Tuesday, September 16, 2025

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भाईदूज पर विशेष: गायत्री परिवार से जुड़े देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव का लेख

Devendra Shrivastav

15 नवंबर चित्रगुप्त पूजा (यम द्वितीया /भाईदूज) पर विशेष जानकारी से संबंधित – आलेख गायत्री परिवार उज्जैन के वरिष्ठ प्रतिनिधि श्री देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव ने लिखा और कोटा के देवेंद्र कुमार सक्सेना ने पाठकों के लिए प्रेषित किया।

सबके अंत:करण में विराजते हैं, भगवान चित्रगुप्त।
वेदों में भगवान को हजारों सिरों, नेत्रों, हाथों, पैरों वाला बताया गया है।

भगवान प्रत्येक प्राणी के कर्मों का लेखा – जोखा भी सटीक तरीके से रखते हैं। यह काम भगवान चित्रगुप्त करते हैं ऐसा हमारे पुराणों में बर्णित है।

युग ऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा रचित पुस्तक “गहना कर्मणोगति” में आचार्यजी लिखते हैं कि प्रत्येक प्राणी के अंत:करण में भगवान चित्रगुप्त विराजित रहते हैं। जैसा कि चित्रगुप्त शब्द से अर्थ निकलता है, कि गुप्त रूप से बने चित्र। भारतीय विद्वान कर्म रेखा के बारे में प्राचीन काल से बताते आए हैं कि “कर्म रेख नहीं मिटे, करो कोई लाख चतुराई” आधुनिक शोधों ने इन कर्म रेखाओं के अलंकारिक कथानक की पुष्टि की है।

वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क के ग्रै मैटर के एक परमाणु में अगणित रेखाए पा़ई हैं, यह रेखाए किस प्रकार बनती हैं इसका कोई प्रत्यक्ष शारीरिक कारण वैज्ञानिकों को नहीं मिला। यह रेखाए एक प्रकार के गुप्त चित्र ही हैं।

ग्रामोफ़ोन की रेखाओं में कितना संगीत रिकार्ड हो जाता है, आज कल प्रचलित माइक्रोसॉफ्ट में कितना डाटा संग्रह किया जा सकता है यह हम सब जानते हैं।

इस प्रकार सबके लिए अलग अलग चित्रगुप्त सबके मन मस्तिष्क में रहते हैं, जो बिना किसी भेदभाव के प्राणी के कर्मों को उनके करने के “भाव” के साथ रिकॉर्ड करते चलते हैं।

अत: किसी भी काम को करने के पहले अंतर्मात्मा की बात को जरूर सुना जाय। मन में चलने बाले देवासुर संग्राम में देव शक्तियों की विजय के लिए अपने चित्रगुप्त का स्मरण जरूर किया जाय। इस स्थिति में आप सदा अच्छे काम जल्दी तथा गलत कामो को न करने या अभी टालने का निर्णय तो ले ही सकते हैं।
हमारी राय में यही चित्रगुप्त पूजन का सही मर्म है, इसे समक्षा और अपनाया जाना चाहिए।

(विस्तृत जानकारी के लिए युगऋषि वेदमूर्ती तपोनिष्ठ पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा रचित पुस्तक ” गहना कर्मणोगति” पढ़े, यह सभी गायत्री शक्तिपीठों पर उपल्बध है।)

 लेखक: श्री देवेंद्र कुमार श्रीवास्तव, उज्जैन
प्रेषक: देवेंद्र कुमार सक्सेना, कोटा राजस्थान 

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