पर्यावरण संरक्षण वर्तमान की जरूरत, विषय पर राजकीय महाविद्यालय पौखाल, टिहरी गढ़वाल, के डॉ० बबीत कुमार बिहान का लेख।
पर्यावरण अर्थात ‘परी’ एवं ‘आवरण’। ‘परी’ का शाब्दिक अर्थ होता है ‘चारों ओर’ तथा ‘आवरण’ का अर्थ ‘घेरा’ अर्थात प्रकृति का हमारे चारों ओर घेरा।इसके अंतर्गत आने वाले पादप, प्राणी, मृदा, जल, वायु आदि सभी इसके अभिन्न अंग है। इन्हीं से मिलकर पर्यावरण का सृजन होता है।
हर्सकोविट्स विद्वान ने पर्यावरण को परिभाषित किया जिसमें बताया कि ‘पर्यावरण समस्त परिस्थितियों और उसका जीवधारीयों पर पड़ने वाला प्रभाव है, जो जैव जगत के विकास चक्र का नियामक है।’ तथा डेविस विद्वान ने पर्यावरण संबंध में कहा कि ‘मनुष्य के संबंध में पर्यावरण से अर्थ भूतल पर मनुष्यों के चारों ओर फैले उन सभी भौतिक रूपों से है, जिनसे वह निरंतर प्रभावित होता रहता है।’
पर्यावरण के अंतर्गत विभिन्न तत्वों के मध्य क्रियाएं प्रतिक्रियाएं चलती रहती है जिससे वातावरण का सृजन होता है। जिसमें मनुष्य के सामाजिक, मानसिक व स्वास्थ्य विकास के लिए एक स्वच्छ जलमंडल स्थल मंडल तथा वायुमंडल का योग होना आवश्यक है।
मानव का पर्यावरण से संबंध है मानव की उत्पत्ति से लेकर वर्तमान तक उसकी निर्भरता पर्यावरण पर बनी हुई है, लेकिन विकास और प्रौद्योगिकी के वर्तमान युग में मानवीय गतिविधियों और क्रियाकलापों से पर्यावरण को अति क्षति पहुंची है यही कारण है कि वर्तमान में जिला, राज्य,देश व वैश्विक स्तर पर एक चुनौती के रूप में पर्यावरण संरक्षण की जरूरत महसूस की जा रही है।
भारतीय संदर्भ में भी वर्तमान में दिल्ली में बढ़ता हुआ प्रदूषण देख सकते हैं जिसमें ए.क्यू.आई. 355 को पार कर गया है। दिल्ली एनसीआर ही नहीं भारत के अन्य बड़े शहर जैसे जयपुर, रोहतक, बिहार छपरा, उड़ीसा आदि में भी एयर क्वालिटी इंडेक्स अच्छा नहीं है।
एयर क्वालिटी इंडेक्स 50 तक अच्छा माना जाता है लेकिन 100 हो जाए तो बीमार श्रेणी में 200 खराब श्रेणी में और 300 बेहद खराब श्रेणी में आता है।जिसका मानव समाज पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।
वायु प्रदूषण की समस्या की जड़ें काफी पुरानी है जब मनुष्य ने भोजन पकाने और ऊष्मा प्राप्त करने के लिए लकड़ी तथा अन्य ईंधन सामग्री को जलाना शुरू किया था और वर्तमान में औद्योगीकरण व सड़कों पर कार, अन्य वाहन ट्रैकों का जाल सभी वायु प्रदूषण के कारण है।
संरचनात्मक स्तर पर पृथ्वी के वायुमंडल में 78.03% नाइट्रोजन, 20.99% ऑक्सीजन, 0.94 प्रतिशत आर्गन, 0.03% कार्बन डाइऑक्साइड तथा शेष 0.01% हाइड्रोजन, ओजोन, नियॉन व हीलियम आदि गैसें हैं। वायुमंडल की प्राणदायी ऑक्सीजन पौधों के कारण वायुमंडल में उपस्थित होती है।
इसलिए वर्तमान में स्वच्छ पर्यावरण पाना है तो पेड़ पौधे अधिक से अधिक लगाने होंगे।मैन्युफैक्चरिंग फैक्ट्रीयों को शहर से बाहर लगाना होगा।
ट्रैफिक व टोल प्लाजा पर लगने वाला जाम की समस्या पर विचार करना होगा। इलेक्ट्रिक वाहनों पर ज्यादा विचार करना होगा तथा व्यक्तियों को पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर जाने पर विचार करना होगा न की स्वयं की कारों पर। थोड़ा बहुत दूर जाने के लिए साइकिल आदि पर विचार करना होगा।
पर्यावरण संरक्षण पाना है तो आदिम परंपराओं पर जाना होगा जिसमें वृक्ष, वनस्पतियों व नदियों आदि को पूजने की परंपरा रही है। तभी हम स्वयं व आने वाली नई पीढ़ी को स्वच्छ पर्यावरण स्वच्छ जीवन दे सकते हैं। अन्यथा दशा व दिशा खराब होने में देर नहीं लगेगी।


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