश और ग्राफिक ऐरा, देहरादून का नाम और जुड़ गया। इनके अलावा स्ट्रीम रैंकिंग में शामिल संस्थाओं में भी कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है।
कुल मिलाकर जिस स्थान पर पिछले साल खड़े थे, उसी स्थान पर इस साल खड़े हैं। चिंता की बात यह है कि वर्ष 2016 से लेकर अब तक उत्तराखंड का कोई भी काॅलेज किसी भी साल में एनआईआरएफ रैंकिंग में देश की टाॅप 100 संस्थाओं में शामिल नहीं रहा है।
ये एक ऐसा कड़वा सच है जिसे नैक से हासिल होने वाले ए प्लस या ए ग्रेड भी नहीं ढक पाता। हालांकि, सरकारी विश्वविद्यालयों और सरकारी काॅलेजों के मामले में तो नैक का ए प्लस या ए ग्रेड भी किसी दिवास्वप्न से कम नहीं है।
हालांकि, आने वाले सालों में थोड़ी-सी उम्मीद कर सकते हैं क्योंकि राज्य सरकार ने नैक और एनआईआरएफ ग्रेड के लिए काॅलेजों/संस्थानों पर दबाव बनाया हुआ है।
लेखक: डाॅ. सुशील उपाध्याय