एनटीन्यूज़:  श्री अरूण सिंह रावत, महानिदेशकए भारतीय वानिकी एवं शि़क्षा परिषद् (पर्यावरणए वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालयए भारत सरकार) देहरादून के द्वारा 20 सितम्बर 2021 को एक पुस्तक Recent Advnces on Melia dubia Cav का विमोचन किया। यह पेड़ ड्रैक या गोरा नीम के नाम में जाना जाता है तथा एक स्वदेशी . छोटी आवर्तन . बहुउद्देशीय पेड़ की प्रजाति है और इसमें औद्योगिक और घरेलू लकड़ी की आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता है।

महानिदेशक ने खुशी जताई कि स्वदेशी पेड़ की प्रजाति पर एक काफी व्यापक पुस्तक लिखी गई है। पुस्तक विशुद्ध रूप से ICFRE द्वारा वित्त पोषित एक दीर्घकालिक बहुआयामी और व्यवस्थित अनुसंधान कार्यक्रमो के माध्यम से वैज्ञानिकों के प्रयोगों और अनुभव के परिणामों पर आधारित है।

यह पेड़ भारत के पूर्वीए उत्तर.पूर्वी और दक्षिणी हिस्सों का मूल निवासी है तथा समुद्र तल से 1800 मीटर तक अलग.अलग मिट्टी और पर्यावरणीय परिस्थितियों में अच्छी तरह से पनपता है। पर्णपाती पेड़ मिट्टी के पुनर्वास में काफी योगदान देता है और साल दर साल मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार लाता है।
व्यवस्थित अनुसंधान कार्यक्रम के तहत प्ब्थ्त्म् ने उत्तरी भारत में व्यावसायिक खेती के लिए दस किस्मों को जारी किया गया है तथा मौजूदा उत्पादकता 10.12 उ3ीं.1लत.1 को बढ़ा कर 55ण्87 उ3ीं.1लत.1 तक पहुंचाया गया है। वन अनुसंधान संस्थानए देहरादून ने प्रसिद्ध निजी कंपनी आईटीसी के साथ इन उत्पादक किस्मों के वाणिज्यिक प्रवर्धन के लिए हस्ताक्षरित लाइसेंस समझौता किया है। जंगलों से बाहर कृषि वानिकी के तहत लगाए गए पेड़ लकड़ी आधारित उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति का एकमात्र स्रोत हैं। इसलिए मेलिया डबिया को औद्योगिक और घरेलू लकड़ी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक उपयुक्त स्वदेशी वृक्ष के रूप में अनुशंसित किया गया है। यह भी एक तथ्य है कि भारत हर साल विभिन्न देशों से लिबास ध् मुखावरण का आयात करता है। एग्रोफोरेस्ट्री के तहत इस प्रजाति को बढ़ावा देने से इस बोझ को काफी हद तक कम करने में मदद मिलेगी। किसानों को उच्च उत्पादकता के कारण बढ़ी हुई आय प्राप्त होगी तथा लकड़ी आधारित उद्योगों के लिए गुणवत्ता वाले कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित होगी।
पुस्तक को प्ब्थ्त्म् के दो पेशेवर वैज्ञानिकों डॉण् अशोक कुमार और डॉण् गीता जोशी द्वारा संपादित किया गया हैए जो क्रमशः देहरादून स्थित वन अनुसंधान संस्थान और प्ब्थ्त्म् मुख्यालय में कार्यरत हैं । पुस्तक को डॉण् सुधीर कुमारए उप महानिदेशक ;विस्तार)ए प्ब्थ्त्म् के नेतृत्व और संरक्षण में लिखा गया है तथा भारत भर के विभिन्य वैज्ञानिक एवं विशेषज्ञों ने पुस्तक में विभिन्न अध्याय लिख कर अपना योगदान दिया हैं। पुस्तक में खेती से लेकर आनुवांशिकीए वृक्ष सुधारए सिल्विकल्चरए जैव प्रौद्योगिकीए प्रजनन तथा लकड़ी विश्लेषण के उपयोग की विशेषताएं शामिल हैं। पुस्तक में लकड़ीए प्लाईवुड और लुगदी सहित विभिन्न लकड़ी आधारित उद्योगों के लिए कच्चे माल के रूप में इस प्रजाति को स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका बताई गई है। पुस्तक में एग्रोफोरेस्ट्री मॉडल और एलेलोपैथिक उपयुक्तता के साथ.साथ कीट और रोग संक्रमणों के प्रभावो का भी उचित स्थान दिया गया है तथा भारी धातु समृद्ध मिट्टी के तहत प्रजातियों के फाइटोकेमिकल लक्षण और स्थापना को विस्तृत रूप से वर्णित किया गया है। भारत में लकड़ी आधारित उद्योगों की कच्ची सामग्री की माँगों को पूरा करने के लिए एक स्वदेशी प्रजाति पर लिखी गई पुस्तक को प्रस्तुत करने और किसानों की आय दोगुनी करने में योगदान होगा।
इस मौके पर icfre के देशभर में फैले सस्ंथानों के निदेशकों के अतिरिक्त ICFRE के उप महानिदेशक तथा सभी लेखकों, जिन्होंने विभिन्न अध्यायों का पुस्तक में योगदान दिया, ने आनलाइन भाग लिया ।