डॉ अशोक कुमार अग्रवाल आप वनस्पति विज्ञान विभाग, रा० महाविद्यालय चिन्यालीसौड़, उत्तरकाशी में वनस्पति विज्ञान विभाग में कार्यरत हैं डॉ अशोक का पर्यावरण को लेकर बहुत ही उपयोगी लेख
उत्तराखंड के जंगलों में बीते कई दिनों से भीषण आग लगी हुई है, कई हेक्टेयर जंगल जल चुके हैं l जंगल जलते हैं तो वनस्पति को नुकसान ही नहीं होता, बल्कि जंगली जीवन पर भी इसका बड़ा असर होता है l जंगली जीव और जानवर बड़ी संख्या में मारे जाते हैं l आग को बुझाने और फैलने से रोकने की कोशिशें जारी हैं l गर्मी बढ़ने के साथ उत्तराखंड के जंगल भी जलने लगे हैं l जंगल में आग लगने के मामले बढ़ रहे हैं l फायर सीजन शुरू होने के बाद से ही तापमान में बढ़ोतरी के साथ-साथ राज्य भर में जंगलों के सुलगने का सिलसिला तेज हो चला है l वनों में आग की इन घटनाओं से वन संपदा का भारी नुकसान तो होता ही है, साथ ही अनेक प्रजातियों के पौधे, दुर्लभ जड़ी बूटियां और वनस्पति भी नष्ट हो जाती हैं, साथ ही वन्यजीव भी अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागते हैं l आग से वन संपदा को नुकसान के साथ वन्यजीवों को भी खतरा बन गया है l इसका पर्यावरण पर भी गहरा प्रभाव पड़ रहा है l
वनों की आग ने उत्तराखंड की हवा को प्रदूषित कर दिया है l जंगल की आग की घटनाओं के बाद यहां ब्लैक कार्बन की मात्रा में भी आश्चर्यजनक ढंग से कई गुना वृद्धि हुई है l जंगलों में आग लगने की एक अहम वजह चीड़ के पत्ते भी हैं, स्थानीय भाषा में इन्हें पिरुल कहते हैं l सूखे हुए चीड़ के पत्तों में आग जल्दी लगती है और तेजी से फैलती भी है l चीड़ के पेड़ में 20 से 25 सेंटीमीटर लंबे नुकीले पत्ते होते हैं जो गर्मियों मैं सूखते ही जमीन पर गिरते हैं, यह इतने ज्वलनशील होते हैं कि अगर थोड़ा भी कहीं आग पकड़ ली तो फिर बुझाना मुश्किल होता है और थोड़ी सी हवा चलने पर आग की रफ्तार बेकाबू हो जाती है l तेज धूप के कारण जंगल में घास और लकड़ी सुख जाती हैं जो आग को तेजी से फैलने में मदद करती हैं l
उत्तराखंड में वनों की प्रकृति
उत्तराखंड का भौगोलिक क्क्षेत्रफल 53,483 वर्ग किलोमीटर है l इसमें 64.79% यानी 34,651.014 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है l 24,414.408 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र वन विभाग के नियंत्रण में है l वन विभाग के नियंत्रण वाले क्षेत्र में से लगभग 24,260.783 वर्ग किलोमीटर आरक्षित वन क्षेत्र है, शेष 139.653 वर्ग किलोमीटर जंगल वन पंचायतों के नियंत्रण में है l वन विभाग के नियंत्रण वाले वनों में से 3,94,383.84 हेक्टेयर मे चीड़ के, 3,83,088.12 हेक्टेयर में बंlज के और 6,14,361 हेक्टेयर में मिश्रित जंगल हैं, और लगभग 22.17℅ क्षेत्र रिक्त हैं l
वन संरक्षण अधिनियम, 1980 और राष्ट्रीय वन नीति, 1988
भारत विभिन्न प्रकार के वनों के साथ दुनिया में अत्यधिक विविधता वाले देशों में से एक है, प्राप्त आंकड़ों के अनुसार देश का 20 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र वन क्षेत्र में है l राष्ट्रीय वन नीति, 1988 का लक्ष्य भारत में वन क्षेत्र को कुल क्षेत्र के एक तिहाई तक विस्तार करना है l
1988 की राष्ट्रीय वन नीति में भी जंगलों में लगने वाली आग पर नियंत्रण के लिए खास मौसम में विशेष सावधानी बरतने और इसके लिए आधुनिक तरीके अपनाने की बात कही गई है l
भारत में वनों का संरक्षण, वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के क्रियान्वयन और संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना के माध्यम से किया जाता हैl भारत सरकार ने 597 संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना की है, जिसमें से 95 राष्ट्रीय उद्यान और 500 अभ्यारण हैं l उपरोक्त क्षेत्र देश के भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 5% है l
जंगल की आग से पारिस्थितिकी पर पड़ने वाले प्रभाव
1.वनों की जैव विविधता को हानि l
2.वनों के क्षेत्र विशेष एवं आसपास के क्षेत्र में प्रदूषण की समस्या में वृद्धि l
3.मृदा की उर्वरता में कमी l
4.ग्लोबल वार्मिंग में सहायक गैसों का अत्यधिक उत्सर्जन l
5.खाद्य श्रृंखला का असंतुलन l
6.वनों मे आग की इन घटनाओं में वन संपदा को भारी नुकसान तो होता ही है, साथ ही अनेक प्रजातियों के पौधे दुर्लभ जड़ी-बूटियों और वनस्पतियां भी नष्ट हो जाती हैं l
7.जंगल में लगी आग से जैव विविधता को नुकसान पहुंचता है तथा वन्य जीव भी अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागते हैं l
8.भीषण आग में अनेक प्रजातियों के जीव जंतुओं और वनस्पतियों की विभिन्न प्रजातियों के विलुप्त होने की आशंका बनी रहती है, जिससे भविष्य में पारिस्थितिकी संकट उत्पन्न हो सकता है l
क्षेत्र विशेष की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव
वनों के आसपास रहने वाले उन लोगों की आजीविका रहित हो जाना जिनकी आजीविका वन उत्पाद पर निर्भर होती है l
वनों पर आधारित उद्योगों एवं रोजगार की हानि l
वनों पर आधारित पर्यटन उद्योग को नुकसान l
वनों की कीमती लकड़ी की हानि व वनों में मिलने वाली औषधीय गुणों से युक्त वनस्पतियों की हानि l
कंट्रोल फायर लाइन
कंट्रोल फायर लाइन यानी इसे अग्नि नियंत्रण रेखा भी कहा जाता है l यह वह सीमा रेखा है जिसके आगे आग को बढ़ने से रोकने का प्रयास किया जाता है l इन फायर कंट्रोल लाइनों में ऐसी वनस्पतियां उगाई जाती हैं, जो आग को फैलने से रोकने में कारगर साबित होती हैं l आज भी कई जगहों पर ऐसी कंट्रोल फायर लाइने बनती हैं लेकिन इनका दायरा बढ़ाने की जरूरत है l
1992 मे रियो में हुए पृथ्वी सम्मेलन में जंगल में लगने वाली आग से उत्पन्न होने वाली विभिन्न समस्याओं पर विस्तार से चर्चा की गई थी
भूमि के अनियंत्रित ह्रास और भूमि के दूसरे कामों में बढ़ते उपयोग मनुष्य की बढ़ती जरूरतों कृषि के विस्तार और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली प्रबंधन तकनीकी दुनिया भर के वनों के लिए खतरा पैदा हो गया है l जंगल की आग पर नियंत्रण पाने के अपर्याप्त साधन, चोरी-छिपे लकड़ी की कटाई को रोकने के प्रभावी उपाय न किया जाना और व्यापारिक गतिविधियों के लिए लकड़ी की कटाई आदि भी इसके लिए जिम्मेवार है l जानवर चराने, वातावरण में मौजूद प्रदूषण का घातक असर, विभिन्न क्षेत्रों को मिले आर्थिक प्रोत्साहन और अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों के लिए किए गए कुछ उपायों से भी यह संकट बढा है l वनों के ह्रास से भूमि कटाव, जैव विविधता को नुकसान, वन्यजीवों की कमी और जल स्रोतो का ह्रास हुआ है इससे जीवन की गुणवत्ता और विकास के अवसरों में भी कमी आई है l
पिछले कुछ वर्षों से उत्तराखंड के वनों में आग लगने की घटनाओं में काफी वृद्धि हुई है l उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की घटनाओं से हर साल बड़ी संख्या में पेड़-पौधे जीव जंतु और पर्यावरण को तो नुकसान पहुंचा है, वही वायु प्रदूषण और ताप की समस्या भी क्षेत्र के पर्यावरण को प्रभावित करती है l मेरा मानना है कि वनों में लगी आग से क्षेत्र विशेष का भौगोलिक आर्थिक एवं सामाजिक परिवेश व्यापक स्तर पर प्रभावित होता है l अतः इन घटनाओं को न्यूनतम किए जाने के प्रयास करने चाहिए l आपदा प्रबंधन के समुचित उपायों के साथ-साथ आग के प्रति संवेदनशील वन क्षेत्र एवं मौसम मे वनों में मानवीय क्रियाकलापों को बंद या न्यूनतम किया जाना चाहिए तथा संवेदनशील क्षेत्रों में आधुनिकतम तकनीकी से युक्त संसाधनों के साथ पर्याप्त आपदा प्रबंधन बल की तैनाती की जानी चाहिए, साथ ही आग बुझाने के नए उपकरणों सहित उन तमाम जरूरतों को भी पूरा करना होगा जो जंगल की आग के नियंत्रण के लिए जरूरी है, साथ ही चीड़ की जगह मिश्रित वन बांज, बुराश और काफल जैसी प्रजातियां उगानी चाहिए, जिन में आग लगने की घटनाएं कम होती हैं और पानी की मौजूदगी के चलते वनो को आग से निपटना अपेक्षाकृत कम मुश्किल होता ह