Thursday, October 16, 2025

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नानकमत्ता- हिन्दी दिवस पर विचार गोष्ठी एवं परिचर्चा का आयोजन

नानकमत्ता। पर्वतीय संस्कृति उत्थान समिति, नानकमत्ता के तत्वावधान में आज 14 सितम्बर 2025 को हिन्दी दिवस के अवसर पर एक विचार गोष्ठी एवं परिचर्चा का आयोजन किया गया।

विचार गोष्ठी का उद्घाटन करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. जगदीश पंत ने अपने वक्तव्य में कहा कि हिन्दी केवल भाषा नहीं, बल्कि भारतीयता की आत्मा है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि वैश्वीकरण और तकनीकी युग में भी हिन्दी को ज्ञान-विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अनुसंधान की भाषा बनाने का संकल्प लिया जाना चाहिए।

उनके अनुसार हिन्दी को आधुनिक शब्दावली और संप्रेषणीय शक्ति से समृद्ध करना समय की मांग है।
इस अवसर पर डॉ हरीश चंद्र सती ने हिन्दी को लोकतंत्र की सबसे बड़ी पहचान बताते हुए कहा कि यह भाषा भारत के विविधतापूर्ण समाज को एक सूत्र में पिरोती है।

उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित किया कि हिन्दी साहित्य ने सदैव जनमानस को जागरूक और संगठित करने का कार्य किया है। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे हिन्दी लेखन और भाषण की परंपरा को आगे बढ़ाएँ।
इस अवसर पर राजकीय महाविद्यालय नानकमत्ता के राजनीति विज्ञान विभाग प्रभारी डॉ. रवि जोशी ने हिन्दी भाषा के संवैधानिक और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 343 में हिन्दी को राजभाषा का दर्जा देना भारतीय सांस्कृतिक स्वाभिमान की अभिव्यक्ति है। उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में हिन्दी को और अधिक सशक्त बनाने की आवश्यकता है, ताकि यह ज्ञान की सार्वभौमिक भाषा बन सके।
इस अवसर पर दयाशंकर पांडे ने हिन्दी को जनभाषा और भावनाओं की भाषा बताते हुए कहा कि यह भाषा लोकगीतों, कहावतों और लोककथाओं के माध्यम से भारतीय जीवन की आत्मा से जुड़ी हुई है। उन्होंने हिन्दी की जड़ों को ग्रामीण अंचलों और लोक संस्कृति में खोजने का आग्रह किया।
इस अवसर पर कैलाश चंद्र जोशी ने हिन्दी की वैश्विक भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि विश्व के अनेक देशों में हिन्दी सीखने और समझने की रुचि बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि प्रवासी भारतीय समुदाय के कारण हिन्दी अब एक अंतरराष्ट्रीय संवाद की भाषा बन रही है। उनका मानना है कि डिजिटल मीडिया हिन्दी के वैश्वीकरण का सबसे बड़ा साधन है।
विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए युवा लेखक श्री हेम जोशी ने हिन्दी को ज्ञान और विज्ञान की भाषा बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि यदि शोध और उच्च शिक्षा में हिन्दी का प्रयोग बढ़ेगा तो विद्यार्थियों में आत्मविश्वास बढ़ेगा और ज्ञान का लोकतांत्रिक प्रसार संभव होगा। उन्होंने तकनीकी शिक्षा और हिन्दी अनुवाद कार्यों को सशक्त बनाने पर जोर दिया।
इस अवसर पर किशोर डांगी ने हिन्दी साहित्य की सामाजिक चेतना पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि हिन्दी के कवि और लेखक सदैव समाज सुधार, समानता और न्याय के पक्षधर रहे हैं। उन्होंने इसे “समाज के दर्पण” के रूप में परिभाषित करते हुए युवाओं से अपील की कि वे हिन्दी साहित्य को केवल अध्ययन न करें बल्कि उसकी मानवीय मूल्यों को व्यवहार में भी लाएँ।
विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए जमुना प्रसाद जोशी ने हिन्दी के सांस्कृतिक पक्ष पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति, संस्कार और मूल्यों की संवाहिका है। उन्होंने इसे विविधता में एकता की सशक्त आधारशिला बताते हुए हिन्दी दिवस को सांस्कृतिक आत्ममंथन का अवसर माना।
इस अवसर पर श्री शंकर सिंह बसेड़ा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हिन्दी केवल साहित्यिक भाषा नहीं, बल्कि आम जनजीवन की बोली-बानी है। उन्होंने कहा कि हमारी मातृभाषा में सोचने और लिखने से विचारों में स्पष्टता और अभिव्यक्ति में सहजता आती है। उनका मानना है कि हिन्दी दिवस केवल औपचारिक उत्सव न होकर, हिन्दी के प्रयोग को व्यवहार में उतारने का संकल्प होना चाहिए।

बसेड़ा जी ने कहा कि हिन्दी का उत्थान तभी संभव है जब हम इसे सम्मान के साथ दैनिक जीवन और प्रशासनिक कार्यों में आत्मसात करें।
कार्यक्रम का संचालन पर्वतीय सांस्कृतिक समिति नानकमत्ता के शंकर सिंह बसेड़ा द्वारा किया गया तथा अंत में सभी वक्ताओं का आभार व्यक्त करते हुए हिन्दी को आत्मनिर्भर भारत और सांस्कृतिक समन्वय की भाषा बनाने का संकल्प लिया गया।
इस दौरान एक काव्य गोष्ठी का भी आयोजित किया गया जिसमें कवियों ने अपनी कविताओं के माध्यम से सभागार में समा तो बांधा ही, साथ ही अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदी भाषा को कामकाजी भाषा के रूप में अपने के अपील की।
इस अवसर पर यमुना प्रसाद जोशी, किशोर डांगी, राजेश पोखरिया , शंकर बसेड़ा, तन्मय श्रीवास्तव प्रसनजीत राय विक्रम बोरा, निर्मल सिंह, राजू जोशी, हरजिंदर सिंह, मनोज बिष्ट गौरव भट्ट आदि उपस्थित थे।

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