प्रोफेसर डॉ उषा खंडेलवाल का आध्यात्मिक लेख विचार और दृश्य वातावरण से प्रभावित होते हैं प्रोफेसर उषा खंडेलवाल आप एकलव्य विश्वविद्यालय दमोह मध्य प्रदेश में दर्शनशास्त्र में विभागाध्यक्षा तथा योग एवं नेचुरोपैथी मे डीन हैं

साधना का शाब्दिक अर्थ अपने आप को साधना का अभ्यास करना है परंतु साधना का गहन अर्थ वह विधि सम्मत उपाय है जो साध्य की प्राप्ति के लिए अपनाया जाता है.

किसी भी साधना की सफलता मैं परिवेश की महत्वपूर्ण भूमिका होती है इस ओर संकेत करते हुए आचार्य श्रीराम शर्मा कहते हैं अस्त-व्यस्त मन स्थिति और अनुपयुक्त परिस्थितियों में साधना सुव्यवस्थित रूप से नहीं हो सकती है. इससे असफलता हाथ आती है किसी स्थान की विशेष परंपरा एवं गतिविधियों का समन्वयक ही वातावरण कहलाता है, वैसे साधना किसी भी स्थान में की जा सकती है परंतु साधना से सिद्धि के लिए उपयुक्त विधि-विधान में वातावरण का महत्वपूर्ण स्थान है

किसी भी स्थान के वातावरण को उसके निवासियों के संस्कार सूक्ष्म रूप से प्रभावित करते हैं फल स्वरूप वातावरण उसी प्रकार बन जाता है यह सूक्ष्म संस्कार बहुत समय तक उस स्थान पर विद्यमान रहते हैं अस्तु, तपस्वीयों का भी प्रभाव वातावरण को प्रभावित करता है यही कारण है कि किसी साधना स्थली पर पहुंचने पर अपूर्व शांति का अनुभव होता है तथा साधना तमक मनोवृति का जागरण एवं उन्नयन भी संभव प्रतीत होता है उदाहरणार्थ विवेकानंद शिला कन्याकुमारी के साधना भवन में साधकों को अद्भुत शांति की अनुभूति होती है

महाभारत में भी वातावरण के महत्व का सशक्त उदाहरण मिलता है युद्ध के पूर्व श्री कृष्ण ऐसी भूमि का चयन कर रहे थे जहां निष्ठुरता के तत्व अधिक हो जिससे भावनाओं के प्रभाव में कोई निर्णय लेने की स्थिति ना आ सके अन्यथा अधर्म के बढते हुए अत्याचार को समाप्त करना संभव नहीं हो सकता था

ऐसी भूमि के चयन हेतु श्री कृष्ण ने अपने दूत दूर-दूर तक भेजें सभी दूतों ने आकर अपने अपने अनुभव एवं जानकारियां सुनाएं उन्हीं में से एक दूत ने अपने आंखों देखी घटना क्रम को सुनाया,  वर्षा हो रही थी बड़े भाई ने छोटे भाई से कहा खेत की मेड बांधकर पानी रोक दो यह सुनकर छोटा भाई बड़े भाई पर क्रोधित हुआ और आज्ञा की अवहेलना की कर दी तत्पश्चात उसके कटु वचन सुनकर बड़े भाई को भीषण क्रोध आया और उसने तत्काल लाठी उठाकर छोटे भाई के सिर पर मार कर उसे खत्म कर दिया और उसके शव को खींचते हुए खेत के बहते पानी को रोकने के स्थान पर लगा दिया इस घटना को सुनकर भगवान श्री कृष्ण मौन हो गए

उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से यह जान लिया कि उस स्थान के वातावरण में ऐसे तत्व विद्यमान हैं जिनमें स्नेह-सौजन्य की नहीं बल्कि क्रूरता की वरिष्ठता है अतः महाभारत युद्ध हेतु यही स्थान उपयुक्त होगा इस निर्णय के पीछे यह तथ्य था कि इस युद्ध में यदि भावनाओं के अधीनस्थ होकर निर्णय लिया गया तो अधर्म समाप्त नहीं हो सकेगा धर्मराज युधिष्ठिर एवं अर्जुन जैसे महान योद्धा युद्ध में शस्त्र उठाने के लिए तैयार हैं यह अत्यंत कठिन था इस ऐतिहासिक घटना से सभी परिचित हैं कि महाभारत युद्ध की समाप्ति भी तभी हुई जब कौरव- पांडव वंश के स्वजन- संबंधी मृत्यु की गोद में समा गए थे  यह स्थान आज भी कुरुक्षेत्र के नाम से विश्व विख्यात है इस घटना में वातावरण का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है

आचार्य श्रीराम शर्मा का दृढ़ विश्वास है कि यदि संसार के विभिन्न क्षेत्रों का पर्यवेक्षण किया जाए तो किसी स्थान को प्रभावित करने वाली क्षेत्रीय विशेषताएं उन स्थानों पर अवश्य मिलेंगी

आचार्य शर्मा ने गायत्री मंत्र और गायत्री यज्ञ की उपयोगिता को समझते हुए ही इसका आजीवन व्यापक प्रचार प्रसार किया तथा अभी भी उनके असंख्य शिष्यों के द्वारा यह कार्य विश्व स्तर पर पहुंच रहा है इसमें अतिशयोक्ति नहीं है गायत्री यज्ञ के समतुल्य गायत्री मंत्र की प्रचंड सामर्थ्य एवं विचारों के सामर्थ्य की भी वातावरण के परिशोधन में महत्वपूर्ण भूमिका है