जीतिन चावला,एनटीन्यूज़: वीर शहीद केसरी चंद राजकीय स्नात महाविद्यालय, डाकपत्थर विकास नगर, देहरादून के अंतर्गत आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन सेल में आजादी के अमृत महोत्सव के तत्वाधान में ऑनलाइन विशेष व्याख्यान श्रृंखला के नवें चरण में नवम व्याख्यान में मुख्य वक्ता, डा सजंय कुमार, रसायन शास्त्र विभाग, देशबंधु कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली द्वारा “कीटनाशक का पर्यावरण पर प्रभाव: समस्या, जागरूकता, चुनौतियां, और उपचार” विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया गया।

मीडिया प्रभारी डा दीप्ति बगवाड़ी ने बताया कि कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर गोविंदराम सेमवाल द्वारा की गई। कार्यक्रम का संचालन डा डी के भाटिया द्वारा किया गया। कार्यक्रम संयोजक डा राकेश कुमार जोशी, समन्वयक डॉ. राकेश मोहन नौटियाल, आयोजन सचिव डॉ. दीप्ति बगवाड़ी, आयोजन समिति सदस्यों में डॉ आशाराम बिजल्वाण,डा कामना लोहनी,

डॉ. नीलम ध्यानी, डॉ. राजेंद्र प्रसाद बडोनी, डॉ. विनोद रावत, डा माधुरी रावत व डा अमित गुप्ता द्वारा व्याख्यान व्यवस्था देखी गई। डॉ. संजय द्वारा बताया गया की भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत में कीटनाशकों का उपयोग फसलों को कीटों से बचाने के लिए किया जाता है। लेकिन इन कीटनाशकों की वजह से पर्यावरण प्रदूषित भी हो रहा है। इससे पानी की गुणवत्ता, जैव विविधता और मानव स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। एक नए शोध से पता चला है कि कीटनाशकों की वजह से दुनिया में खेती की जमीन का एक तिहाई हिस्सा खतरे में है।पेस्टीसाइड्‌स आधुनिक कृषि विज्ञान का एक आवश्यक अंग बन गये हैं और इनके वातावरणीय प्रदूषण तथा असंतुलन पर विश्व भर में अनेक परीक्षण हो चुके हैं । 1962 में महिला जीव-शास्त्री रॉकेल कार्सन द्वारा लिखित ‘साइलैण्ट स्प्रिंग’ के पश्चात् पेस्टीसाइड्‌स के घातक प्रभावों की ओर जनता का ध्यान आकर्षित हुआ ।

तत्पश्चात् इस दिशा में विश्वव्यापी जागृति आई और इनके प्रभावों को कम करने हेतु अनुसंधान प्रारंभ हुए। अकार्बनिक पेस्टीसाइड में आर्सेनिकीय पदार्थ आते हैं जो अनेक वर्षों तक भूमि, वनस्पति में विद्यमान रहते हैं ।

इसी प्रकार कार्बनिक पेस्टीसाइड भी वातावरण को विषाक्त करते हैं । कार्बनिक फॉस्फेट यौगिक में पैराथियन, मैलाथियन, क्लोथियम, फोसड्रिन, क्लोरडोन, डाइल्ड्रिन, एंड्रिन एल्ड्रिन, हेप्टाक्लोर, टोक्साफीन, लिनडेन आदि आते हैं । इनका प्रभाव न केवल हानिकारक जीवों अपितु संपूर्ण पर्यावरण पर होता है ।

डी.डी.टी. का प्रयोग विगत समय में इतना व्यापक किया गया कि संपूर्ण विश्व में कृषि कीटों तथा मलेरिया नाश के लिये इसका प्रयोग होने लगा। इसके परिणाम भी लाभकारी रहे। किंतु शीघ्र ही इसके हानिकारक तत्वों का ज्ञान होने पर अमेरिका जैसे देशों में इसके प्रयोग पर कानूनी रोक लगा दी गई । कीटनाशक की जानकारी के लिए कृषकों को शिक्षित करना व जागरूक करना अत्यंत आवश्यक है।

व्याख्यान मे प्राध्यापक वर्ग मे डा एम एस पंवार, डा रोशन केस्टवाल, डॉ पूजा पालीवाल, डॉ निरंजन प्रजापति,डा रोहित शर्मा, डा दर्शन सिंह आदि , व छात्र-छात्रा वर्ग में राहुल, अनु, उमेश, पलक, वर्शिता, विकास, नीलम, रिशिका, अंशिका, मयंक, अतुल, प्रांजल,शुभाना, पूजा आदि उपस्थित रहे।