ऋषिकेश स्थित श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के पंडित ललित मोहन शर्मा परिसर में आयोजित लंग कैंसर जागरूकता माह के अंतर्गत एक संगोष्ठी का शुभारंभ एम्स ऋषिकेश के कैंसर रोग विशेषज्ञ एवं सह आचार्य डॉ. अमित सहरावत ने किया।
इस दौरान उन्होंने फेफड़ों के कैंसर के विषय पर व्याख्यान दिया। कार्यक्रम का केंद्र बिंदु “फेफड़े के कैंसर की रोकथाम और प्रबंधन” था। डॉ. सहरावत ने इस जटिल रोग से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला, जिसमें इसकी वैश्विक और स्थानीय स्थिति, रोकथाम के उपाय, निदान की तकनीकें और इलाज के आधुनिक तरीके शामिल थे।
डॉ. सहरावत ने फेफड़े के कैंसर की भयावहता को दर्शाते हुए बताया कि यह विश्व स्तर पर कैंसर से होने वाली मौतों में सबसे आगे है। भारत और विशेष रूप से उत्तराखंड में तंबाकू सेवन और वायु प्रदूषण जैसे प्रमुख कारक इस बीमारी के प्रसार में योगदान कर रहे हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि भारत में फेफड़े के कैंसर के अधिकांश मामले देर से सामने आते हैं, जिससे इसका इलाज जटिल हो जाता है।डॉ. सहरावत ने बताया कि फेफड़ों का कैंसर वैश्विक स्तर पर दूसरा सबसे सामान्य कैंसर है, जो प्रति वर्ष लगभग 1.8 मिलियन मौतों का कारण बनता है। हर मिनट तीन लोग इस रोग से अपनी जान गंवाते हैं। भारत में, यह समस्या और भी गंभीर है, जहां केवल 14% मामले प्रारंभिक अवस्था में पहचाने जाते हैं।, जो इसके इलाज को चुनौतीपूर्ण बना देते हैं।
फेफड़ों के कैंसर का मुख्य कारण धूम्रपान है, जो भारत में कैंसर रोगियों के लगभग 80% मामलों में देखा जाता है। वायु प्रदूषण, विषैले रसायनों के संपर्क, और अस्वास्थ्यकर जीवनशैली अन्य मुख्य कारण हैं। डॉ. सहरावत ने स्वस्थ आहार, धूम्रपान त्यागने, और स्वच्छ पर्यावरण को बढ़ावा देने पर जोर दिया।
कार्यक्रम में उपस्थित छात्रों को लंग कैंसर के मिथकों और वास्तविकताओं के बारे में भी जानकारी दी गई, जिससे रोग के प्रति समाज में फैली भ्रांतियों को दूर करने में मदद मिल सके।
फेफड़ों के कैंसर का निदान शुरुआती लक्षणों की अस्पष्टता के कारण चुनौतीपूर्ण हो सकता है। डॉ. सहरावत ने बताया कि निदान के लिए इमेजिंग और बायोप्सी जैसी आधुनिक तकनीकों की आवश्यकता होती है। उपचार के लिए एक बहु-विषयक टीम की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, जिसमें पल्मोनोलॉजिस्ट, ऑन्कोलॉजिस्ट, और सर्जन शामिल होते हैं।
कार्यक्रम का मुख्य संदेश “क्लोज द केयर गैप” था, जो कैंसर से जुड़ी जागरूकता और शुरुआती निदान के महत्व को रेखांकित करता है। डॉ. सहरावत ने विशेष रूप से फेफड़ों के कैंसर से जुड़े मिथकों को तोड़ने और सही जानकारी फैलाने की आवश्यकता पर बल दिया।
कार्यक्रम में विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो०(डॉ) गुलशन कुमार ढींगरा ने कहा कि यह कार्यक्रम न केवल चिकित्सकीय पहलुओं को समझाने का मंच बना, बल्कि समाज में जागरूकता फैलाने के लिए भी प्रेरणा स्रोत सिद्ध हुआ है।
फेफड़ों के कैंसर से निपटने के लिए, जागरूकता और सही कदम उठाने की जरूरत आज पहले से कहीं अधिक महसूस की जा रही है। इस कार्यक्रम ने न केवल फेफड़े के कैंसर के बारे में जागरूकता बढ़ाई बल्कि छात्रों को इसके खिलाफ सामूहिक प्रयास करने की प्रेरणा भी दी। ऐसे आयोजन स्वास्थ्य सेवा में जागरूकता और शिक्षा की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
इस मौके पर परिसर के निदेशक प्रोफेसर महावीर सिंह रावत ने कहा कि युवाओं में धूम्रपान की अत्यधिक आदत प्रचलन हो रही है इसलिए शिक्षण संस्थानों से जागरूकता कार्यक्रमों की पहल होनी चाहिए इसी क्रम में उन्होंने सभी छात्रों से अपील की कि वह अधिक से अधिक अपने साथियों को इसके प्रति जागरूक करें।
कार्यक्रम का संचालन डॉ साफिया हसन द्वारा किया गया। कार्यक्रम में एम्स ऋषिकेश के अंकित तिवारी, एमएसएन ऑन्कोलॉजी से रीमा गुप्ता, प्रशांत शर्मा, योगंबर सिंह विश्वविद्यालय कैंपस से डॉ शालिनी कोटियाल, डॉ बिंदु, डॉ अर्जुन पालीवाल, देवेंद्र भट्ट, निशांत बाटला, सहित माइक्रोबायोलॉजी, मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी, बीएससी, जूलॉजी के छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।