राजकीय महाविद्यालय अगरोड़ा, टिहरी गढ़वाल मे प्रभारी प्राचार्य डॉ० अजय कुमार की अध्यक्षता मे डॉ० आराधना बंधानी, असिस्टेंट प्रोफेसर- समाजशास्त्र द्वारा लैंगिक समानता तथा महिला सशक्तिकरण विषय पर एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया।

सेमिनार के संयोजक एवं मुख्य वक्ता डॉ० आराधना बंधानी ने अपने प्रस्तुतीकरण के माध्यम से विस्तृत जानकारी प्रदान करते हुए बताया कि महिला सशक्तिकरण का साधारण शब्दो में अर्थ है कि महिलाओ को अपनी जिंदगी का फैसला करने की स्वतंत्रता देना अथवा उनमें ऐसी क्षमताएं पैदा करना ताकि वह समाज मे अपना सही व मजबूत स्थान स्थापित कर सके।

प्राचीन से लेकर आधुनिक काल तक महिला की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति समान नहीं रही है। महिलाओं के हालातों में कई बार बदलाव हुए हैं। प्राचीन भारत में महिलाओं को पुरुषों के समान दर्जा प्राप्त था। सभी प्रकार की भेदभावपूर्ण प्रथाएँ बाल विवाह, देवदासी प्रणाली, नगर वधु, सती प्रथा आदि से शुरू हुई है।

महिलाओं के सामाजिक-राजनीतिक अधिकारों को कम कर दिया गया और इससे वे परिवार के पुरुष सदस्यों पर पूरी तरह से निर्भर हो गई। शिक्षा के अधिकार, काम करने के अधिकार और खुद के लिए फैसला करने के अधिकार उनसे छीन लिए गए। इन सभी समस्याओं को देखते हुए महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता पड़ी तथा महिलाओं को सशक्त करने हेतु नियम तथा कानून बनाये गये।

प्रभारी प्राचार्य ने बताया कि कहा कि प्रत्येक वर्ष 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस, महिलाओ की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक उपलब्धियों का उत्सव मनाने के लिए मनाया जाता है। यह दिन दुनिया भर में लैंगिक असमानता के खिलाफ कार्रवाई करने के समर्थन में भी मनाया जाता है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ० भरत गिरी गोसाईं ने कहा कि महिला सशक्तिकरण का मतलब महिला की सक्ति से होता है। आज के समय में हर देश यही चाहता है की उसके देश की महिला खुद अपनी रक्षा कर सके। आज हम सब जानते है कि हमारे समाज की महिलाये किसी भी पुरुष से कम नहीं है।

आज किस समय में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर कार्य करने में निपुण। अर्थशास्त्र के सहायक प्राध्यापक श्री अनुपम रावत द्वारा सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया गया। आज के इस कार्यक्रम में महाविद्यालय के प्राध्यापक गण कर्मचारी वर्ग एवं छात्र छात्राएं मौजूद रहे।