03 सितम्बर 2024 को राजकीय महाविद्यालय चिन्यालीसौड़ में भारतीय ज्ञान परम्परा तथा पर्यावरणीय चेतना विषय पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया।

गणमान्य अतिथियों तथा महाविद्यालय के प्राचार्य ने दीप प्रज्ज्वलन तथा सरस्वती वन्दना के साथ सेमिनार का षुभारम्भ किया। उद्घाटन एवं स्वागत सत्र में सेमिनार के अध्यक्ष तथा महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो0 प्रभात द्विवेदी जी के द्वारा अगन्तुक अतिथियों को पुश्पगुच्छ, शाल तथा स्मृति चिन्ह भेंटकर उनका अभिनन्दन किया गया।

सेमिनार में मुख्य अतिथि तथा मुख्य वक्ता के रूप में राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय टीकमगढ़ मध्यप्रदेेश के पूर्व प्राचार्य, वर्तमान में सन्त रामदास स्नातकोत्तर महाविद्यालय टीकमगढ़ के प्राचार्य, सुप्रसिद्ध भूगोलवेत्ता एवं लेखक प्रो0 नरेन्द्र मोहन अवस्थी, विषिश्ट अतिथि श्रीमती सरोज अवस्थी, डाॅ0 सुमन द्विवेदी तथा आमन्त्रित व्याख्यानकर्ता राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय नई टिहरी से पधारी अंग्रेजी विभाग की प्राध्यापिका डाॅ0 वन्दना चैहान महाविद्यालय में उपस्थित रहे।

आन लाइन माध्यम से जुड़े विशिष्ट अतिथियों तथा आमन्त्रित व्याखानकर्ताओं में बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रो0 राजन कुमार गुप्ता, राजकीय महाविद्यालय कमान्द टिहरी गढ़वाल की प्राचार्या प्रो0 गोरी सेवक, श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय ऋषिकेश परिसर से कला संकायाध्क्ष तथा भूगोल विभागाध्यक्ष प्रो0 दिनेष चन्द्र गोस्वामी तथा राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय उत्तरकाशी से डाॅ0 महेन्द्रपाल सिंह परमार सम्मिलित रहे।

सेमिनार की आयोजन सचिव डाॅ0 रजनी लस्याल ने सभी बुद्धिजीवियों तथा प्रतिभागियों का स्वागत किया और सेमिनार की रूप-रेखा तथा पृष्ठभूमि से अवगत करवाया।

महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो0 प्रभात द्विवेदी ने स्वागत संबोधन में कहा कि इस सेमिनार के माध्यम से प्रकृति, पर्यावरण तथा भारतीय ज्ञान परम्परा पर विचार मंथन से जो ज्ञानरूपी अमृत प्राप्त होगा उससे हम अपने समाज और देेश की सेवा कर पाने के लिए और अधिक जागरूक तथा संकल्पबद्ध होगें।

इस सेमिनार से जो निष्कर्ष तथा सुझाव निकलेगें वह सम्पूर्ण जनमानस के लिए बहुमूल्य होंगें और वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को दृढ़ता प्रदान करेंगें।

उन्होंने साक्षात तथा आभासी रूप से सेमिनार से जुड़े अतिथियों, व्याख्यानकर्ताओं, प्रतिभागियों तथा महाविद्यालय परिवार के प्रति आभार व्यक्त किया।

मुख्य वक्ता तथा मुख्य अतिथि प्रो0 अवस्थी ने अपने व्याख्यान में धर्मग्रन्थों, वेदों, शास्त्रों, हिन्दू, इस्लाम, जैन, बौद्ध तथा आधुनिक धर्म हमारे महान संविधान में समाहित पर्यावरणीय मुद्दों पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला।

उन्होंने कहा कि हमारी पुरातन किन्तु अति समृद्ध ज्ञान परम्परा का अनुसरण करके हम अपने पर्यावरण जगत को अधिक सरलता तथा बारीकी से समझ सकते हैं क्योंकि इसके बाद ही पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन हेतु अभिनव समाधान तलाशे जा सकते हैं।

प्रो0 अवस्थी के ऊर्जावान, प्रेरक तथा आत्मीयता से परिपूर्ण सम्बोधन में सभी उपस्थित जनों को मंत्रमुग्ध कर दिया। तत्पपश्चात अंटार्कटिका जाने वाले भारतीय वैज्ञानिक अभियान दल के दो बार के सदस्य तथा पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव द्वारा सम्मानित प्रो0 राजन कुमार गुप्ता ने अंटार्कटिका अभियानों के अपने अनुभव साझा किये।

उन्होंने अंटार्कटिका महाद्वीप की निरन्तर गिरती हुई और प्रदूशित होती हुई पर्यावरणीय स्थतियों पर रोचकपूर्ण प्रस्तुतिकरण भी दिया। उन्होनंे चिन्ता व्यक्त की कि मानवजनित गतिविधियों से पृथ्वी का सबसे स्वच्छ स्थान अंटार्कटिका पारिस्थितिक पतन की ओर जा रहा है। इसके बाद प्रो0 गोरी सेवक ने अपने व्याख्यान में कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा तो हमारे रक्त में है।

सूर्य नमस्कार, छठ पूजा, अन्य उत्सव हमारी शानदार सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक हैं। वैदिक कृशि, जल प्रबन्धन तथा जल संरक्षण हमारे प्राचीन नगर प्रबन्धन का आरम्भ से ही हिस्सा रहे हैं।

प्रो0 गोस्वामी ने भारतीय ज्ञान परम्परा के तीन प्रमुख सतम्भों पर जोर देते हुए कहा कि नियम, संयम तथा सद्भाव, इनके आधार पर ही नैतिक मूल्य, चरित्र निर्माण तथा मानव कल्याण संभव है।

उन्होंने विषेश रूप से उत्तराखण्ड के चिपको आन्दोलन, हरेला उत्सव तथा वृक्षों के संरक्षण हेतु अपनी शहादत देने वाले वीरों का भी उल्लेख किया।

डाॅ0 महेन्द्रपाल सिंह परमार ने अपनी प्रस्तुति में उत्तराखण्ड के स्थानीय कृशि तथा वन्य उत्पादों की सहायता से आजीविका तथा आर्थिक लाभ अर्जित करने के माध्यमों पर चर्चा की।

सेमिनार के द्वितीय तकनीकी सत्र में डाॅ0 वन्दना चैहान ने आर्य भट्ट, सुश्रुत तथा चरक संहिता आदि के विशय में बताया कि आज से हजारों वर्ष पूर्व ही हमारे देश के महान गणितज्ञ, विज्ञानी तथा महापुरूश प्रकृति चक्र और उसके मानवजाति पर पड़ने वाले प्रभावों को परिभाशित कर चुके हैं।

आॅन लाइन रूप से जुड़े विभिन्न प्रतिभागियों के द्वारा शोध पत्र भी प्रस्तुत किये गये। प्रतिभागियों ने प्ररशत्तर सत्र के दौरान वििषय विषेशज्ञों से कई पहलुओं पर सवाल पूछकर अपना ज्ञानवर्धन किया। सेमिनार के समापन सत्र में मुख्य अतिथि प्रो0 नरेन्द्रमोहन अवस्थी ने षोध पत्र लेखन, उच्च स्तरीय अकादमिक क्रियाकलापों तथा गतिविधियों के आयोजन हेतु महत्वपूर्ण एवं बहुमूल्य सुझाव दिये जिसको लेकर प्रतिभागियों ने उनकों विशेष धन्यवाद दिया।

सेमिनार संयोजक डाॅ0 कििशोर सिंह चैहान ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा तथा पर्यावरण चेतना वििषय को किताबों से धरातल पर उतारने की आवश्यकता है, जिसके लिए भारत के प्रत्येक विद्यार्थी को अपने जीवन में कम से कम दस पौधों का रोपण अनिवार्य रूप से करना चाहिए।

डाॅ0 चैहान ने बताया कि वे लगातार 26 वर्षो से भारत के विद्यार्थियों को इस दिशा में जागरूक करने का काम कर रहे हैं तथा भारत सरकारसे निरन्तर मांग कर रहे हैं कि वृक्षारोपण कार्य को पाठ्यक्रम में लागू किया जाय। अन्त में सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हुए प्राचार्य प्रो0 प्रभात द्विवेदी जी ने कहा कि इस सेमिनार से प्राप्त सुझावों तथा निश्कर्शों का अनुपालन करके समाज विषेश रूप से युवाओं में जागरूकता, समर्पण तथा योगदान की भावना अभिप्रेरित करके पर्यावरण संरक्षण तथा भारतीय ज्ञान के विस्तार हेतु सार्थक एवं सकारात्मक प्रयास करने संभव होंगें।

प्रो0 द्विवेदी ने मंच के माध्यम से उत्तराखण्ड सरकार तथा माननीय मुख्य मंत्री श्री पुश्कर सिंह धामी जी को अब से हर वर्श 02 सितम्बर के दिन प्रदेेश में बुग्याल संरक्षण दिवस मनाये जाने की घोोषणा के लिए विशेष हार्दिक धन्यवाद दिया।

सेमिनार का सफल मंच संचालन डाॅ0 विनीत कुमार तथा डाॅ0 सुगन्धा वर्मा ने किया। इस सेमिनार में 90 से अधिक प्रतिभागी तथा बड़ी मात्र में छात्र-छात्राऐं उपस्थित रहे। महाविद्यालय के डाॅ0 प्रमोद कुमार, डाॅ0 खुशपाल, डाॅ0 बृजेष चैहान, डाॅ0 अराधना सिंह, डाॅ0 भूपेश पंत, डाॅ0 निषी दुबे, डाॅ0 यशवंत सिंह  , डाॅ0 प्रभात कुमार, वैभव कुमार, अराधना राठौर, डाॅ0 अषोक अग्रवाल, आलोक बिजल्वाण, रामचन्द्र नौटियाल, संगीता थपलियाल, स्वर्ण सिंह, मदन सिंह, जय प्रकाश आदि उपस्थित रहे।