हरिद्वार, 19 जुलाई 2025 : श्री सनातन ज्ञान पीठ शिव मंदिर सेक्टर 1 समिति द्वारा आयोजित श्री शिव महापुराण कथा के नवम दिवस की कथा का शुभारंभ करते हुए परम पूज्य उमेश चंद्र शास्त्री महाराज जी ने भगवान गणेश के अवतरण की कथा सुनाई।
महाराज श्री जी ने बताया की जब माता पार्वती एक बार स्न्नान जाने से पूर्व अपने शरीर के मैल और उबटन से एक सुंदर पुतला बनाया और उसमें प्राण डाल कर इसका नाम गणेश रखा।माता पार्वती ने गणेश को द्वारपाल बना कर बैठा दिया और आदेश दिया की मेरे आदेश के बिना कोई भी अंदर आने ना पाये और किसी को भी अंदर न आने देने का आदेश देते हुए स्नान करने चली गईं। संयोग से इसी दौरान भगवान शिव वहां आए।
उन्होंने अंदर जाना चाहा, लेकिन माता की आज्ञा के अनुसार बालक गणेश ने शिव को रोक अंदर जाने से मना किया जिससे की शिवजी नाराज हो गये।शिव ने बालक गणेश को समझाया, लेकिन गणेश ने उनकी एक भी नही सुनी।तब शिवजी को बहुत क्रोधित होकर अहिव गण को आदेश दिया की इस बालक को द्वार से हटाओ।इसके बाद शिवगणों और भगवान गणेश के बीच भयंकर युद्ध हुआ लेकिन कोई भी उन्हें हरा नहीं सका फिर क्रोधित शिवजी ने अपने त्रिशूल से बालक गणेश का सिर काट डाला। जब माता पार्वती को इस बात का पता चला तो रोने लगीं और प्रलय करने का निश्चय कर लिया। इससे देवलोक भयभीत हो उठा फिर देवताओं ने उनकी स्तुति कर उन्हें शांत किया।
तब भगवान शिव ने गरुड़ जी से कहा कि उत्तर दिशा में जाओ और जो भी मां अपने बच्चे की तरफ पीठ कर के सो रही हो उस बच्चे का सिर ले आओ। गरुड़ जी को काफी देर बाद तक ऐसा कोई नहीं मिला। अंततः एक हथिनी नजर आई। हथिनी का शरीर ऐसा होता है कि वो बच्चे की तरह मुंहकर नहीं सो सकती। तो गरुड़ जी उस शिशु हाथी का सिर काट कर ले आए।शिव ने उसे बालक गणेश के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया।
माता पार्वती गणेश जी को पुनः जीवित देख बहुत खुश हुई और तब समस्त देवताओं ने बालक गणेश को आशीर्वाद दिए। भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि किसी भी मांगलिक कार्य की शुरुआत अगर गणेश पूजा से होगी तो वो सफल होगी। उन्होंने गणेश को अपने समस्त गणों का अध्यक्ष घोषित करते हुए आशीर्वाद दिया कि विघ्न नाश करने में गणेश का नाम सर्वोपरि होगा। इसीलिए भगवान गणेश को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है।
महाराज श्री जी ने कहा की गणेश जी ने मातृ आज्ञा पालन में जैसे अपने प्राणों की चिंता नहीं कि उसी प्रकार हर संतान को मातृ-पितृ सेवी होना चाहिए।माता पिता की सेवा चारों धाम की सेवा है जो लोग माता-पिता की सेवा करते हैं संसार में उन लोगों को मनुष्यो द्वारा ही नहीं बल्कि देवताओं द्वारा भी पूजा जाता है।और कथा के अंत मै परमपूज्य उमेश चंद्र शास्त्री जी के साथ सभी ने मिलकर श्री गणेश जी की जन्म बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया गया।
कथा मे मंदिर सचिव ब्रिजेश शर्मा और कथा के मुख्य यजमान प्रभात गुप्ता और उनकी धर्मपत्नी रेनू गुप्ता, जय प्रकाश,राकेश मालवीय, दिलीप गुप्ता,तेज प्रकाश,अनिल चौहान, सुनील चौहान,मानदाता, मोहित तिवारी,हरिनारायण त्रिपाठी,कुलदीप कुमार,अवधेशपाल, रामललित गुप्ता, धर्मपाल,अंकित गुप्ता,दिनेश उपाध्याय,हरेंद्र मौर्य, होशियार,संजीव भारद्वाज,अलका शर्मा,संतोष चौहान,पुष्पा गुप्ता, सरला शर्मा, विभा गौतम,अनपूर्णा,राजकिशोरी मिश्रा, मिनाक्षी, कौशल्या,तनु चौहान,सुमन समाधिया,नीतू गुप्ता,कुसुम गैरा, मनसा मिश्रा,सुनीता चौहान, रेनू,बबिता,कृष्णा चौधरी और अनेको श्रोता गण कथा मे सम्मिलित हुए।


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