हरिद्वार: धनोरी पी.जी. कॉलेज, धनौरी के रसायन विज्ञान विभाग द्वारा दिनांक 10 फरवरी 2025 को”भारतीय ज्ञान परंपरा एवं प्रणाली” विषय पर ऑनलाइन अतिथि व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस व्याख्यान में सी.एम.पी. कॉलेज, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर संतोष कुमार श्रीवास्तव ने छात्र-छात्राओं को इस विषय पर विस्तार से मार्गदर्शन प्रदान किया,

एवं प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणाली परंपरा पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा दिया गया ज्ञान आज भी प्रासंगिक और महत्वपूर्ण है। उन्होंने समझाया कि प्राकृतिक जड़ी-बूटियों एवं परंपरागत भारतीय चिकित्सा पद्धतियों का वैज्ञानिक आधार क्या है और वे हमारे स्वास्थ्य के लिए कितनी लाभकारी हैं।

उन्होंने नीम, हल्दी, सरसों, मेथी आदि में पाए जाने वाले फाइटोकेमिकल्स (Phytochemicals) एवं उनकी औषधीय उपयोगिता पर विस्तृत जानकारी दी। इसके अलावा, उन्होंने बताया कि फल, फूल एवं विभिन्न प्रकार की सब्जियों का सेवन किस प्रकार से रोगों की रोकथाम एवं निवारण में सहायक होता है।

इसके अतिरिक्त, उन्होंने कुंभ मेले के सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक महत्व को भी समझाया और बताया कि भारतीय परंपराओं में निहित वैज्ञानिक तत्त्वों को आधुनिक विज्ञान के दृष्टिकोण से कैसे देखा जा सकता है।

महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर डॉ. विजय कुमार ने छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा को समझना और उसे आधुनिक संदर्भों में अपनाना न केवल हमारी जड़ों से जुड़ने में मदद करता है, बल्कि यह हमारे वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी सुदृढ़ करता है। उन्होंने विद्यार्थियों को इस विषय में और अधिक शोध करने एवं अपनी जिज्ञासा बनाए रखने के लिए प्रेरित किया।

इस व्याख्यान के सफल आयोजन में रसायन विज्ञान विभाग के विभिन्न शिक्षकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कार्यक्रम संचालन में डॉ. मोनिका वत्स, डॉ. अर्पित सिंह, श्रीमती अंजलि सैनी, डॉ. प्रभात कुमार, डॉ. कृष्णनन बिष्ट, डॉ. अनुपम एवं डॉ. प्रियंका त्यागी ने सहयोग किया।

यह अतिथि व्याख्यान छात्र-छात्राओं के लिए अत्यंत ज्ञानवर्धक एवं प्रेरणादायक रहा। विद्यार्थियों ने न केवल भारतीय परंपराओं के वैज्ञानिक पहलुओं को समझा, बल्कि उन्होंने इस विषय में और अधिक अध्ययन करने की रुचि भी दिखाई।

महाविद्यालय भविष्य में भी इस प्रकार के शैक्षणिक एवं शोधपरक व्याख्यान आयोजित करता रहेगा, जिससे छात्र-छात्राओं को नई वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि प्राप्त हो सके।

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