श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के फैकल्टी डेवलपमेंट सेंटर द्वारा आयोजित “Empowering Educators through IPR Literacy and Innovation” विषयक एक सप्ताहव्यापी फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम के अंतर्गत 12 सितम्बर 2025 को बौद्धिक संपदा अधिकारों से जुड़े विविध अकादमिक एवं तकनीकी पहलुओं पर केंद्रित सत्र आयोजित हुए।
दिन की शुरुआत सुश्री मुस्कान रस्तोगी, के व्याख्यान से हुई। उन्होंने “Patent Filing Procedure in India, Patent Prosecution & Examination” विषय पर विस्तार से चर्चा करते हुए पेटेंट आवेदन की चरणबद्ध प्रक्रिया, आवश्यक दस्तावेज़, कानूनी प्रावधान और परीक्षा प्रणाली को सरल उदाहरणों के माध्यम से समझाया। उनके व्याख्यान ने प्रतिभागियों को पेटेंट प्रणाली की व्यावहारिक समझ प्रदान की।
इसके पश्चात् डॉ. चंदर मोहन नेगी, दिल्ली विश्वविद्यालय ने “Patents, Public Goods, and Development Challenges in India” विषय पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि पेटेंट केवल निजी आविष्कारों की सुरक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज और सार्वजनिक संसाधनों के विकास से भी गहराई से जुड़ा है। उन्होंने विकासशील देशों के संदर्भ में पेटेंट नीतियों की चुनौतियों और अवसरों पर विशेष रूप से प्रकाश डाला।
दोपहर भोजनावकाश के पश्चात् , तीसरे सत्र का संचालन डॉ. कलैयारासन अरुमुगम, मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज़, चेन्नई द्वारा किया गया। उन्होंने “Trade, TRIPS and Development: A Perspective from Developing Economies” विषय पर अत्यंत प्रभावशाली व्याख्यान प्रस्तुत किया। अपने संबोधन में उन्होंने बताया कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार (Trade) और बौद्धिक संपदा अधिकारों की अंतरराष्ट्रीय संधि (TRIPS Agreement)
आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था में विकासशील देशों की नीतियों पर गहरा प्रभाव डालते हैं। उन्होंने इस बात पर विशेष जोर दिया कि किस प्रकार विकासशील राष्ट्र, सीमित संसाधनों और बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बीच, नवाचार को प्रोत्साहित करते हुए अपनी स्थानीय आवश्यकताओं और राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सकते हैं।
उन्होंने बताया कि विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ किस प्रकार इन प्रावधानों के बीच अपने राष्ट्रीय हितों और विकास के लक्ष्य को संतुलित कर सकती हैं। उन्होंने कई उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट किया कि TRIPS के प्रावधान जहाँ एक ओर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को बौद्धिक संपदा की मज़बूत सुरक्षा प्रदान करते हैं, वहीं दूसरी ओर विकासशील देशों के लिए यह चुनौती भी बन जाते हैं—विशेषकर दवाओं, कृषि और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में।
सत्र के अंत में उन्होंने प्रतिभागियों को सुझाव दिया कि शोध और नवाचार करते समय केवल पेटेंट प्राप्त करने की दिशा में ही नहीं, बल्कि उसके सामाजिक और आर्थिक प्रभाव को ध्यान में रखते हुए कार्य करना चाहिए। उनका व्याख्यान प्रतिभागियों के लिए नीतिगत दृष्टिकोण और अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य को समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर रहा।
अंतिम सत्र में डॉ. दिव्या श्रीवास्तव, सह-संस्थापक, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट लैब्स द्वारा लिया गया। उनका विषय था “AI Made IPR Simple: Practical Tools for Protecting Ideas and Original Work”।
उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित आधुनिक टूल्स और तकनीकों के माध्यम से बौद्धिक संपदा की रक्षा के व्यावहारिक उपाय प्रस्तुत किए। यह सत्र विशेष रूप से शिक्षाविदों और शोधकर्ताओं के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुआ।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. एन. के. जोशी ने अपने संदेश में कहा कि “ऐसे आयोजन न केवल शिक्षकों के ज्ञान को विस्तार देते हैं, बल्कि शोध एवं नवाचार की संस्कृति को भी प्रोत्साहित करते हैं।
विश्वविद्यालय का प्रयास है कि प्रत्येक संकाय सदस्य को कम से कम एक पेटेंट प्राप्त करने की दिशा में प्रेरित किया जाए। इसी तरह के प्रयास हमारे अकादमिक वातावरण को और अधिक सशक्त बनाएंगे।”
फैकल्टी डेवलपमेंट सेंटर की निदेशक एवं गणित विभागाध्यक्ष प्रो. अनीता तोमर ने सभी वक्ताओं और प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि “IPR की समझ आज के समय में हर शोधकर्ता और शिक्षक के लिए अत्यंत आवश्यक है।
यह FDP केवल सैद्धांतिक प्रशिक्षण नहीं, बल्कि नवाचार की दिशा में व्यावहारिक प्रेरणा भी प्रदान कर रहा है। हमें विश्वास है कि आने वाले दिनों में हमारे विश्वविद्यालय के संकाय सदस्य न केवल पेटेंट प्राप्त करेंगे बल्कि अपने शोध को वैश्विक स्तर पर स्थापित भी करेंगे।”
सभी सत्रों में संकाय सदस्यों एवं प्रतिभागियों ने सक्रिय रूप से प्रश्न पूछे और विशेषज्ञों के साथ संवाद स्थापित किया। इससे प्रतिभागियों को न केवल IPR की सैद्धांतिक समझ मिली, बल्कि इसके व्यावहारिक उपयोग और संभावनाओं की भी जानकारी प्राप्त हुई।