हरिद्वार, 21 जुलाई 2025 : श्री सनातन ज्ञान पीठ शिव मंदिर सेक्टर 1 समिति द्वारा आयोजित श्री शिव महापुराण कथा के ग्यारवे दिवस की कथा का शुभारंभ करते हुए परम पूज्य उमेश चंद्र शास्त्री महाराज जी ने कथा को आगे बढ़ाते हुए जलंधर और तुलसी की कथा सुनाई।महाराज श्री जी ने बताया की शिव महापुराण के अनुसार पौराणिक समय में दैत्यों का राजा दंभ हुआ।
वह बहुत बड़ा विष्णु भक्त था। कई सालों तक उसके यहां संतान नही होने के कारण उसने शुक्राचार्य को अपना गुरु बनाकर उनसे श्री कृष्ण मंत्र प्राप्त कर विष्णु जी की तपस्या कर विष्णु जी को प्रसन्न करा तब विष्णु जी ने उसे संतान प्राप्ति का वरदान दे दिया।भगवान विष्णु के वरदान से राजा दंभ के यहां एक पुत्र ने जन्म लिया। इस पुत्र का नाम शंखचूड़ रखा। बड़ा होकर शंखचूड़ ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए पुष्कर में घोर तपस्या की।उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे वरदान मांगने को कहा।
तब शंखचूड़ ने वरदान मांगा कि वह हमेशा अजर-अमर रहे व कोई भी देवता उसे नही मार पाए। ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान दे दिया और कहा कि वह बदरीवन जाकर धर्मध्वज की पुत्री तुलसी जो तपस्या कर रही है उससे विवाह कर लें।शंखचूड़ ने वैसा ही किया और तुलसी के साथ विवाह के बाद सुखपूर्वक रहने लगा।उसने अपने बल से देवताओं, असुरों, दानवों, राक्षसों, गंधर्वों, नागों, किन्नरों, मनुष्यों तथा त्रिलोकी के सभी प्राणियों पर विजय प्राप्त कर ली। वह भगवान श्रीकृष्ण का परम भक्त था। शंखचूड़ के अत्याचारों से सभी देवता परेशान होकर ब्रह्माजी के पास गए और ब्रह्मा जी उन्हें भगवान विष्णु के पास ले गए।
भगवान विष्णु ने कहा कि शंखचूड़ की मृत्यु भगवान शिव के त्रिशूल से ही संभव होगी, अतः आप उनके पास जाएं।भगवान शिव ने अपना एक गण दूत बनाकर शंखचूड़ के पास भेजा।दूत ने शंखचूड़ को समझाया कि वह देवताओं को उनका राज्य लौटा दे।परंतु शंखचूड़ ने मना कर दिया और कहा कि वह महेश्वर से युद्ध करना चाहता है।भगवान शिव को जब यह बात पता चला तो वे युद्ध के लिए निकल पड़े।
इस तरह देवता और दानवों में घमासान युद्ध हुआ।परंतु ब्रह्मा जी के वरदान के कारण शंखचूड़ को देवता नहीं हरा पाए।तब भगवान शिव ने शंखचूड़ का वध करने के लिए जैसे ही अपना त्रिशूल उठाया, तभी आकाशवाणी हुई कि-जब तक शंखचूड़ के हाथ में श्रीहरि का कवच है और इसकी पत्नी का सतीत्व अखण्डित है,तब तक शंखचूड़ का वध असंभव है।आकाशवाणी सुनकर भगवान विष्णु देवताओं के राजा इंद्र के साथ वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण कर शंखचूड़ के पास गए और उससे श्रीहरि कवच दान में मांग लिया। शंखचूड़ ने वह कवच बिना किसी संकोच के दान कर दिया।इसके बाद भगवान विष्णु शंखचूड़ का रूप बनाकर तुलसी के पास गए।शंखचूड़ रूपी भगवान विष्णु ने तुलसी के महल के द्वार पर जाकर अपनी विजय होने की सूचना दी। यह सुनकर तुलसी बहुत प्रसन्न हुई और पतिरूप में आए भगवान का पूजन किया व रमण किया। ऐसा करते ही तुलसी का सतीत्व खंडित हो गया और भगवान शिव ने युद्ध में अपने त्रिशूल से शंखचूड़ का वध कर दिया।
तब तुलसी को पता चला कि वे उनके पति नहीं हैं बल्कि वे तो भगवान विष्णु है। क्रोध में आकर तुलसी ने कहा कि आपने छलपूर्वक मेरा धर्म भ्रष्ट किया है और मेरे पति को मार डाला।अतः मैं आपको श्राप देती हूं कि आप पाषण होकर धरती पर रहोगे।तब भगवान विष्णु ने कहा- देवी तुम्हारा यह शरीर नदी रूप में बदलकर गण्डकी नामक नदी के रूप में प्रसिद्ध होगा। तुम पुष्पों में श्रेष्ठ तुलसी का वृक्ष बन जाओगी और सदा मेरे साथ रहोगी। तुम्हारे श्राप को सत्य करने के लिए मैं पाषाण (शालिग्राम) बनकर रहूंगा। गण्डकी नदी के तट पर मेरा वास होगा।
विष्णु जी ने कहा, ‘हे तुलसी यह तुम्हारे सतीत्व का फल है कि तुम तुलसी बनकर मेरे साथ ही रहोगी। जो मनुष्य तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, वह परम धाम को प्राप्त होगा।’ बिना तुलसी दल के शालिग्राम या विष्णु जी की पूजा अधूरी मानी जाती है।
कथा मे मंदिर सचिव ब्रिजेश शर्मा और कथा के मुख्य यजमान प्रभात गुप्ता और उनकी धर्मपत्नी रेनू गुप्ता, जय प्रकाश, राकेश मालवीय, दिलीप गुप्ता,तेज प्रकाश,अनिल चौहान, सुनील चौहान,मानदाता, मोहित तिवारी,हरिनारायण त्रिपाठी,कुलदीप कुमार, अवधेशपाल, रामललित गुप्ता, आदित्य गहलोत, धर्मपाल, अंकित गुप्ता,दिनेश उपाध्याय,हरेंद्र मौर्य,होशियार, संजीवभारद्वाज, विष्णु समाधिया, मधुसूदन,अलका शर्मा, संतोष चौहान,पुष्पा गुप्ता, सरला शर्मा विभा गौतम,अनपूर्णा,राजकिशोरी मिश्रा,सलोनी, दीपिका, भावना गहलोत, मिनाक्षी,कौशल्या,तनु चौहान,सुमन समाधिया, नीतू गुप्ता, कुसुम गैरा, मनसा मिश्रा,सुनीता चौहान, पायल,रेनू, बबिता,कृष्णा चौधरी और अनेको श्रोता गण कथा मे सम्मिलित हुए।