‌‌राजकीय महाविद्यालय, मजरा महादेव, पौड़ी (गढ़वाल) में आज ‘राज्य स्वच्छ गंगा मिशन’ ‘जल शक्ति मंत्रालय’ भारत सरकार के तत्त्वाधान में नमामि गंगे कार्यक्रम के अंतर्गत “पर्यावरण दिवस”में “वृक्षारोपण” व “वर्षा जल संरक्षण की अनिवार्यता” के संबंध में एक दिवसीय गोष्ठी का आयोजन किया गया।

महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. के. सी. दुद्पुड़ी ने कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए कहा कि वर्षा जल का संग्रहण सभी क्षेत्रों के लोगों के लिए जरूरी है। सतह से बारिश के पानी को इकट्‌ठा करना बहुत ही असरदार और पारंपरिक तकनीक है। इससे छोटे तालाबों, भूमिगत टैंकों, बांध आदि के इस्तेमाल से जल संरक्षण किया जा सकता है।

भूमिगत पुनर्भरण तकनीक जल संग्रहण का एक नया तरीका है। इसे कुआं खोदकर गड्‌ढा, खाई, हैंडपम्प और कुएं को दोबारा चार्ज करके किया जा सकता है। पहले गांवों, कस्बों और नगरों की सीमा पर या कहीं नीची सतह पर तालाब अवश्य होते थे, जिनमें स्वाभाविक रूप से मानसून की वर्षा का जल एकत्रित हो जाता था। इसके साथ ही अनुपयोगी जल भी तालाब में एकत्र हो जाता था, जिसे मछलियां और मेंढ़क आदि साफ करते रहते थे।

यह जल पूरे गांव के पशुओं आदि के काम में आता था। जरूरी है कि गांवों, कस्बों और नगरों में छोटे-बड़े तालाब बनाकर वर्षा जल का संरक्षण किया जाए। मोहल्ला, नगरों और महानगरों में घरों की नालियों के पानी को गड्‌ढे बनाकर एकत्र किया जा सकता है।

मंच का संचालन करते हुए नमामि गंगे के नोडल अधिकारी डॉ. चन्द्र बल्लभ नैनवाल ने कहा कि घर की छत पर वर्षा जल एकत्र करने के लिए एक या दो टंकी बनाकर उन्हें मजबूत जाली या फिल्टर करके कपड़े से ढका जाये तो जल संरक्षण किया जा सकेगा।

जल के संकट को देखते हुए आज समुद्र के खारे जल को पीने योग्य बनाया जा रहा है। बड़ी नदियों की नियमित सफाई बेहद जरूरी है। बड़ी नदियों के जल का शोधन करके पेयजल के रूप में उपयोग किया जा सकता है। जंगल कटने पर वाष्पीकरण न होने से वर्षा नहीं हो पाती है इसलिए वृक्षारोपण जल संग्रहण में बेहद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।वर्तमान में पानी का उपयोग घर, कृषि और कल-कारखानों के क्षेत्र में अत्यधिक हो रहा है।

महाविद्यालय के प्राध्यापकों में आदित्य शर्मा,इंद्रपाल सिंह रावत, डॉ दीपक कुमार, डॉ. प्रियंका भट्ट, डॉ राकेश बिष्ट के साथ-साथ शिक्षणेतर कर्मचारी उदयराम पंत, विक्रम सिंह रावत, सुनील सिंह, गुलाब सिंह , मनोज रावत ने कार्यक्रम को सफल बनाने में अपना योगदान दिया।