बीज बम: पर्यावरण संरक्षण बीज बम: पर्यावरण संरक्षण एवं मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकने की दिशा मे एक अनूठा वैज्ञानिक प्रयोग शहीद श्रीमती हंसा धनाई राजकीय महाविद्यालय अगरोड़ा टिहरी गढ़वाल के वनस्पति विज्ञान के सहायक प्राध्यापक भरत गिरी गोसाई ने बीज बम के बारे मे विस्तृत जानकारी दी।
बीज बम आंदोलन की शुरुआत: 2017 मे उत्तराखंड के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं समाजसेवी श्री द्वारिका प्रसाद सेमवाल एवं उनके साथियों द्वारा बंजर भूमि अथवा जंगलो मे हरियाली लाने तथा पर्यावरण संरक्षण हेतु जंगलों में विभिन्न प्रकार की सब्जियों, फलों एवं अनाज के बीजों को फेंका गया लेकिन ज्यादातर बीज अंकुरित नहीं हो पाये और अधिकतर बीजो को जंगली जानवरों एवं पक्षियों द्वारा खा लिया गया।
फिर श्री द्वारिका प्रसाद सेमवाल के मन मे एक विचार आया कि क्यों ना इन बीजों को मिट्टी और गोबर मे लपेटकर बंजर भूमि अथवा जंगलों में फेंका जाए जिससे कि ये बीज जंगली जानवरों तथा पक्षियों द्वारा भी नष्ट ना हो, साथ ही साथ उचित वातावरण मिलने पर यह बीज अंकुरित भी हो जाए जिससे कि पर्यावरण मे फिर से हरियाली आ जाए तथा जानवरों को जंगल में ही भोजन भी मिल जाए ताकि जंगली जानवर इंसानी आबादी की तरफ भी ना आए। इस तरह से मिट्टी, पानी तथा गोबर (खाद) से बने गोलो के अंदर बीजों को रखकर फेंकने के अनूठे आंदोलन को बीज बम आंदोलन कहा गया।
बीज बम आंदोलन का उद्देश्य: हिमालयन पर्यावरण जड़ी-बूटी एग्रो संस्थान (जाड़ी) के अध्यक्ष एवं बीज बम के प्रणेता श्री द्वारिका प्रसाद सेमवाल जी के अनुसार बीज बम आंदोलन का मुख्य उद्देश्य बढ़ती आबादी के साथ घटती वन्य क्षेत्र के कारण वन्यजीवों को जंगलों मे भोजन न मिल पाने के कारण, बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकना है।
इस अनूठे प्रयोग से कम लागत मे वैज्ञानिक पद्धति द्वारा वन संपदा को बढ़ाना भी है। इस आंदोलन मे अभी तक 18 राज्यों के करीब 2 लाख से ज्यादा लोग जुड़ चुके है, जो कि विभिन्न सामाजिक संगठन, एनजीओ, विभिन्न स्कूलों, कॉलेजों के छात्र छात्राएं है।
बीज बम बनाने का तरीका: बीज बम बनाने के लिए उपजाऊ मिट्टी, पानी तथा गोबर (खाद) का प्रयोग किया जाता है। एक गोला (बम) के अंदर 2 बीज डालकर कम से कम 4 दिन धूप मे सुखाया जाता है, फिर इन्हे मानसून सीजन मे उन जगहो मे हाथों द्वारा हथगोला की तरह फेंका जाता है जहां पेड़-पौधों की कमी होती है।
बीज बम के अंदर रखे जाने वाले बीज: सामुदायिक वानिकी के अंतर्गत आने वाले दीर्घकालीन वृक्षों के बीज जैसे नीम, हर्रा, बहेड़ा, जामुन, आंवला, शहतूत, सेब, नाशपाती, आडू, खुमानी, शहतूत, पूलम, मेहल, तिमला आदि तथा अल्पकालीन पौधों के बीज जैसे मटर, लौकी, मक्का, गेहूं, जौ, ज्वार, बाजरा, भट्ट तथा मौसमी सब्जियां आदि के 2 बीज प्रति गोले के अंदर रखा जाता है।
बीज बम का प्रयोग: बंजर भूमि अथवा वे स्थान जहां वृक्षारोपण करना होता है मानसून के मौसम मे लगभग दो या तीन बरसात के बाद वहां बीज बम को फेंका जाता है। मिट्टी की नमी के संपर्क मे आने के कुछ समय पश्चात इन बीजों मे अंकुरण प्रारंभ होकर एक नया पौधा तैयार हो जाता है। विभिन्न रिपोर्टों के मुताबिक इस अनूठे प्रयोग से अब तक लगभग 70 फ़ीसदी सफलता मिली है।
बीज बम अभियान हेतु उत्तराखंड सरकार द्वारा की जा रही पहल: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने 9 जुलाई 2022 को मुख्यमंत्री कैंप कार्यालय देहरादून मे बीज बम अभियान सप्ताह का शुभारंभ किया। उन्होंने कहा कि यह अभियान जंगली जानवरों को जंगलों में खाद्य की उपलब्धता कराना, मानव वन्यजीव संघर्ष को कम करना तथा जैव विविधता को बढ़ाने की दिशा मे एक सराहनीय कदम है।
यह अभियान पूरे प्रदेश मे 9 जुलाई से 15 जुलाई तक चलेगा। इस अभियान के तहत पूरे प्रदेश मे चिन्हित क्षेत्रो मे बीज बम फेंके जायेगे। इस अभियान मे प्रदेश के विभिन्न समाज सेवी संगठन, संस्थान, स्कूल तथा कॉलेज के छात्र-छात्राएं सक्रिय प्रतिभा करेंगे।