आज दिनांक 3 मार्च को राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय मालदेवता (रायपुर) देहरादून में गत वर्ष की भांति प्राकृतिक रंग निर्माण कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कार्यशाला के आयोजक सचिव डॉ दयाधर दीक्षित ने बताया कि प्राचीन काल में भारत में प्राकृतिक रंगों का ही प्रयोग होता था जो त्वचा और स्वास्थ्य को नुकसान नहीं पहुंचाते थे, परंतु धीरे-धीरे विज्ञान के इस युग में हम प्रकृति से दूर होते चले गए और प्राकृतिक रंगों का स्थान रासायनिक रंगों ने ले लिया।
परन्तु वर्तमान समय में धीरे-धीरे संपूर्ण विश्व प्राकृतिक और लौट रहा है और एक बार पुनः भारत को उस दिशा में मार्गदर्शक बनने की जरूरत है|
इसी क्रम में डॉ दीक्षित ने चुकंदर, हल्दी, टेसू के फूल, गुड़हल, बुरांस के फूल आदि अनेक प्राकृतिक वस्तुओं से रंग और गुलाल बनाने का प्रशिक्षण छात्र-छात्राओं को प्रदान किया| इस अवसर पर छात्र छात्राओं को प्राकृतिक रंग बनाकर दिखाया गया।
इस अवसर पर कार्यक्रम संयोजक प्रो महेंद्र सिंह पवार ने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि रंग बनाकर हम अपना कोई व्यवसाय ही करें परंतु अगर हम अपने घर के लिए शुद्ध रंग बना सकते हो तो यह भी अपने आप में एक अर्जन ही है।
इसी क्रम में महाविद्यालय की वरिष्ठ प्राध्यापिका प्रो दक्षा जोशी ने कहा कि वास्तव में यह प्रशिक्षण बच्चों के साथ-साथ बड़ों के लिए भी है और नंदिनी ने एक बार रंग बनाकर बड़ों के लिए प्रेरणा का कार्य किया।
इस अवसर पर बोलते हुए महाविद्यालय की प्राचार्य प्रोफेसर वंदना शर्मा ने कहा कि उत्तराखंड प्रकृति की गोद में बसा हुआ राज्य है यही वह राज्य है जहां फूलों की घाटी मिलती है, जहां विभिन्न रंगों से सजी हुई प्रकृति अपने सुन्दरतम रूप में प्रदर्शित होती है।
ऐसे में प्राकृतिक रंगों से गुलाब बनाना उत्तराखंड के नौजवानों के लिए उद्यमिता का एक नया साधन हो सकता है जिसकी देश और विदेशों में बड़ी मांग है| उन्होंने छात्र छात्राओं को प्राकृतिक रंगों से होली का त्यौहार मनाने तथा अपने घर पर गुजिया और मिठाई बनाने की प्रेरणा दी।
उन्होंने कहा कि शुद्ध भोजन शुद्ध मिठाइयां अपने घर पर बनाई जा सकती हैं और बच्चों को इसके प्रति जागरूक होना चाहिए उन्होंने कहा कि महाविद्यालय में गृह विज्ञान विभाग द्वारा खाद्य पदार्थों के निर्माण का प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है अतः जिन छात्र-छात्राओं ने अध्ययन के रूप में गृह विज्ञान विषय नहीं लिया है वह भी वहां प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं।
इस अवसर पर धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कार्यशाला के सह-संयोजक डॉ सुरेश कुमार ने कहा कि प्रकृति के निकट रह कर ही विज्ञान की साधना की जा सकती है| अतः हमें प्रकृति के साथ चलना सीखना होगा।
इस अवसर पर डॉ अनीता चौहान, डॉ अरुण कुमार अग्रवाल, डॉ यतीश वशिष्ठ, डॉ जी सी डंगवाल, डॉ कविता काला, डॉ सरिता तिवारी, डॉ ज्योति खरे, डॉ अखिलेश कुकरेती, डॉ पूजा रानी, डॉ डिंपल भट्ट, डॉ लीना रावत, डॉ सुनीता नौटियाल, डॉ अविनाश भट्ट, डॉ शैलेंद्र कुमार सिंह, डॉ शशि बाला उनियाल, डॉ रेखा चमोली, डॉ सुमन सिंह गुसाईं, सहित सिया राणा ,पूजा अंजलि, प्रियांशु रावत देवांग रोहिल्ला आदि उपस्थित थे।