सुनीति त्यागी की कविता
“कुछ करके तो देख…….”
आशाओं से भरा है आसमां
निराशा से निकल कर तो देख,
फैली है चारों ओर चांदनी
अंधेरों से निकल कर तो देख।
तू ही नहीं है इस भंवर में अकेला
इस भंवर के संग रम कर तो देख,
पार उतर जाते है सभी धीरे धीरे
तू भी तो थोड़ा चल कर तो देख।
माना रास्ते है सभी के जुदा जुदा
इन रास्तों को एक करके तो देख,
हर समंदर में सीपी नहीं मिलता
तू हर संदर में गोता खाकर तो देख।
अनेकता में एकता है है पहचान तेरी
इसको तू साबित करके तो देख,
एक नया इतिहास लिख सकता है तू भी
अपने इरादों को नेक करके तो देख।
यूही ही नहीं बदलती तारीखें इतिहास की
उनसे तू भी रुबरू होकर तो देख,
गर तू चाहता है याद रखे ज़माना एक दिन
इस ज़माने के लिए कुछ नया करके तो देख।
हाँ कुछ करके देख, कुछ करके तो देख…….
रचयिता: सुनीति त्यागी