एकलव्य विश्वविद्यालय दमोह के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ आशीष जैन का हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर में एक विशेष व्याख्यान दिया।
आचार्य अमित गति का सुभाषित रत्नसंदोह ग्रंथ जो राजा मुंजराज के समय लिखा गया था । जिसके 32 प्रकरण के 922 पद्य चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास का आधार है । जिसमें सद प्रवृतियों के ग्रहण तथा असद प्रवृत्तियों त्याग से मानव जीवन मे व्यक्तित्व का विकास संभव है ।
संस्कृत विभाग एकलव्य विश्वविद्यालय के अध्यक्ष डॉ आशीष जैन शिक्षाचार्य ने सुभाषित रत्नसंदोह नामक ग्रंथ को नई शिक्षा नीति में स्थान हेतु सागर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर नीलिमा गुप्ता एवं शिक्षा व संस्कृति न्यास के निदेशक श्री अतुल कोठारी जी से आग्रह किया । उन्होंने इस ग्रन्थ के पाठ्यक्रम को बनाकर सम्मिट करने के लिए कहा गया है ।
इसके पहले भी डॉ जैन ने नई शिक्षा नीति 2020 के पाठ्यक्रम के अंतर्गत पर्यावरण-योग,आयुर्वेद आदि विषयों के पाठ्यक्रम में जैन दर्शन की अवधारणाओं को जोड़कर अन्य शासकीय विश्विद्यालय के प्रोफेसर के साथ नई शिक्षा नीति पर कार्य कर चुके हैं ।
प्राचीन भारतीय दार्शनिक चिंतन मानव सभ्यता के विकास के साथ साथ सतत गतिमान रहा है समाज संस्कृति शिक्षा साहित्य और समाजीकरण के विकास की प्रक्रिया में चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास के आधार रूप में मानव के कर्तव्य कर्तव्य उचित अनुचित धर्म अधर्म उन पाप सदाचरण सदाचरण सज्जनता दुर्जन का आदि अवधारणाओं का चिंतन ऋषि यों महर्षि यों मुनियों दार्शनिकों ने मानव सभ्यता की निर्माण एवं विकास योजना के संरक्षण प्रतिष्ठा के लिए सुभाषित नीतिशतक वैराग शतक आत्मानुशासन शब्दों की आवश्यकता को ध्यान में रखकर मानव सभ्यता का मार्ग प्रशस्त किया है