नवल टाइम्स न्यूज़, 29 मई 2024 : आज वर्षा जल संरक्षण के तहत रा० म० वि० में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
राजकीय महाविद्यालय पैखाल में बुधवार को उच्च शिक्षा निदेशालय के निर्देशानुसार प्राप्त सूचनानुसार संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य महोदय के निर्देशन में डॉ० के एल गुप्ता (भूगोल विभाग) ने किया।
डॉ० गुप्ता ने वर्तमान में हो रहे मौसमीय अस्थिरता से पृथ्वी पर वर्षा जल वितरण एवं असमानता संकट की स्थिति उत्पन्न कर रही है। “जल ही जीवन है पृथ्वी पर जैविक संतुलन हेतु अमुल्य धरोहर भी”।
जलसंख्या के वृध्दि से कृषि पशुपालन उद्योग धन्धों में निरंतर जल की बढ़ती मांग एवं पीने के लिए शुद्ध पेय जल जन जीवन के लिए अति आवश्यक है। पर्वतीय भागों विशेष कर उत्तराखण्ड में वनाग्नि की विकट समस्या वन क्षेत्र में निरंतर नुकसान पहुंचा रहे है जिससे पर्वतीय भागो में जैव विविधता का हास के साथ साथ जल स्रोत निरंतर सूखते जा रहे है।
परिणाम स्वरुप बरसात का पानी रुककर धरती में समा नहीं पाता फलस्वरुप धरती का जलस्तर 1 से 1.5 मी. प्रति वर्ष कम होते जा रहा है। जिससे आने वाले दो तीन दशको में कृषि को मिलने वाले जलानुपात में 10-15% कमी का अनुमान लगाया गया है।
वर्षा जल का सतह पर तेजी से प्रवाहित हो जाने से भू-जल के गिरते स्तर को वर्षा जल संरक्षण कर संरक्षित किया जाना अति आवश्यक है। पृथ्वी पर 71 भाग जल से आच्छादित है जिसका 97% सागरीय अत्यधिक लवणयुक्त होने के कारण उपयोग के योग्य नहीं है।
पृथ्वी का शेष एक-चौथाई भाग, जो कि भूमि से ढका हुआ है। भूमि पर कुल पानी की मात्रा का लगभग 3 प्रतिशत भाग उपलब्ध है। कुल 329 मिलियन भूमि में अभी 113 मिलियन हैक्टेयर अतः वर्तमान ध्यान में रखकर उपलब्ध जल संसाधनों के उत्तम प्रबंधन की आवश्यकता है।
वर्षा जल संरक्षण के लिए लोगो को जल संकट की समस्या के प्रति जागरूकता एवं जल सुरक्षित जीवन सुरक्षित के प्रति लोगों को आगे आना होगा। बढ़ते वैश्विक तापन तथा कमजोर पश्चिमी विक्षोभ के कारण मार्च माह में भीषण गर्मी की स्थिति बन गई जिससे पर्वतीय भाग के प्राकृतिक जल स्रोत तेजी से सूखने लगे है।
जिससे सामान्य जन जीवन को प्रभावित हो रहे है। जिस प्रकार राजस्थान के लोगों ने जल संकट से निपटने एवं वर्षा जल संग्रहण विकास का एक प्रमुख नारा “गांव का पानी गांव में, खेत का पानी खेत में, और बहते हुए पानी को चलना सिखाना है व चलते हुए पानी को रोकना सीखाना है ऐसे ही देश के सभी हिस्से में लोगों को वर्षा जल प्रवाह को रोक कर वर्षा जल के उसके मूल स्थानों पर संरक्षित कर जल संकट को स्थिति से निपटा जा सकता है।
डॉ० श्याम कुमार ने छात्र छात्राओं को इस मानसून सत्र में सामाजिक वानिकी के तहत अपने आस पास 5–10 पौध रोपण के लिए प्रोत्साहित किया। डॉ० अरुंधति शाह और डॉ० अनुरोध प्रभाकर ने छात्रों को बताया कि धारा हरा–खुशहाल जीवन का मार्ग सिर्फ वर्षा जल संरक्षण एवं वन्य जीव संरक्षण से ही संभव है।
इस संगोष्ठी में महाविद्यालय को छात्राओं अंजली, मल्लिका, सारिका, अनिता, रवीना आदि उपस्थित रहे। कर्मचारी श्री गम्भीर ने सहयोग दिया।