- भारतीय ज्ञान परंपरा में ज्ञान और विज्ञान, लौकिक और पारलौकिक दृष्टि, धर्म एवं कर्म का विलक्षण समन्वय है- प्रो0 एन0के0 जोशी।
श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय द्वारा ”एक विश्वविद्यालय एक विषय“ के अन्तर्गत ऋषिकेश परिसर में स्थापित भारतीय ज्ञान परम्परा केन्द्र द्वारा 02 दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य शुभारंभ किया गया।
जिसमें देश विदेश के विषय-विशेषज्ञों एवं शोधार्थियों द्वारा बढ़-चढ़कर प्रतिभाग किया गया।
संगोष्टी का उद्घाटन संगोष्ठी के अध्यक्ष एवं श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो0 एन0के0 जोशी, मुख्य अतिथि पूर्व कुलपति, गढ़वाल एवं कुमांऊ विश्वविद्यालय प्रो0 वी0एस0 राजपूत, विशिष्ट अतिथि उत्तराखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 दिनेश चन्द्र शास्त्री की-नोट स्पीकर केन कोसीबा (यू0एस0ए0), परिसर के निदेशक प्रो0 महाबीर सिंह रावत, संकाय विकास केन्द्र की निदेशक एवं संगोष्ठी की संयोजक प्रो0 अनिता तोमर, भारतीय ज्ञान पंरम्परा केन्द्र की निदेशक एवं संगोष्ठी की आयोजन सचिव प्रो0 कल्पना पंत, प्रो0 पूनम पाठक द्वारा किया गया।
परिसर के निदेशक प्रो0 रावत द्वारा देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, शोध केन्द्रो से संगोष्ठी में पधारे अतिथियों का स्वागत करते हुए संगोष्ठी के विषय में विस्तृृत जानकारी प्रस्तुत की।
तत्पश्चात संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के मा0 कुलपति प्रो0 एन0 के0 जोशी ने अपने वक्तव्य में कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीय ज्ञान परंपरा को शिक्षा के केंद्रीय आधार के रूप में शामिल किया गया है।
यदि शिक्षा का तात्पर्य मनुष्य को जीवनयापन में सफल बनाना है तो आज तक शिक्षा के क्षेत्र में हमने विलक्षण प्रगति की है किन्तु शिक्षा का उद्देश्य जीवन को सार्थक करना है और भारतीय पुरातन ज्ञान इसी धारणा पर अवलंबित है।
छान्दोग्योपनिषद में चिकित्सा विज्ञान, धातु विज्ञान, कृषि विज्ञान, वस्त्र विज्ञान, संगीत नाट्य .वेद, कर्मकांड के साथ-साथ बहुविध जीवनोपयोगी तकनीकी एवं व्यावसायिक सैंतीस और विषयों कि चर्चा है।
उन्होने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में ज्ञान और विज्ञान, लौकिक और पारलौकिक दृष्टि, धर्म एवं कर्म का विलक्षण समन्वय है। इन्हीं बिन्दुओं पर गहन चिंतन और मनन करने तथा भारतीय ज्ञान संपदा को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में समझने के लिए आज हम सब यहां एकत्र हुए हैं।
इस संगोष्ठी में प्राचीन भारतीय आयुर्वेद, गणित, पर्यावरण, कृषि, अर्थशास्त्र, धर्मग्रंथ, दर्शन, पारंपरिक भारतीय विज्ञान, वैमानिकी, वैदिक मंत्रों के अनुगूँज आधारित प्रभाव, खगोल, वास्तुशिल्प, भौतिकी, साहित्य, वेद, वेदांग, ज्योतिष, भूगोल, क्लोन निर्माण, वस्त्र विज्ञान, समाधि विज्ञान इत्यादि पर विचार-विमर्श होगा।
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि प्रो0 वी0एस0 राजपूत ने संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कहा कि प्राचीन भारतीयों द्वारा अविष्कृृत विचारों और आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिक का मूल आधार को दृृढ़ करने में अभूतपूर्व योगदान रहा है। उन्होनें बताया कि उपनिषद् ज्ञान काण्ड है जिसमे आध्यात्मिक जीवन का प्रतिपादन किया गया है।
मनुष्य को कैसे कर्म करने चाहिए इसका उल्लेख उपनिषदों से प्राप्त होता है। प्राचीन वेदों और अन्य शास्त्रों में चिकित्सा प्रणाली का उल्लेख किया गया है। चरक साहित्या और सुश्रूत साहित्या जड़ी बूटियों के साहित्य के मुख्य परम्पारिक संग्रह है। भारतीय ज्ञान, विरासत, परम्परा एवं शिक्षण पद्वतियों के सनातन मूल्यों को आधुनिक शैक्षिक पद्वति व व्यवस्था में अभिसंचित करना है।
विशिष्ट अतिथि उत्तराखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 दिनेश चन्द्र शास्त्री ने अपने सम्बोधन में कहा भारत के सिवा विश्व में कोई देश नहीं है जहाँ आप शान्ति से रह सकें। चाणक्य ने इस भूमि को चक्रवर्ती भूमि कहा है। प्राचीन काल से ही हमारा देश उच्च माननीय मूल्यों एवं विशिष्ठ वैज्ञानिक परम्पराओं का देश रहा है।
भारत की संस्कृति ने विश्व को एक परिवार के रूप में माना है। प्राचीन भारत में दर्शन, अनुष्ठान, व्याकरण, खगोल विज्ञान, अर्थशास्त्र, संख्या सिद्वांत, तर्क, जीवन विज्ञान, आर्युवेद, ज्यौतिष जैसे मानव कल्याणकारी क्षेत्रों में कीर्तिमान स्थापित कर मानव जाति की उन्नति में अत्यधिक योगदान दिया है।
संगोष्ठी में श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय एवं उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के मध्य शोध एवं शैक्षिक गतिविधियों को बढ़ावा देने हेतु समझौता ज्ञापन (एमओयू ) हस्ताक्षर किए गए।
की-नोट स्पीकर एवं नमांमि गंगे योजना के सलाहकार केन कोसीबा (यू0एस0ए0) ने संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कहा भारतीय लोग आज भी अपनी परम्परा और मूलों को बनाये हुए है। विभिन्न सांस्कृतिक और परम्परा के लोगों के बीच घनिष्ठता ने भारत देश को बनाया है इसलिये हम कह सकते हैं कि भारतीय संस्कृति वेद, तंत्र एवं योग की त्रिवेणी है। भारतीय ज्ञान परम्परा हजारों वर्ष पुरानी है इस ज्ञान परम्परा मे आधुनिक विज्ञान प्रबंधन सहित सभी क्षेत्रों के लिए अभूतपूर्व खजाना है।
संगोष्ठी 04 टैक्नीकल सेशन में आयोजित की जाएगी। प्रत्येक टैक्नीकल सेशन के सापेक्ष में चार सेशन आयोजित किये जाएंगे।
इस संगोष्ठी में डाॅ0 डी0के0श्रीवास्तव, प्रो0 प्रतिभा शुक्ला, प्रो0 नालिन भट्ट, प्रो0 एस0के0 श्रीवास्तव, प्रो0 ओमप्रकाश, डाॅ0 जितेन्द्र कुमार, डाॅ0 अशोक कुमार, डाॅ0 तेजेन्द्र कुमार गुप्ता, प्रो0 वाई0 के0 शर्मा विज्ञान संकाय अध्यक्ष प्रो0 गुलशन कुमार ढ़िंगरा, कला संकाल अध्यक्ष प्रो0 डी0सी0 गोस्वामी, वाणिज्य संकाय अध्यक्ष प्रो0 कंचन लता सिन्हा प्रो0 संगीता मिश्रा, प्रो0 मनोज यादव, प्रो0 एस0पी0 सती डाॅ0 शिखा ममगांई, प्रो0 डी0के0पी0 चैधरी, प्रो0 हेमन्त शुक्ला, प्रो0 अटल बिहारी त्रिपाठी, प्रो0 एम0डी0 त्रिपाठी सहित 228 प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया।
मंच का संचालन प्रो0 पूनम पाठक द्वारा किया गया।