एनटीन्यूज़: मानो तो भगवान नहीं तो पत्थर , बचपन से यह बात सुनता आ रहा हूँ लेकिन इसका प्रत्यक्ष उदाहरण मुझे देखने को मिला, बात पिछले मंगलवार की थी मैं हरिद्वार स्थित अवधूत मंडल आश्रम में स्वामी संतोषानंद जी के पास बैठा था वैसे तो अक्सर मैं यहाँ आता रहता था और घंटो स्वामी जी के साथ विभिन्न मुद्दों पर चर्चा होती रहती थी लेकिन कभी भी वहाँ स्थित हनुमान जी के मंदिर पूजा अर्चना करने नही गया न ही वहाँ के माहात्म्य को जानने की कोशिश की हालांकि मंगलवार को वहाँ अक्सर भक्तों की भीड़ लगी रहती थी ।
उस दिन भी मंगलवार था रात के लगभग 9 बजने वाले थे मैं स्वामी जी के साथ रात का भोजन वही आश्रम में खा कर घर जा रहा था जैसे ही स्वामी जी के कमरे से बाहर निकला सामने ही भगवान हनुमान जी विशाल प्रतिमा थी दो तीन लोग अपने मोबाइल से सेल्फी ले रहे थे , लेकिन मेरी नजर उन लोगों पर नहीं पड़ीं बल्कि हनुमानजी जी की विशाल प्रतिमा पर पड़ी थी , मुझे नही पता लेकिन मेरे पैर अनायास ही मंदिर की ओर बढ़ गए, मैं अब बिल्कुल भगवान की प्रतिमा के सामने था , मेरे सामने हनुमान जी की विशाल अप्रतिम मूर्ति खड़ी थी और मैं एकटक उनको देखे जा रहा था ऐसा लग रहा था प्रभु मुझे अपनी ओर खींच रहे हैं ।
अचानक घंटा बजने की आवाज आती है और मेरा ध्यान मूर्ति से हटकर घंटे को बजाने वाले पर गया एक व्यक्ति अपने छोटे से बच्चे को लेकर घंटा बजा रहा था पास में ही एक औरत हाथ जोड़े आंखों को बंद किए भगवान से मन ही मन कुछ प्रार्थना कर रही थी , मैने एक नजर उनकी तरफ देखा फिर मेरी नजर भगवान की मूर्ति पर गई मैं सोच रहा था अगर देखा जाए लोगों की श्रद्धा और विश्वास ही तो है जो भगवान को एक पत्थर में आने को मजबूर कर देता है, इस हनुमानजी की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की बड़ी रोचक कहानी है ।
हनुमान मंदिर की स्थापना की बात की जाए तो इसके निर्माण की बड़ी अद्भुत कथा है हनुमान जी की विशाल मूर्ति निर्माण के समय लाखों लोगों ने कागजों तथा कॉपी में 1111 लाख राम नाम मंत्र लिखे थे, यह सभी कागज तथा कॉपी को पवित्र गंगाजल में कई दिन भिगोया गया उसके बाद इसी पवित्र गंगाजल को सीमेंट बालू में मिलाकर मसाला तैयार किया गया और इसी मसाले से भगवान हनुमान जी की विशाल मूर्ति का निर्माण किया गया, लाखों लोगों की श्रद्धा और विश्वास से यह विधि विधान पूर्वक हनुमान जी की मूर्ति का निर्माण करवाकर प्राण प्रतिष्ठा करके स्थापित की गई तब से ही यह हनुमान मंदिर सिद्ध पीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ, जो भी भक्तजन यहां श्रद्धा भाव से आकर श्री हनुमान जी के दर्शन करता है उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
अगर बात की जाए अवधूत मंडल की तो अवधूत मंडल आश्रम सेवा एवं पवित्रता से हरिद्वार नगरी में अपनी विशेष पहचान रखता है यह एक प्राचीन रमणीय पुण्य स्थल है, अवधूत मंडल आश्रम जरूरतमंद गरीब लोगों के लिए धर्मार्थ अस्पताल भी चला रहा है आश्रम में गौशाला भी है जिसमें हमेशा गौ माता की पूर्ण रूप से सेवा की जाती है आश्रम के निकट गंगा जी के किनारे बना हुआ घाट अवधूत मंडल घाट के नाम से जाना जाता है आश्रम की ओर से संतो ब्राह्मणों वेद पार्टी विद्यार्थियों को मुफ्त भोजन रहने की सुविधा और दवाइयों प्रदान की जाती है इस आश्रम में गौ सेवा संत सेवा वेद पार्टी विद्यार्थी सेवा विद्वानों की सेवा रोगी वृद्ध सेवा जैसे रहना खाना कपड़े दवाई इत्यादि निशुल्क सेवा प्रदान की जाती है।
यह रामानंदी निरंकारी वैष्णव संप्रदाय की प्राचीन संस्था है इस संप्रदाय की स्थापना आचार्य बाबा सरयूदास जी ने की थी इसकी स्थापना लगभग 200 वर्ष पूर्व हुई थी ब्रह्मलीन श्री आचार्य बाबा सरयू दास जी महाराज के शिष्यों ने बसंत पंचमी दिनांक 13 अप्रैल 1830 अवधूत मंडल आश्रम की स्थापना की थी, बाबा सरयू दास जी महाराज की मूल तपोस्थली पटियाला पंजाब में है उस समय भारत एक अखंडित राष्ट्र था। बाबा सरयू दास जी महाराज के शिष्य बाबा हीरा दास जी अवधूत मंडल आश्रम के मुख्य संस्थापक तथा प्रथम अध्यक्ष रहे उसके बाद पीठाधीश्वर स्वामी गोपाल देव , स्वामी रामेश्वर देव ,स्वामी महेश्वर देव, तथा स्वामी सत्यदेव जी गुरु शिष्य परंपरा के अनुसार आश्रम के अध्यक्ष बनते रहे और अब स्वामी संतोषानंद देव जी अवधूत मंडल आश्रम के अध्यक्ष हैं ,स्वामी संतोषानंद देव जी महाराज हिंदू धर्म के विषय में जागरूकता पैदा कर उसके प्रचार-प्रसार का महान सामाजिक कार्य कर रहे हैं, संपूर्ण समाज में से हमारी मूल संस्कृति को धीरे-धीरे पतन होता देख स्वामी जी बड़े चिंतित रहते हैं हमारे हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति को बचाने हेतु तथा उनके विकास हेतु स्वामी जी ने बद्रीनाथ केदारनाथ द्वारिका सोमनाथ उज्जैन वृंदावन वाराणसी तथा भारत के अन्य भागों में आश्रम की स्थापना का दृढ़ संकल्प किया है।
यह समय धर्म तथा संस्कृति के लिए बहुत ही कठिन समय है लोगों की धर्म तथा संतो के प्रति श्रद्धा कम हो रही है और इसी कारण से दान का प्रवाह दिन प्रतिदिन कम हो रहा है अवधूत मंडल आश्रम केवल दान किया है पर ही चल रहा है और इन परिस्थितियों में आश्रम तथा इसकी शाखाएं चलाना बड़ा कठिन हो रहा है।
स्वामी जी ने इस महान तथा पुरानी धार्मिक संस्था को बचाने के लिए इन कठिन परिस्थितियों से लड़ने का निर्णय किया है स्वामी जी ने भारत में विभिन्न स्थानों पर आश्रम बनाकर अपने अनुयायियों की सुविधाएं एवं समाज के लिए 200 एकड़ जमीन खरीद कर गौशाला कालेज अस्पताल वृद्ध आश्रम विधवा आश्रम अनाथ आश्रम विकलांग आश्रम इत्यादि समाज कल्याण हेतु बनवाने का दृढ़ संकल्प किया है ।
निश्चित रूप से इस समय जबकि सब अपना अपना देख रहे हैं और कई साधू सन्यासियों द्वारा अनैतिक काम किए जा रहे है ऐसे में स्वामी जी द्वारा चलाई जा रही मुहिम अपने आप मे एक सराहनीय कार्य है शायद यह उस सिद्ध पीठ और भगवान हनुमानजी का आशीर्वाद ही है जो स्वामी जी को यह सब कार्य करने की शक्ति और संकल्प की प्रेरणा देता है ।
सचिन तिवारी