आज दिनांक 1 मार्च को पंडित ललित मोहन शर्मा श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय परिसर ऋषिकेश के आई.पी.आर. प्रकोष्ठ व उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकास्ट) के तत्वावधान में एक ऑनलाइन सेमिनार का आयोजन किया गया।

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इस सेमिनार में मुख्य वक्ता हिमांशु गोयल साइंटिस्ट बी यू कास्ट के द्वारा अपने व्याख्यान में आईपीआर एवं उसके बारे में विस्तार से बताया गया, उन्होंने आईपीआर की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पेटेंट व उसके अधिकारों के संबंध में विस्तृत जानकारी दी ।

उन्होंने बताया कि एक मोबाइल फोन पर उसके कवर से लेकर सिम तक कम से कम 50 से अधिक आईपीआर हो सकते हैं जो अलग-अलग व्यक्तियों की ओर से बनाए गए होते हैं ।

इसी प्रकार कोई भी लेख, कहानी, कविता आदि को कॉपीराइट अधिकार के तहत पेटेंट किया जा सकता है। किसी नई जानकारी, नए शोध, सॉफ्टवेयर, कलपुर्जे आदि को भी आईपीआर के माध्यम से पेटेंट किया जा कराया जा सकता है।

सेमिनार में द्वितीय वक्ता डॉ. अनीता गहलोत, हेड रिसर्च एंड इनोवेशन उत्तरांचल यूनिवर्सिटी, देहरादून के द्वारा इन्नोवेशन एंड आईपीआर पर व्याख्यान दिया गया।

जिसमें उन्होंने बौद्धिक संपदा अधिकार के तकनीकी पहलुओं से अवगत कराया व पेटेंट की आवश्यकता एवं इससे मिलने वाले अधिकारों से अवगत कराया। उन्होंने इंडस्ट्रियल आईपीआर एवं इनोवेशन पर विशेषकर प्रकाश डाला।

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इस मौके पर आईपीएस प्रकोष्ठ, पंडित ललित मोहन शर्मा परिसर ऋषिकेश के समन्वयक, प्रो गुलशन कुमार ढींगरा ने सभी वक्ताओं एवं प्रतिभागियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि पेटेंट अपनाकर बौद्धिक संपदा को हम सुरक्षित कर सकते हैं।

इस मौके पर परिसर के निदेशक प्रो एम एस रावत छात्र-छात्राओं एवं शोधार्थियों को इस व्याख्यान की महत्व समझते हुए शोधार्थियों के लिए यह व्यख्यान अत्यंत लाभदायक बताया ।उन्होंने यूकास्ट व आमन्त्रित वक्ताओ का धन्यवाद ज्ञापित किया।

इस मौके पर इस कार्यक्रम के को-कन्वीनर डॉ एस के कुड़ियाल ने सभी वक्ताओ का परिचय प्रतिभागियों को दिया एवं स्वागत किया।

इस कार्यक्रम हेतु श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के मा कुलपति प्रो एन के जोशी व यूकास्ट के महानिदेशक प्रो दुर्गेश पन्त ने शुभकामनाएं प्रेषित की।

अंत में डॉ प्रीति खंडूरी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। यह कार्यक्रम सुश्री सफीया हसन व डॉ दिनेश सिंह के संचालन में ऑनलाइन संपादित किया गया। इस कार्यक्रम में 90 से अधिक प्रतिभागियों व शोधार्थियों ने प्रतिभाग किया।

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