Tuesday, October 14, 2025

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चित्रा सिंह चेतना की कविता: “मैं चाहता हूं तुम चलती रहो”

मैं चाहता हूं तुम चलती रहो

वह मुझसे कहे…..कि

तुम ना किसी से भी डरो

जो करना चाहती हो वो सब तुम करो

मैं बिल्कुल तुम्हारे पीछे खड़ा हूं

तुम्हें गिरने नहीं दूंगा

और आंधियां चले चाहे लाख

मैं तुम्हें बुझने नहीं दूंगा

तुम किसी मशाल सी जलती रहो

मैं चाहता हूं तुम चलती रहो

तुम सारे सपने अपने पूरे करो

अपनी खुशियों में मनचाहे रंग भरो

क्योंकि तुम्हारी बनाई इस तस्वीर में

फ़िर कुछ योगदान मेरा भी होगा

अगर नाम रोशन होगा तुम्हारा

तो पीछे उपनाम मेरा भी होगा

बस इसीलिए मैं चाहता हूं

कि तुम कोशिश करती रहो

मैं चाहता हूं तुम चलती रहो

तुम उजालों सी फैल जाओ चारों और

तुम खुशियों को गले लगाओ थोड़ा और

और मैं यह नहीं कहता कि अपनी ज़िम्मेदारियां छोड़ दो

हां घर संभालो मेरा भी

मगर अपने लिए भी वक्त निकालो थोड़ा और

देखो तुम मेरी जिंदगी की भोर हो

ना यूं शाम सी ढलती रहो

मैं चाहता हूं तुम चलती रहो

मैं चाहता हूं तुम चलती रहो

 

लेखिका: चित्रा सिंह चेतना

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