अध्यात्म विज्ञानशाला स्थापना एवं सर्वांग योग आविष्कार शताब्दी महोत्सव एवं श्री मद्भगवद्गीतोपनिषद मनन सत्र दिनांक 30 जुलाई से 5 अगस्त तक के कार्यक्रम का सफल आयोजन हुआ
विज्ञानशाला स्थापना शताब्दी महोत्सव के अंतर्गत प्रतिवर्ष अनुसार होने वाले श्रीमदभगवद् गीतोपनिषद् श्रवण मनन सत्र में संचालक परम पुज्य स्वामी श्री उमाशंकर चैतन्य जी ने गीता के प्रत्येक अध्यायों का सर्वांगयोग की प्रत्यक्षीकरण की योग युक्ति के आधार पर यथार्थ निरूपण भारत के विभिन्न प्रांतों से पधारे सात्विक श्रद्धावान भक्तों के सामने प्रस्तुत किया ।
परम पुज्य स्वामी जी ने उद्बोधन में कहा कि श्री मद्भगवदगीतोपनिषद् के अर्जुन विषाद योग नाम के प्रथम अध्याय में अर्जुन ने स्वजनों व गुरु जनों तथा भीष्म पितामह को युद्धेच्छा से खड़े हुए देखकर अर्जुन ने मोहग्रसित होकर युद्ध न करने की इच्छा प्रगट की ,जिस पर भगवान श्री कृष्ण जी ने अर्जुन का समाधान किया| वह गीता का मूल आधार बना प्रथम अध्याय में अर्जुन कुल धर्म व जाति धर्म को ही धर्म मानकर युद्ध में स्वजनों का नाश होकर नरक की प्राप्ति होती है इस भ्रमग्रसित बुद्धि में फंसकर युद्ध न करने इच्छा से रथ के पिछले भाग में बैठ गया । जिसे भगवान ने नकारते हुए विश्वरूप परमात्मा को जानकर स्वधर्म की जागृति होती है उसे ही मानव धर्म बताया |
द्वितीय अध्याय में भगवान ने कहा आत्मा को अविनाशित्व दर्शित करते हुए स्थिर बुद्धि समाधि पुरुष के लक्षण बताए, इस प्रकार स्वामी जी ने तृतीय अध्याय में ज्ञान धर्म की महत्ता दर्शित करते हुए चतुर्थ अध्याय में उस ज्ञान की सनातन परंपरा दर्शित की,आगे पांचवें व छठे अध्याय में ज्ञान कर्म व आत्म संयम योग का महत्व दर्शित करते हुए सातवें अध्याय में किस प्रकार ज्ञान के सहित हमें विज्ञान अर्थात प्रत्यक्ष दर्शन ज्ञान भी प्राप्त करना चाहिए दर्शित किया पश्चात आठवें अध्याय में अविनाशी अक्षर ब्रह्म का स्वरूप बताते हुए नवम अध्याय में अध्यात्म विज्ञान को समस्त विद्याओं का राजा कहा तथा इसी विद्या से राज्य कारण चलाना सुगम व सफल हो सकता है।
स्वामी जी ने गीता के 10 अध्याय में विभुति योग को समझाया तथा यह बताया कि विश्व में जो जो ऐश्वर्य अथवा शोभायुक्त तथा शक्ति प्रभावशाली है वह सभी परमात्मा की विभूतियां हैं।
11 वा अध्याय में भगवान श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को किस प्रकार दिव्य दृष्टि देकर विश्वरूप परमात्मा का दर्शन करवाया ,उस दिव्यदृष्टि की विद्या का स्वामी जी ने उपदेश प्रत्यक्ष यथार्थ दर्शन के रूप में कराया तथा यह भी कहा कि यही गीता का सारभूत सिद्धांत है ,इस विश्वरूप परमात्मा को जानकर ही उसके साथ सेवा मय व्यवहार ही अनन्य भक्ति है यह 12 वें अध्याय में समझाया | 13 वे अध्याय में शरीर को क्षेत्र व जीवात्मा को क्षेत्रज्ञ के रूप में वर्णन किया | 14 अध्याय में संपूर्ण सृष्टि में त्रिगुणात्मक स्वरूप का वर्णन किया ,इस प्रकार स्वामी जी ने समझाते हुए 15वें अध्याय के त्रिपुटीयोग क्षर अक्षर पुरुषोत्तम का स्वरूप निरूपण किया तथा यह दर्शित किया त्रिपुक्षटी योग को जानना ही वेद शास्त्र को जानना है ।
16 अध्याय में मनुष्य के 2 वर्ग देवी और आसुरी का वर्णन है जो वर्तमान में भी मानव समाज में देखा जा सकता है| 17 वें अध्याय में मनुष्यों के त्रिविध प्रकार की श्रद्धा का वर्णन विस्तार से किया तथा यह भी बताया कि रज तम का फल नाशक है और सात्विक से कल्याण है ।
आगे 18 अध्याय को समझाते हुए परम पूज्य स्वामी जी ने कहा कि गीता के सभी अध्यायों का सारांश 18 वां अध्याय है ,जिसमें मनुष्य के त्रिगुणात्मक स्वरूप का वर्णन किया है , जिसमें प्रत्येक कार्य में लगने वाले कर्ता, कर्म , ज्ञान का आधार सत-रज-तम ये तीनों गुण है , यही तीन गुण विश्व में पृथ्वी से स्वर्ग तक प्रत्येक वस्तु में अखंड रूप से व्याप्त है ।
अंत में श्री मद्भगवदगीतोपनिषद् का समापन करते हुए परम पुज्य स्वामी जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि गीता परमात्मदर्शन शास्त्र है , जिसको जानकर मनुष्य स्वकर्म के द्वारा सतआचरणयुक्त हो कर प्राणीमात्र के साथ सेवामय व्यवहार करके परमसुख शांति का अनुभव प्राप्त करते हैं । स्वामी जी ने बताया कि विश्वरूप परमात्मा को जानने के लिए तत्वदर्शी के सानिध्य में रहकर समझने की आवश्यकता है जो कि वर्तमान समय में केंद्रीय अध्यात्म विज्ञानशाला औंकारेश्वर में दिव्यचक्षु ( तत्वदर्शन) के द्वारा विश्वरूप परमात्मा का दर्शन कराया जाता है ।
स्वामी जी ने गीता श्रवण मनन सत्र में पधारे, सभी भक्तों का अभिवादन करते हुवे पुनः गीता श्रवण मनन सत्र में आने हेतु सादर आमंत्रित किया |
इस सम्पूर्ण कार्यक्रम को सफल बनाने में अनेक भाई बहनों का सहयोग मिला |नर्मदे हर स्वामीं श्री अवधेशानंद जी ,विज्ञान महर्षि श्री के एस नामदेव ,श्री राजेन्द्र सिंह क्षत्री ,सत्यनारायण खंडेलवाल ,उषा खंडेलवाल कुसुम त्रिवेदी ,माता शांति देवी शर्मा ,बी पी दोहरे , पी सी शर्मा , श्रीकांत मुड़की ,प्रकाश पाटिल, श्री राजेन्द्र पाण्डेय, जबलपुर, श्री नरेश कुमार झारिया, रायपुर, श्री पीताम्बर जी एवं देश के कोने कोने से आए भक्त जन |