दमोह/ कुलाधिपति डाॅ.सुधा मलैया प्रति कुलाधिपति श्रीमती पूजा मलैया एवं श्रीमती रति मलैया के संरक्षण तथा कुलगुरु प्रो. पवन कुमार जैन एवं कुलसचिव प्रो. प्रफुल्ल शर्मा के मार्गदर्शन मे इतिहास विभाग द्वारा अधिष्ठाता – प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग विज्ञान’ की अधिष्ठाता प्रो (डॉ. ) उषा खंडेलवाल की अध्यक्षता में आदिवासी समाज की उन्नति एवं योगदान विषयक संगोष्ठी सम्पन्न की गई।
कार्यक्रम की रिपोर्ट देते हुए प्रोफेसर डॉक्टर उषा खण्डेलवाल ने बताया कि विश्वविद्यालय के शिक्षक एवं छात्रों ने बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उनके मार्ग पर चलने की प्रतिज्ञा ली।
कार्यक्रम की संयोजक डाॅ. मनीषा दीक्षित ने सभी अतिथियों का स्वागत उद्बोधन किया।
जिसमे मुख्य वक्ता प्रो. ( डॉ.)आर. सी. जैन – अधिष्ठाता कला एवं मानविकी संकाय ने कहा कि महान देशभक्त बिरसा मुंडा ने झारखंड के आदिवासी समाज के लोगों के लिए जल, जंगल, जमीन की लड़ाई लड़ी, जो स्वाधीनता संग्राम में मील का पत्थर सिद्ध हुई।
प्रो.सूर्यनारायण गौतम ने मुख्य वक्ता की आसन्दी से छात्र छात्राओं को उद्बोधित करते हुए बताया कि उन्होंने ब्रिटिश राज के दौरान 19वीं शताब्दी के अंत में बंगाल प्रेसीडेंसी जो अब झारखंड प्रदेश है, में हुए एक आदिवासी धार्मिक सहस्राब्दी आंदोलन का नेतृत्व किया।
जिससे वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए। भारत के पश्चिमी आदिवासी चित्तौडगढ के साथ रहे , यह सभी जानते हैं किन्तु इनके आन्दोलन से समूचा आदिवासी समाज आजादी की क्रान्ति के लिए तैयार हो गया था। भारत के आदिवासियों ने उन्हें भगवान माना है। उन्हे ‘धरतीबा’ के नाम से भी जाना जाता है।
जिसका तात्पर्य होता है भूमि से जुड़ा हुआ। इस जयन्ती कार्यक्रम में प्रो. वन्दना शुक्ला, डाॅ. आशीष कुमार जैन शिक्षाचार्य, डा. सरिता जैन दोशी, डाॅ.आशीष कुमार जैन (प्राकृत) डाॅ. दुर्गा महोबिया, डाॅ. वन्दना पाण्डेय, डाॅ. प्रमिला कुशवाहा, डा. सुधीरकुमार गौतम, डाॅ. दीपक रजक, डाॅ. राहुल वर्मा, डाॅ. अभय कुमार, श्री योगेश पटेल सुश्री ईशा सचदेवा, सुश्री शिवानी असाटी , गोविंद विश्वकर्मा, आकाश ठाकुर आदि उपस्थित रहे।
कार्यक्रम के सह संयोजक डाॅ.सिराज खान ने उपस्थित सभी जनों का हार्दिक धन्यवाद ज्ञापन किया।