रतन टाटा जी के जीवन से जुड़ा डॉ विपिन कुमार शर्मा लेख, डॉ विपिन आप असिस्टेंट प्रोफेसर एवम लेखक हैं।

मनुष्यता का पक्ष, आजादी की उत्तरगाथा, नई सदी का सिनेमा, तुम जिंदगी का नमक हो. भूमंडलीकरण और कहानियों की किताब जल्द ही आने वाली है।

रतन टाटा (28 दिसंबर 1937–9 अक्टूबर 2024) , भारतीय उद्योगपति थे जो टाटा समूह और टाटा संस के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। वे भारत की सबसे बड़ी व्यापारिक इकाई, टाटा समूह, के 1991 से 2012 तक अध्यक्ष थे।

इसके अतिरिक्त, अक्टूबर 2016 से फरवरी 2017 तक वे समूह के कार्यकारी अध्यक्ष भी रहे। उनके नेतृत्व में, टाटा समूह ने वैश्विक स्तर पर विस्तार किया और कई महत्वपूर्ण अधिग्रहण किए।

2000 में तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण प्राप्त करने के बाद, 2008 में उन्हें भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण मिलाउम्र संबंधी बीमारी के कारण 2024 में उनकी मृत्यु हो गई।

रतन टाटा इसलिए महत्वपूर्ण नहीं है; कि वह बहुत बड़े उद्योगपति और वैश्विक औद्योगिक साम्राज्य के करिश्माई नेता थे, बल्कि बात तो यह है वह भारत की औद्योगिक अवधारणा और मूल्यों के प्रतिनिधि बनकर उभरे। भारत संबंधी विचार को उन्होंने आजादी के आंदोलन के आसपास ही अपने अंदर आत्मसात किया।

एक छोटा बच्चा ब्रितानी सत्ता से उसकी ताकत की प्रतीक ब्रिटिश पुलिस की मोटरसाइकिल की तेल की टंकी में चीनी मिलाकर अपना प्रतिरोध दर्ज करता है। ब्रिटिश पुलिस की मोटरसाइकिल का इंजन तो जाम हो ही जाता है उससे ज्यादा बात यह है थी कि इंग्लैंड सरकार की भारतीय जनता को लूटने की नीतियां मनुष्यता विरोधी हैं और उन्हें बंद होना चाहिए। इस बात को वह बचपन में भी सोच रहे थे।
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रतन टाटा ने बचपन में सीखे हुए जिंदगी के उसूलों को उम्र की दोपहर में भी कभी नहीं छोड़ा। लोगों की सेवा उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा मूल्य था। टाटा के लोक कल्याणकारी प्रारूप को उन्होंने आगे बढ़ाया। मानव सेवा को व्यवस्थित रूप दिया।
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एक गहरी जिद उन्हें भीड़ से अलग कर देती है। हवाई जहाज उड़ाने का शौक आकाश में इबारत लिखने की तरह था. संदर्भ बताते हैं कि एक बार वह हवाई जहाज लेकर अपने दोस्तों के साथ उड़ान पर थे और जहाज का इंजन जाम हो गया. मगर जहां बाकी लोग बेतहाशा घबरा गए रतन टाटा जहाज को सुरक्षित उतारने का शांतिपूर्वक प्रयास करते रहे। इसी प्रयास को ‘संतुलन’ कहते हैं और यह संतुलन विपरीत परिस्थितियों में उन्हें विशेष बनाता रहा. जब ताज होटल पर हमला हुआ इस हमले ने उन्हें अंदर तक हिला दिया .मगर उन्होंने यह विश्वास नहीं छोड़ा जल्द ही सब बेहतर होगा। अपने विश्वास और सेवा भाव को वह जनता तक लेकर गए।

ताज आतंकी हमले में शहीद हुए प्रत्येक परिवार को उन्होंने रिटायरमेंट तक का वेतन सुनिश्चित किया और सामाजिक सुरक्षा के तहत उनके बच्चों की नि:शुल्क पढ़ाई का प्रबंध किया. दुर्घटनाग्रस्त लोगों का मुफ्त इलाज और उनके परिवार का खर्च टाटा औद्योगिक समूह ने उठाया. इस सेवा भाव को टाटा के कर्मचारियों से आगे वह शिवाजी टर्मिनस और उसके आसपास इस आतंकी हमले में घायल और शहीद हुए लोगों तक लेकर गए और उनके परिवारों की सहायता को लेकर भी उन्होंने ट्रस्ट बनाया।
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उनके जीवन में एक कठिन समय तब भी आया; जब उनकी मां को कैंसर होने की डॉक्टरों द्वारा घोषणा की गई. यह समय भावनात्मक रूप से भी उन्हें तोड़ देने वाला था. सिम्मी ग्रेवाल को अपने एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया‘इस समय को मैंने टाटा समूह के लिए नई योजना बनाने के लिए प्रयोग किया. क्योंकि हमारा पसंदीदा काम ही हमें दुखों के सागर से बाहर निकल सकता है.’यह अलग बात है कि टाटा समूह द्वारा उन प्रस्ताव को सिरे से नकार दिया गया. लेकिन वक्त कुछ समय पश्चात उन्हें सही सिद्ध करता है.
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रतन टाटा को कुछ डूबी हुई टाटा समूह की कंपनियों का दायित्व सौपा जाता है और वह कंपनियां समय के साथ घाटे से मुनाफा कमाने वाली कंपनियों के रूप में स्वयं को रूपांतरित कर देती हैं। उनके काम करने का तरीका और एक सामान्य इंजीनियर से भी चीजों को समझने का नजरिया उन्हें विशिष्ट इंसान बनाता है।

कर्मचारियों के बीच सच्चा समाजवाद और लोकतंत्र टाटा समूह की विशेषता रही। उनका मानना रहा, ‘कि मैंने छोटे स्तर पर काम किया इसीलिए मैं काम की बुनियादी समझ को विकसित कर पाया। किसी के लिए भी मुझे मूर्ख बनाना आसान नहीं था।’
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फिर बात तकनीक को आत्मसात करने की हो तो उसमें उनका कोई सानी नहीं था। इंपीरियल इंजीनियरिंग कॉलेज के पढ़े हुए यह बटुक प्रबंधन में भी दक्ष थे। उन्होंने भारतीय उद्योग जगत का चेहरा बदल दिया। एक दौर में जो उन्होंने टाटा समूह के लिए भविष्य का खाका खींचा था उस समूह के अन्य ट्रस्टियों ने हवाई कहकर हवा में उड़ा दिया था। उसे पूरा करने का समय आया जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने। तकनीक पसंद प्रधानमंत्री को वह अपनी बात कह पाए कि भारतीय उद्योगों को अब थोड़ा खुली हवा में सांस लेने की मोहलत मिलनी चाहिए।

परंपरागत पद्धति से अलग हम तकनीक एवं नवोन्मेष में भी पैसा खर्च करें। बात आगे बढ़ने लगी थी। मगर देश के प्रिय राजीव आतंकी वारदात का शिकार हुए। फिर तात्कालिक सरकारों का दौर चला। और फिर आया समय नवे दशक के आसपास का. भारतीय अर्थव्यवस्था पूरी तरह से लड़खड़ाई हुई थी. फिर आते हैं बहुभाषाविद पी.वी नरसिम्हा राव और उनके प्रख्यात अर्थशास्त्री वित्त मंत्रीमनमोहन सिंह।

इस सरकार ने संकट में ही सही परमिट राज को समाप्त किया. उदारीकरण को लेकर समाजवादी और वामपंथियों का मुखर विरोध था। मगर रतन टाटा के लिए यह मुफीद समय था। उन्हें इस अवसर की तलाश थी. अब टाटा समूह वैश्विक समूह के रूप में तब्दील हो रहा था। हम जानते हैं टाटा मोटर्स कैसे एक ट्रक बनाने वाली कंपनी से कार बनाने वाली विशालकाय कंपनी के रूप में अपनी ख्याति और विश्वसनीयता हासिल करती है. लोगों को विश्वास नहीं था ,कि टाटा भी कार बना सकती है।

कारों का रतन टाटा को विशेष शौक था. फिर आती है अंग्रेजी रेंज रोवर का भारतीय संस्करण टाटा सूमो. कुछ आगे शानदार होने वाला था इंडिका के रूप में. इंडिका रतन टाटा का स्वप्न था. भारत में तो यह अत्यंत लोकप्रिय रही ही अमेरिका में भी यह थोड़े परिवर्तित रूप में खूब बिकी. 2008 के आसपास आम आदमी की सवारी के रूप में नैनो अवतरित होती है. इंडिगो आदि तो पहले आ चुकी थी. मगर रतन टाटा ने स्वीकार किया कि इसे सबसे सस्ती कर कहकर प्रचारित नहीं करना था। यही सबसे बड़ी दिक्कत हुई है। लोगों को लगा कि यह हमें हीनता बोध करा रही है।

लेकिन यह रतन टाटा का सपना थी और जिद भी जब उन्होंने मुंबई कीबारिश में भीगते हुए एक भारतीय परिवार को स्कूटर पर यात्रा करते हुए देखा था। और स्कूटर के फिसलने पर उस परिवार के लोगों को लगी चोट को खुद पर लगी चोट महसूस किया. अब ऐसे लोग कहां हैं जो दूसरे के दुख को दूर करने के लिए अपनी पूंजी और बुद्धिमत्ता जुनून के साथ लगा सकें. आज टाटा नेक्सॉन, अल्ट्रोज, तिएगो भारतीय सड़कों पर फराटे भरती हुई दिखाई देती हैं और हम गुमान करते हैं टाटा की कार्य कुशलता पर।

नेक्सों के आने से पहले लोगों ने कार निर्माण में टाटा को हल्के में लेना शुरू कर दिया था. मगर टाटा के बारे में कहा जाता है जब भी उन्हें माना गया की वह इस क्षेत्र में असफल हुए तोवह मजबूती के साथ हमेशा लौटकर आते हैं और देश को एक उम्मीद देते हैं. आज टाटा कार निर्माण की वैकल्पिक पद्धतियों और ईंधन को लेकर बेहतर तकनीक के साथ आ रहा है। यह रत्न टाटा की कार्य कुशलता है। इलेक्ट्रिक कारों का टाटा सिरमौर है।
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टाटा एक बिखरी हुई कंपनियों का समूह था, सबके अपने-अपने ‘लोगो’और प्रचारित करने के अपने-अपने तरीके. एक दूसरे से संशय और अविश्वास. टाटा समूह के निदेशक बनते ही उन्होंने टाटा के लिए एक ‘लोगो ‘जारी किया. जिसे हम आज देखते हैं जो टाटा नेक्सॉन पर भी लगा है और तनिष्क के आभूषणों पर भी। इससे टाटा को प्रचार करने में आसानी हुई और समरूपीकरण भी बढ़ा. टाटा ग्लोबल ब्रांड के रूप में इसलिए भी प्रतिष्ठित हुआ उसने वैश्विक कंपनियों का अधिग्रहण किया. और अधिग्रहण करने के शिल्पकार थे रत्न टाटा।

कोरस जैसा इस्पात का ब्रांड जो ब्रितानी और डच समूह था उसको टाटा स्टील ने खरीद लिया. और टाटा विश्व के बड़े स्टील उत्पादकों में शामिल हो गया. फिर ब्रिटिश का गुरुर रेंज–रॉवर और फोर्ड की लैंड क्रूज भी टाटा के शामियाने के नीचे आ गई. इस बात को आप ऐसे भी देखिए जब विलायती लोगों ने जमशेदजी को भारतीय होने के नाते होटल से बाहर कर दिया था आज उसे समूह ने ब्रिटेन एशो– आराम की प्रतीक गाड़ी range rover (रेंज रोवर)का अधिग्रहण कर लिया. एक तरीके से यह देशज औद्योगिक विजय थी.
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जो बात पहले कहीं जानी चाहिए थी; वह बाद में आई उसके लिए क्षमा. टाटा का नमक प्रचारित होता है देश के नमक के रूप में. तो कहने का मतलब है हमने देश का नमक खाया है. टाटा ने विदेशी पेय पदार्थ चाय को भी भारतीय बना दिया। टाटा चाय ने चाय के महत्वपूर्ण वैश्विक ब्रांड टेटल को अधिग्रहित किया. रतन टाटा का मानना रहा है नए क्षेत्रों में अवश्य निवेश किया जाना चाहिए. आज बाजार मे टाटा हर जगह है. ब्रिटेन में टाटा एक महत्वपूर्ण ब्रांड है, लगभग 70000 लोगों को नौकरी देने वाला।

रतन टाटा ने इस संकल्प को बुना था सस्ती दवाइयां और जिंदगी को आसान बनाने वाले उद्योगों में निवेश। रतन टाटा हमेशा स्मरण रखे जाएंगे सिर्फ टाटा को वैश्विक ब्रांड बनाने के लिए नहीं बल्कि भारत को लेकर लोगों की अवधारणा बदलने के लिए।

यहां के लोग सिर्फ दार्शनिक और आध्यात्मिक गुरु के रूप में देश दुनिया में नहीं जाते बल्कि यह वैज्ञानिकों और उद्यमियों का भी महत्वपूर्ण स्थान है। देश के आर्थिक इतिहास में उनका स्थान और नाम हमेशा सम्मान के साथ सुरक्षित रहेगा।
सादर नमन, देश के ’वास्तविक रत्न ’रत्न टाटा को.

विपिन शर्मा:
संदर्भ: नेशनल ज्योग्राफी चैनल की डॉक्यूमेंट्री
सिमी ग्रेवाल द्वारा लिया गया साक्षात्कार

डॉ विपिन आप असिस्टेंट प्रोफेसर एवम लेखक हैं।
किताबें :मनुष्यता का पक्ष,(युवा साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिए अनुशंसा),नई सदी का सिनेमा,आजादी की उत्तरगाथा,तुम जिंदगी का नमक हो।
मनुष्यता का पक्ष, आजादी की उत्तरगाथा, नई सदी का सिनेमा, तुम जिंदगी का नमक हो. भूमंडलीकरण और कहानियों की किताब जल्द ही आने वाली है।