हरिद्वार की सुनीति त्यागी की कविता

सोचते क्या हो सोचने से क्या होगा… 

सोचते क्या हो, सोचने से क्या होगा ,

आज मे जी लो दोस्तो, कल जाने क्या होगा।

घटती है ज़िंदगी, उम्र बढ़ने के साथ,

तू इस पल को जी लेगा,तो क्या होगा।

सोचते क्या हो, सोचने से क्या होगा।।

ना जानें किस मोड़ पर, बिछड़ जाएं दोस्तों

कुछ पल साथ चल लेंगें, तो क्या होगा,

कुछ दिन का बसेरा है, कल सबको जाना है,

जी भर के कुछ दिन जी लेगा, तो क्या होगा।

सोचते क्या हो, सोचने से क्या होगा।।

आज, कल ,परसों में ,घटते है महीने,

इनमें से कुछ पल चुरा लेगा, तो क्या होगा।

जो गुजर गया, वो अब नहीं लौटेगा,

सामने जो है उसको पा लेगा तो, क्या होगा।

सोचते क्या हो, सोचने से क्या होगा

सोचते क्या हो, सोचने से क्या होगा…….

 

रचयिता: सुनीति त्यागी

 

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