रायपुर: ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द महाराज जी का १६ अक्टूबर को साईं वसणशाह दरबार उल्हासनगर में प्रवचन होगा।
कार्यक्रम वसणशाह दरबार के गद्दीनशीन साईं कालीराम साहिब जी की पहल पर मसन्द सेवाश्रम रायपुर के पीठाधीश साईं जलकुमार मसन्द साहिब के माध्यम से आयोजित किया गया है।
साईं मसन्द साहिब १४ अक्टूबर को रायपुर से उल्हासनगर एवं पूज्यपाद शंकराचार्य महाराज १५ अक्टूबर को वाराणसी से मुम्बई पहुंचेंगे। सिंधी समाज के प्रख्यात संत साईं जलकुमार मसन्द साहिब भारत के शंकराचार्यों के नेतृत्व में गठित अंतर्राष्ट्रीय हिन्दू संगठन परम धर्म संसद १००८ के संगठन मंत्री हैं।
साईं मसन्द साहिब ने बताया कि यथा राजा तथा प्रजा की उक्ति को ध्यान में रखकर परम धर्म संसद १००८ का उद्देश्य देश में सनातन वैदिक सिद्धांतों पर आधारित धर्म का शासन स्थापित करना है।
उन्होंने कहा कि इसमें सफल होने पर देश की आजादी के मूल उद्देश्य के अनुसार हम भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने में भी सफल हो जायेंगे। उन्होंने कहा कि सनातन वैदिक ज्ञान जहां मानव जीवन को सुखमय और आनन्दमय बनाने हेतु जल, थल व नभ से सम्बंधित उसकी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दार्शनिक, वैज्ञानिक एवं व्यवहारिक उपाय सुझाता है वहीं उसके मूल उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करने का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
उन्होंने बताया कि तीन-चार वर्षों से परम धर्म संसद १००८ अपने लक्ष्य प्राप्ति हेतु निर्धारित योजना के अंतर्गत देश के हर जिले में गौमाता प्रतिष्ठा अभियान चलाकर हिन्दू नागरिकों को संगठित कर रही है।
उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए बताया कि जहां एक ओर देश के लाखों हिन्दू धर्मावलंबी हमारे इस अभियान से सतत् जुड़ते जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर विश्व के १०८ देश, जहां हिंदू आबादी पर्याप्त संख्या में है के नेतृत्व वर्ग का भी हमें सहयोग मिलने लगा है। हमारा प्रयास है कि गौमाता को पशु सूची से हटा कर केन्द्र सरकार उसे राष्ट्रमाता एवं राज्य सरकारें राज्य माता का दर्ज़ा दें। महाराष्ट्र सरकार ने गौमाता को राज्य माता घोषित कर दिया है।
साईं मसन्द साहिब ने कुछ महीनों से अपने सिंधी समाज के संतों एवं नेताओं को देश, धर्म व जगत के कल्याण के साथ-साथ अपने समाज के वर्तमान एवं भविष्य को सुखद व सुरक्षित बनाने हेतु ज्योतिर्मठ के वर्तमान शंकराचार्य से जोड़ने का अभियान चलाया हुआ है।
इसके औचित्य पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि ढाई हज़ार वर्ष पूर्व आदिशंकराचार्य महाराज ने उनके द्वारा स्थापित चारों पीठों के दायित्व विभाजन में सिंध वासियों का दायित्व ज्योतिर्मठ के अंतर्गत निर्धारित किया हुआ है। वे इस संदर्भ में अनेक नगरों में सिंधी समाज के संतों एवं सामाजिक नेताओं की शंकराचार्य महाराज जी के साथ बैठकें करवा चुके हैं।